भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के बीजिंग में अपने समकक्ष वांग यी से अहम मुलाकात की। यह जयशंकर की पांच सालों में पहली चीन यात्रा है और यह बातचीत ऐसे समय हुई है जब भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण संबंध धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहे हैं।
जयशंकर की इस यात्रा का उद्देश्य स्पष्ट था – भारत-चीन सीमा विवाद का समाधान, द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाना और व्यापार में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
बातचीत के प्रमुख बिंदु
1. वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव कम करने की अपील
जयशंकर ने वांग यी से कहा कि पिछले 9 महीनों में रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में अच्छी प्रगति हुई है, लेकिन अब ज़रूरत है कि LAC पर तनाव कम करने और स्थिरता कायम रखने पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
2. मतभेद विवाद में न बदलें
जयशंकर ने ज़ोर देकर कहा कि
“भारत और चीन के बीच मतभेदों को विवाद में नहीं बदलना चाहिए और प्रतिस्पर्धा को संघर्ष का रूप नहीं देना चाहिए।”
3. व्यापार में बाधाओं पर चिंता
भारत ने चीन द्वारा महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर रोक जैसे प्रतिबंधात्मक व्यापारिक कदमों पर आपत्ति जताई। जयशंकर ने कहा कि
“प्रतिबंधात्मक उपायों से बचना और खुले व्यापार को बढ़ावा देना दोनों देशों के हित में है।”
भारत-चीन संबंध: एक बहुआयामी दृष्टिकोण
विदेश मंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत और चीन न सिर्फ पड़ोसी हैं, बल्कि प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं भी हैं। ऐसे में इनके बीच सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत है।
- जनता-स्तर पर संवाद: लोगों के बीच संपर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ाने की वकालत।
- रणनीतिक विश्वास: सीमा पर शांति बनाए रखना द्विपक्षीय रणनीतिक विश्वास का आधार है।
- आर्थिक भागीदारी: व्यापार और निवेश में पारदर्शिता को प्राथमिकता देने की अपील।
एससीओ बैठक से पहले हुई मुलाकात
यह बैठक जयशंकर की शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में भागीदारी से ठीक पहले हुई। उन्होंने अक्टूबर 2024 में कजान में हुई भारत-चीन नेताओं की मुलाकात का हवाला देते हुए कहा:
“तब से हमारे संबंध सकारात्मक दिशा में बढ़े हैं, अब हमारी ज़िम्मेदारी है कि इस रफ्तार को बनाए रखें।”
वैश्विक दृष्टिकोण: भारत-चीन सहयोग का महत्व
जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत और चीन के बीच स्थिर और रचनात्मक संबंध
- केवल दोनों देशों के लिए नहीं,
- बल्कि पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद हैं।
उन्होंने कहा कि यह तभी संभव है जब दोनों देश
- आपसी सम्मान,
- हितों की समझ
- और संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ें।
एस जयशंकर की यह यात्रा न केवल भारत-चीन के वर्तमान संबंधों को एक नई दिशा देने की कोशिश है, बल्कि यह वैश्विक शांति और सहयोग के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है। अगर दोनों देश संवाद और सहयोग के रास्ते पर चलते रहे, तो एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया में स्थिरता और विकास की नई मिसाल कायम हो सकती है।





