BY: MOHIT JAIN
इस साल नवरात्रि 22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक पूरे भारत में मनाई जाएगी। महाराष्ट्र में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने गरबा आयोजनों को लेकर शनिवार को एक नई एडवाइजरी जारी की। इसमें कहा गया कि राज्य में होने वाले गरबा कार्यक्रमों में केवल हिंदुओं को ही प्रवेश की अनुमति होगी।
साथ ही, एडवाइजरी में आयोजकों को निर्देश दिया गया कि कार्यक्रम स्थल पर गौमूत्र छिड़कना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, एंट्री गेट पर आधार कार्ड की जांच की जाए और भाग लेने वालों को तिलक लगाया जाए, हाथों में रक्षा सूत्र बांधा जाए और किसी हिंदू देवता की पूजा करने के बाद ही प्रवेश दिया जाए।
VHP का तर्क: गरबा सिर्फ नृत्य नहीं, बल्कि पूजा है

VHP के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीराज नायर ने कहा कि गरबा केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि देवी की पूजा का एक तरीका है। इसलिए केवल वे लोग इसमें शामिल हो सकते हैं जो इन धार्मिक अनुष्ठानों में आस्था रखते हैं।
नायर ने यह भी जोड़ा कि इस नियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आयोजनों में केवल हिंदू ही शामिल हों और किसी प्रकार की लव जिहाद की घटनाएं न हों।
राज्य सरकार और राजनीतिक प्रतिक्रिया

महाराष्ट्र के मंत्री और सीनियर भाजपा नेता चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि आयोजक यह तय करने का अधिकार रखते हैं कि इन आयोजनों में कौन शामिल होगा। उन्होंने कहा, “हर आयोजन समिति अपने नियम बना सकती है और पुलिस अनुमति मिलने पर इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।”
भाजपा के मीडिया प्रमुख नवनाथ बान ने भी कहा कि गरबा एक हिंदू आयोजन है और अन्य धर्मों के लोगों को इसमें दखल नहीं देना चाहिए।
विपक्ष ने उठाए सवाल
वहीं, विपक्ष ने इस फरमान को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी। शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने इसे समाज में सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश बताया। उन्होंने कहा कि यह महाराष्ट्र और देश के लिए शोभा नहीं देता।
कांग्रेस ने और भी कड़ा रुख अपनाया। महाराष्ट्र कांग्रेस विधायक दल के नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा कि विहिप धर्म के नाम पर समाज को बांटकर राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है।
नवरात्रि 2025: धार्मिक आयोजन या विवाद का केंद्र?
इस वर्ष नवरात्रि 22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक मनाई जाएगी। विहिप की एडवाइजरी ने गरबा आयोजनों को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सीमित करते हुए एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।
विपक्ष और विभिन्न संगठन इसे समाज में विभाजन फैलाने वाला कदम मान रहे हैं, जबकि विश्व हिंदू परिषद इसे धार्मिक आस्था बनाए रखने का तरीका बता रहा है।