पश्चिम एशिया में तनाव और भारत की आर्थिक चिंता
ईरान और इज़राइल के बीच जारी युद्ध ने पूरी दुनिया को फिर से ऊर्जा संकट की ओर धकेल दिया है। जैसे ही किसी क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनाव बढ़ता है, उसका पहला असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ता है — और यही भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है, जो अपनी 80% से ज्यादा कच्चे तेल की जरूरतें आयात के ज़रिये पूरी करता है।
कैसे बढ़ीं तेल की कीमतें?
- 12 जून 2025 को कच्चे तेल की कीमत थी: $69.7 प्रति बैरल
- 20 जून 2025 तक पहुंच गई: $77.2 प्रति बैरल
अगर युद्ध आगे बढ़ता है और अमेरिका इसमें प्रत्यक्ष रूप से शामिल होता है, तो $80 प्रति बैरल से ऊपर जाना तय है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती होगी, विशेष रूप से भारत जैसे आयात-निर्भर देश के लिए।
भारत पर प्रभाव: आयात बिल और चालू खाता घाटा
रेटिंग एजेंसी ICRA के अनुसार:
- कच्चे तेल की कीमतों में $10 प्रति बैरल की बढ़ोतरी:
- भारत का तेल आयात बिल $13-14 बिलियन तक बढ़ सकता है
- चालू खाता घाटा (CAD) में GDP का 0.3% तक इजाफा हो सकता है
इसका मतलब है कि देश की विदेशी मुद्रा स्थिति और वित्तीय स्थिरता पर गहरा असर पड़ेगा।
पिछली भू-राजनीतिक घटनाएं और कच्चे तेल की कीमतें
घटना | प्रभाव |
---|---|
रूस-यूक्रेन युद्ध (फरवरी 2022) | कीमतें मार्च में चरम पर पहुंचीं, जुलाई में $100 से नीचे आईं |
इज़राइल-गाज़ा संघर्ष (अक्टूबर 2023) | कच्चे तेल की कीमतों पर असर नगण्य |
ईरान-इज़राइल संघर्ष (2025) | कीमतें फिर से बढ़ने लगीं, $77.2 तक पहुंचीं |
ईरान का कच्चे तेल में वैश्विक योगदान
- ईरान दुनिया का 9वां सबसे बड़ा तेल उत्पादक है
- वैश्विक उत्पादन में हिस्सेदारी: लगभग 4%
- अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण केवल चीन ईरान से तेल खरीदता है
- चीन को जाता है: ईरान का 90% निर्यात
भारत की तेल आपूर्ति कहां से होती है?
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की तेल खरीद का बंटवारा:
- रूस: 35.8%
- इराक: 19.9%
- सऊदी अरब: 13.6%
- UAE: 9%
- अमेरिका: 4.3%
भारत ने रूस से बड़ी मात्रा में इसलिए तेल खरीदा क्योंकि वहां से रियायती दरों पर तेल मिल रहा है।
भारत का तेल आयात बिल: FY25 का आंकड़ा
- कुल आयात बिल: $143 बिलियन (लगभग ₹12.4 लाख करोड़)
- कुल आयात मात्रा: 244 मिलियन टन
- औसत कीमत: $586 प्रति टन
होरमुज़ जलडमरूमध्य: वैश्विक ऊर्जा सप्लाई की नब्ज
होरमुज़ स्ट्रेट, जो पर्शियन गल्फ और ओमान की खाड़ी के बीच स्थित है, दुनिया के सबसे अहम ऊर्जा मार्गों में से एक है:
- दुनिया का 25% तेल और 33% LNG इसी मार्ग से गुजरता है
- अगर यह बाधित होता है तो:
- 20 मिलियन बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति खतरे में पड़ सकती है
- तेल और गैस की वैश्विक कीमतें बेकाबू हो सकती हैं
भारतीय अर्थव्यवस्था पर संभावित असर
- यदि युद्ध लंबा खिंचता है, तो भारत की विकास दर 6% के आसपास ही सीमित रह सकती है
- उद्योगों, उपभोक्ताओं और सरकार — सभी पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा
- महंगाई में इजाफा, रुपये में कमजोरी और राजकोषीय घाटे का विस्तार संभव है
निष्कर्ष: एक वैश्विक संकट, भारत के लिए चेतावनी
ईरान-इज़राइल युद्ध सिर्फ पश्चिम एशिया की राजनीति का मामला नहीं है, यह भारत की आर्थिक स्थिरता के लिए भी बड़ा खतरा बन गया है। तेल की बढ़ती कीमतें न सिर्फ सरकार के बजट को प्रभावित करेंगी, बल्कि आम जनता की जेब पर भी बोझ डालेंगी।
यदि जल्द कोई समाधान नहीं निकला, तो भारत को अपने रणनीतिक तेल भंडार और दीर्घकालिक ऊर्जा नीति पर गंभीरता से विचार करना होगा।
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