BY: MOHIT JAIN
शारदीय नवरात्रि के नौवें दिन, जिसे महानवमी कहा जाता है, मां दुर्गा के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री माता की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन माता की आराधना से साधक को संपूर्ण सिद्धियां और मनोकामनाएं प्राप्त होती हैं।
माता सिद्धिदात्री को सभी आठ सिद्धियों का दाता माना जाता है – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं।
मां सिद्धिदात्री का पौराणिक महत्व

देवी पुराण में वर्णन है कि मां सिद्धिदात्री ने भगवान शिव को अर्धनारीश्वर रूप प्रदान किया। इस दिन की साधना साधक को धार्मिक और अलौकिक सिद्धियों का वरदान देती है। श्रद्धा और शास्त्रीय विधि से किया गया पूजन जीवन में यश, बल, कीर्ति और धन की प्राप्ति सुनिश्चित करता है।
मां का स्वरूप अत्यंत दिव्य है। वे सिंह पर सवार और कमल पर विराजमान होती हैं। उनके चार हाथों में चक्र, गदा, शंख और कमल पुष्प होते हैं। श्वेत वस्त्रधारी माता का रूप शांति और भक्ति का संदेश देता है।
नवमी पूजा विधि
नवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करते समय निम्न विधि अपनाई जाती है:
- पहले कलश पूजन कर देवी-देवताओं का ध्यान करें।
- रोली, मोली, कुमकुम, पुष्प और चुनरी अर्पित करें।
- हलुआ, पूरी, खीर, चने और नारियल का भोग लगाएं।
- माता के मंत्रों का जाप करें।
- कन्या पूजन विशेष फलदायी माना जाता है। 2 से 10 वर्ष तक की नौ कन्याओं को भोजन कराना चाहिए।
सिद्धिदात्री माता के मंत्र और साधना का महत्व
नवरात्रि के नौवें दिन, नवदुर्गाओं में अंतिम स्वरूप सिद्धिदात्री माता की पूजा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन जापे जाने वाला मंत्र अत्यंत प्रभावशाली है:
“सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि, सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।”
मंत्र जाप से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें संसार के दुखों से मुक्ति मिलती है।
नवमी कथा: मां सिद्धिदात्री का उद्भव
धार्मिक मान्यता है कि असुरों के अत्याचार से परेशान देवताओं के सहयोग से माता सिद्धिदात्री का उद्भव हुआ। भगवान शिव की कठोर तपस्या और उनके कृपा से माता ने सभी सिद्धियां प्रदान कीं।
ऐसा कहा जाता है कि माता की कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हो गया और वे अर्धनारीश्वर कहलाए। नवमी पर सिद्धिदात्री माता की पूजा से नवरात्रि व्रत का पूर्ण फल मिलता है।
मां सिद्धिदात्री की आरती

जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता, तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता,
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि, तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि
कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम, हाथ सेवक के सर धरती हो तुम,
तेरी पूजा में न कोई विधि है, तू जगदंबे दाती तू सर्वसिद्धि है
रविवार को तेरा सुमरिन करे जो, तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो,
तू सब काज उसके कराती हो पूरे, कभी काम उस के रहे न अधूरे
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया, रखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया,
सर्व सिद्धि दाती वो है भाग्यशाली, जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा,महानंदा मंदिर में है वास तेरा,
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता, वंदना है सवाली तू जिसकी दाता