BY: Yoganand Shrivastava
भोपाल, इंदौर के एक व्यवसायी को अपने रिफाइंड सोया ऑयल टैंकर के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर बीमा क्लेम से इनकार कर दिया गया। बीमा कंपनी ने देरी से सूचना देने का हवाला देकर दावे को खारिज कर दिया। लेकिन मामला जब राज्य उपभोक्ता आयोग पहुंचा, तो आयोग ने बीमा कंपनी को जमकर फटकार लगाई और लगभग सात लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश सुनाया।
क्या था पूरा मामला?
इंदौर के व्यवसायी मेसर्स सीताराम नारायण ने वर्ष 2009 से 2010 के बीच यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से 50 लाख रुपये की मरीन कार्गो ओपन बीमा पॉलिसी ली थी। अगस्त 2010 में उनकी फर्म का एक टैंकर, जो रिफाइंड सोया ऑयल लेकर अशोकनगर से शाजापुर की ओर जा रहा था, बीच रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
व्यवसायी ने बीमा कंपनी को हादसे की जानकारी दी और कंपनी द्वारा नियुक्त सर्वेयर ने घटनास्थल का मुआयना भी किया। इसके बाद भी बीमा कंपनी ने भुगतान से इनकार कर दिया।
बीमा कंपनी का तर्क और उपभोक्ता की आपत्ति
बीमा कंपनी ने दावा किया कि हादसे की सूचना 48 घंटे के भीतर नहीं दी गई, इसलिए व्यवसायी मुआवजे का हकदार नहीं है। लेकिन व्यवसायी का पक्ष यह था कि दुर्घटना रविवार को हुई थी, जिस दिन बीमा कार्यालय बंद रहता है, इसी कारण रिपोर्टिंग में थोड़ी देरी हो गई।
उपभोक्ता आयोग का सख्त रुख
राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष डॉ. श्रीकांत पांडेय और सदस्य मोनिका मलिक की पीठ ने बीमा कंपनी की आपत्ति को तर्कहीन करार देते हुए कहा:
“केवल सूचना में तकनीकी देरी का हवाला देकर बीमा राशि से बचा नहीं जा सकता। बीमा कंपनियों की यह प्रवृत्ति अनुचित और उपभोक्ता अधिकारों के खिलाफ है।”
आयोग ने बीमा कंपनी को 6,97,000 रुपये की बीमा राशि के साथ 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज समेत भुगतान का आदेश दिया।
क्यों है यह फैसला अहम?
यह मामला उन सभी उपभोक्ताओं के लिए मिसाल है जो अक्सर बीमा कंपनियों की तकनीकी दलीलों के चलते न्याय से वंचित रह जाते हैं। उपभोक्ता आयोग का यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि तकनीकी कारणों के नाम पर क्लेम रिजेक्ट करना वैध नहीं है, खासकर जब नुकसान वास्तविक और स्पष्ट हो।