रिपोर्टर: रिंकू सुमन, EDIT BY: MOHIT JAIN
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लटेरी तहसील के कालादेव गांव में दशहरे का पर्व हर साल कुछ अलग और अनोखा रूप लेता है। यहां रामभक्तों की एक विशेष परंपरा देखने को मिलती है, जिसमें स्थानीय निवासी भगवान राम के रथ को लेकर मैदान में खड़े होते हैं और दूसरी ओर आदिवासी भील शिकारियों के समूह पत्थर और गोफन लेकर चुनौती पेश करते हैं।
राम दल और भील शिकारियों का मुकाबला

- दशहरे के दिन गांव के मैदान में राम दल और भील शिकारियों के बीच एक अनोखा खेल शुरू होता है।
- भील कुशल निशानेबाज होते हैं, जो उड़ती चिड़ियों को गोफन से मार गिराने में माहिर हैं।
- इसके बावजूद, दशहरे के दिन उनके द्वारा फेंके गए पत्थर राम दल के किसी सदस्य को नहीं लगते।
- मान्यता है कि यह चमत्कार भगवान राम की रक्षा के कारण होता है।
परंपरा और महत्व
- कालादेव गांव में भगवान राम का काले पत्थर का प्राचीन मंदिर है। इसी मंदिर के कारण गांव का नाम कालादेव पड़ा।
- दशहरे के दिन पूजा के बाद, स्थानीय लोग भगवान का रथ लेकर मैदान में आते हैं और इसे राम दल कहते हैं।
- राम दल के सदस्य केवल इस गांव के निवासी होते हैं।
खेल की प्रक्रिया
- मैदान के बीच में झंडा लगाया जाता है।
- राम दल जयकारों के साथ रथ लेकर झंडे तक पहुंचते हैं और वापस लौटते हैं।
- इसी समय भील समूह पत्थर फेंकना शुरू करते हैं।
- राम दल के सभी सदस्य सुरक्षित अपनी तरफ लौट आते हैं।
- यह प्रक्रिया तीन बार दोहराई जाती है।
इस अद्भुत परंपरा को देखने हजारों लोग आसपास के क्षेत्रों से जमा होते हैं।

क्यों चमत्कारिक है यह दृश्य
- दशहरे के दिन भील आदिवासी अपने गोल और संतुलित पत्थरों को बड़ी सावधानी से चुनकर लाते हैं।
- इनके निशाने इतने सटीक होते हैं कि आम दिनों में कोई भी नहीं बच पाता।
- लेकिन भगवान राम की कृपा से उनके पत्थर राम दल को नहीं छूते, और यह दृश्य हर साल चमत्कारिक लगने वाला अनुभव बन जाता है।
सदियों पुरानी परंपरा
यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चल रही है और ग्रामीणों का मानना है कि दशहरे के दिन भगवान राम अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखता है।