उत्तरकाशी की त्रासदी में समाया ‘कल्प केदार मंदिर’: जानिए शिवधाम का इतिहास और महत्व

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BY: Yoganand Shrivastva

उत्तराखंड के धराली में बादल फटने से ‘कल्प केदार मंदिर’ मलबे में दब गया। यह शिव मंदिर खुदाई में मिला था और इसकी बनावट केदारनाथ जैसा ही थी। जानिए इसका रहस्यमय इतिहास और पौराणिक महत्व।


उत्तरकाशी में प्राकृतिक आपदा और कल्प केदार का विनाश

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली क्षेत्र में बादल फटने की भीषण घटना ने जनजीवन को झकझोर दिया। इस तबाही में प्राचीन ‘कल्प केदार मंदिर’ भी मलबे में समा गया, जो भगवान शिव को समर्पित था और जिसकी वास्तुकला केदारनाथ धाम से मिलती-जुलती थी। यह मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता था।


कल्प केदार मंदिर: एक रहस्यमयी शिवधाम

कल्प केदार धाम’ न केवल एक आस्था का केंद्र था, बल्कि इसका इतिहास भी अत्यंत रहस्यमयी और प्रेरणादायक है। इसे कटुरे स्थापत्य शैली में निर्मित माना जाता है। विशेष बात यह थी कि यह मंदिर आंशिक रूप से भूमिगत था, जहां भक्तों को कई फीट नीचे उतरकर शिवलिंग के दर्शन करने होते थे।

  • मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग की आकृति नंदी की पीठ के समान मानी जाती थी।
  • पास से बहने वाली नदी का जल प्राकृतिक रूप से शिवलिंग की ओर बहता था, जिसे एक दिव्य चमत्कार माना जाता था।

1945 की खुदाई में मिला था मंदिर

स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर 1945 में एक गहरी खुदाई के दौरान मिला था। कहा जाता है कि यह मंदिर सैकड़ों वर्षों तक जमीन में दबा रहा और लोगों को इसकी जानकारी नहीं थी। खुदाई के बाद जब इसका अस्तित्व सामने आया, तो तब से इसमें विधिवत पूजा-अर्चना शुरू हुई।

  • इस मंदिर का अधिकांश हिस्सा मिट्टी में दबा हुआ था।
  • भक्तों ने मिट्टी हटाकर एक मार्ग तैयार किया जिससे नीचे उतरकर शिवलिंग तक पहुंचा जा सके।

केदारनाथ से समानता

मंदिर की बनावट और पूजा पद्धति कई मायनों में केदारनाथ मंदिर से मेल खाती थी:

  • गर्भगृह की रचना, शिवलिंग की स्थिति और जलधारा की दिशा – सब कुछ एक जैसे थे।
  • इसीलिए कई श्रद्धालु इसे ‘धराली का केदारनाथ‘ भी कहते थे।

क्या यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित था?

ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने भारत भर में जिन प्राचीन शिव मंदिरों की स्थापना की थी, कल्प केदार को भी उन्हीं में से एक माना जाता है।
यह भी अनुमान लगाया गया है कि यह मंदिर उन 240 प्राचीन मंदिरों में शामिल है, जो समय-समय पर हुई भौगोलिक हलचलों, आपदाओं या हिमयुग जैसी घटनाओं के चलते लुप्त हो गए थे और समय के साथ भूमिगत हो गए।


अब फिर मलबे में समा गया मंदिर

2025 में उत्तरकाशी में हुए बादल फटने और अचानक आई बाढ़ के चलते यह ऐतिहासिक धरोहर एक बार फिर मिट्टी और मलबे में दब गई है। नदी के प्रवाह ने मंदिर तक का रास्ता काट दिया, और पुलों के बह जाने के कारण वहां पहुंचना अब असंभव हो गया है।


तीर्थ और विरासत – दोनों की हानि

‘कल्प केदार’ न केवल एक धार्मिक स्थल था, बल्कि वह संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व का भी जीता-जागता उदाहरण था। यह घटना सिर्फ एक मंदिर के दबने की नहीं, बल्कि हमारी विरासत के एक हिस्से के खोने की त्रासदी है।


निष्कर्ष

‘कल्प केदार मंदिर’ का इतिहास हमें यह सिखाता है कि प्रकृति के सामने इंसान की योजना कितनी छोटी हो सकती है, लेकिन आस्था और विरासत की जड़ें समय की परतों में भी छुपी रहती हैं। संभव है कि भविष्य में यह मंदिर एक बार फिर किसी खोज के जरिए सामने आए, लेकिन फिलहाल यह एक बार फिर मलबे में समा गया है, जैसे यह अतीत में कई वर्षों तक लुप्त रहा था।

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