भारत के आदिवासी संस्कृति, वन संपदा और खनिज संसाधनों से भरपूर झारखंड राज्य ने 15 नवंबर 2000 को देश के 28वें राज्य के रूप में जन्म लिया। यह राज्य नृत्य, संगीत, और हरियाली से भरा-पूरा है, लेकिन इसके समृद्ध सांस्कृतिक और प्राकृतिक स्वरूप के बावजूद झारखंड आज भी कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। ऐसे में 16वें वित्त आयोग से झारखंड को विशेष वित्तीय सहयोग की अपेक्षा की जा रही है ताकि यह राज्य आत्मनिर्भर और समृद्ध बन सके।
1. खनिजों की भूमि, पर कृषि पर निर्भरता
झारखंड खनिज संसाधनों से समृद्ध है, लेकिन यहाँ की 70-80% आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है। राज्य का 29.74 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है, लेकिन अब तक केवल 24.25% भूमि पर ही सिंचाई की सुविधा है। शेष 14.19 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचित बनाना एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए केंद्र सरकार से वित्तीय सहयोग अत्यावश्यक है।
2. जल संकट और वृष्टि छाया की मार
झारखंड वृष्टि छाया वाला राज्य है, जहाँ सालाना औसतन 1300 मिमी वर्षा होती है, लेकिन हम केवल 20% जल को ही संग्रहित कर पाते हैं। 80% वर्षा जल नदियों में बहकर चला जाता है, जिससे भूजल स्तर गिरता जा रहा है। वर्तमान में झारखंड की जल उपलब्धता महज़ 1,341 घन मीटर प्रति व्यक्ति है, जिससे राज्य “वाटर स्ट्रेस” की श्रेणी में आता है।

3. उग्रवाद: नियंत्रण में लेकिन समाप्त नहीं
राज्य निर्माण के साथ ही झारखंड को नक्सलवाद और उग्रवाद की विरासत मिली। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व और केंद्र के सहयोग से काफी हद तक स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। उग्रवाद प्रभावित 19 जिलों में स्थायी समाधान हेतु केंद्र से विशेष आर्थिक सहायता और SRE (Security Related Expenditure) के तहत सहायता आवश्यक है।
4. स्वास्थ्य क्षेत्र में संवेदनशीलता और अभाव
झारखंड की 40% आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है। लगभग 65% महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं और 40% बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं। स्वास्थ्य संसाधनों की भारी कमी के चलते झारखंड को केंद्र से विशेष स्वास्थ्य सहायता की आवश्यकता है।
5. सड़कों की बदहाली: संसाधनों तक पहुंच में बाधा
खनिजों की भारी ढुलाई और कठिन भूगोल के बावजूद झारखंड में प्रति 1000 वर्ग किमी केवल 186 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 500 किमी है। 2025-30 तक 21,000 किमी नए और 26,000 किमी पुराने ग्रामीण मार्गों के निर्माण व मरम्मत के लिए केंद्र सरकार की सहायता बेहद जरूरी है।
6. उच्च शिक्षा का संकट
झारखंड में केवल 38 विश्वविद्यालय हैं, जबकि देश भर में यह संख्या 1,317 है। AISHE रिपोर्ट के अनुसार राज्य की उच्च शिक्षा नामांकन दर केवल 20% है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। उच्च शिक्षा में सुधार के लिए केंद्र से विशेष निवेश अपेक्षित है।
झारखंड प्राकृतिक संसाधनों और सांस्कृतिक धरोहरों से सम्पन्न राज्य है, लेकिन विकास की दौड़ में यह अब भी पीछे है। वित्तीय असमानता, जल संकट, कृषि की अस्थिरता, स्वास्थ्य एवं शिक्षा की बदहाल स्थिति और अधूरी आधारभूत संरचना इसके समग्र विकास में बाधक हैं।
ऐसे में 16वें वित्त आयोग से यह अपेक्षा है कि झारखंड को उसके संविधान प्रदत्त अधिकारों के अनुसार विशेष वित्तीय सहयोग दिया जाए, जिससे यह राज्य “समृद्ध झारखंड” की दिशा में आगे बढ़ सके।