कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्यभर में बाइक टैक्सी सेवाओं पर पूरी तरह बैन लगाने के फैसले को मंजूरी दे दी है, जो 16 जून 2025 से प्रभावी होगा। यह फैसला न सिर्फ बेंगलुरु जैसे ट्रैफिक-प्रभावित शहर में हजारों यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बना है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी इसका तीखा विरोध हो रहा है।
क्या है मामला?
- कर्नाटक हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सिंगल जज के पहले दिए गए आदेश को बरकरार रखा है जिसमें रैपिडो, ओला और ऊबर जैसी कंपनियों द्वारा चलाई जा रही बाइक टैक्सी सेवाओं को गैरकानूनी ठहराया गया।
- अप्रैल में कंपनियों को अपनी सेवाएं बंद करने के लिए 6 सप्ताह का समय दिया गया था, जिसकी मियाद मई में खत्म हो गई।
- इसके बाद कंपनियों की अपील पर 15 जून तक का एक्सटेंशन मिला, लेकिन अब कोर्ट ने कोई और राहत नहीं दी।
क्यों हुआ यह फैसला विवादित?
1. बेंगलुरु की ट्रैफिक समस्या
बेंगलुरु लंबे समय से ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझ रहा है। मेट्रो प्रोजेक्ट की देरी और सीमित बस कनेक्टिविटी की वजह से बाइक टैक्सी एक सस्ती और तेज़ विकल्प बनकर उभरी थी।
2. रोज़गार पर असर
- हज़ारों गिग वर्कर्स इस फैसले से प्रभावित होंगे जो अपनी रोज़ी-रोटी इन सेवाओं से चलाते हैं।
- कई छात्र और कम आय वाले लोग भी इन सेवाओं पर निर्भर थे।
सोशल मीडिया पर विरोध
मोहंदास पाई का विरोध
इन्फोसिस के पूर्व CFO टीवी मोहंदास पाई ने ट्विटर (अब X) पर सरकार से यह फैसला वापस लेने की अपील की। उन्होंने इसे “जनविरोधी” करार देते हुए कहा:
“बाइक टैक्सी रोज़गार देती हैं, ट्रैफिक कम करती हैं और नागरिकों की मदद करती हैं। यह बैन गलत है।”
जनता की आवाज
- कई यूजर्स ने इसे बेंगलुरु के ट्रैफिक का “सस्ता और व्यवहारिक समाधान” बताया।
- कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि इन सेवाओं को विशेष नियमों (जैसे KA-रजिस्टर्ड, येलो नंबर प्लेट्स आदि) के तहत वैध बनाया जा सकता है।
क्या हैं अंतरराष्ट्रीय उदाहरण?
कई लोग सुझाव दे रहे हैं कि कर्नाटक सरकार को साउथ ईस्ट एशियाई देशों जैसे जकार्ता की ‘ओजेक’ सेवा से सीख लेनी चाहिए, जहां बाइक टैक्सी ने ट्रैफिक की बड़ी समस्या को कम किया है।
निष्कर्ष: क्या सरकार फैसला बदलेगी?
इस समय जब स्टार्टअप्स और गिग इकॉनमी तेजी से बढ़ रही हैं, ऐसे में बाइक टैक्सी पर बैन का फैसला कई स्तरों पर चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है। क्या सरकार जनता की आवाज सुनकर इस फैसले पर पुनर्विचार करेगी या फिर ट्रैफिक में फंसे बेंगलुरु वासी इससे और परेशान होंगे — यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।