एक ऐसा नाम, जो कभी बंदूकों को झुका देता था और कानून को सलामी देने पर मजबूर करता था। उत्तर प्रदेश की राजनीति, अपराध और ब्राह्मण शक्ति की त्रयी में जो स्थान हरिशंकर तिवारी को मिला, वह किसी किंवदंती से कम नहीं।
🔱 बचपन से ही बगावत की लकीर
हरिशंकर का जन्म एक आम ब्राह्मण परिवार में हुआ, लेकिन उनकी किस्मत ने उन्हें असामान्य रास्ते पर डाल दिया। शांत चेहरा, पर भीतर आग — यही उनकी पहचान बन गई।
- जन्मस्थान: चिल्लूपार, गोरखपुर
- जाति: ब्राह्मण
- स्वभाव: भीतर से विद्रोही, बाहर से विद्वान
“वो ब्राह्मण नहीं, ब्रह्मास्त्र था – जिसे मिट्टी ने नहीं, बारूद ने तराशा था।”
🎓 जब यूनिवर्सिटी बना अपराध की पाठशाला
गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही हरिशंकर तिवारी छात्र राजनीति से जुड़ गए। लेकिन जहाँ बाकी छात्र भाषण देते थे, तिवारी वहाँ रणनीति रचते थे।
- छात्र राजनीति में दबदबा
- सरकारी टेंडर पर वर्चस्व
- रंगदारी बना ‘सम्मान का जरिया’
“तिवारी बोलते नहीं थे, सिर्फ देखते थे — और सामने वाला रास्ता बदल देता था।”
⚖️ Gangster Act की पहली मिसाल बने हरिशंकर तिवारी
साल 1985 में उत्तर प्रदेश सरकार ने Gangster Act लागू किया, और इस कानून का पहला नाम बना — हरिशंकर तिवारी।
- उन पर पहली बार गैंगस्टर एक्ट लगा
- लेकिन सच्चाई ये थी: यह कानून उनके लिए बनाया गया
“जब उत्तर प्रदेश में कानून बना, तो उसका पहला टारगेट तिवारी थे – कानून उन्हें नहीं छूता, वो कानून को अपने हिसाब से झुकाते थे।”
🚔 जेल नहीं, सत्ता का ऑफिस थी
हरिशंकर तिवारी कई बार जेल गए, लेकिन जेल उनके लिए सज़ा नहीं, एक रणनीतिक केंद्र थी। वहीं से वह चुनाव लड़ते, और जीतते भी।
- 5 बार विधायक बने — जेल से भी
- यूपी सरकार में मंत्री बने — कई बार
- जेल से राजनीति को कंट्रोल किया
“वो जेल में थे, पर सत्ता उनके इशारों पर चलती थी।”
🩸 हत्या के आरोप, पर कानून बना मौन
तिवारी के खिलाफ एक के बाद एक संगीन मामले दर्ज हुए — हत्या, गैंगवार, धमकी, ज़मीन कब्जा। लेकिन कोई सज़ा नहीं मिली।
- राजनारायण शुक्ला हत्याकांड
- कई केस लंबित रहे, पर वे बेअसर
“कोर्ट में जज भी कांपते थे, और कानून तिवारी के सिस्टम से हार जाता था।”
🧿 ‘पंडित जी’ – पूर्वांचल का दूसरा नाम
गोरखपुर, देवरिया, बलिया, बनारस — हर इलाके में जब तिवारी का नाम लिया जाता, लोग सिर झुका लेते।
- पुलिस हो या राजनेता, सब उन्हें ‘पंडित जी’ कहते थे
- आदेश उनके थे, अमल सरकार का होता था
“UP में MLA से कोई नहीं डरता था, पर तिवारी की एक नज़र से पूरा सिस्टम कांप जाता था।”
🕯️ अंत नहीं, एक युग का विसर्जन
16 मई 2023 को हरिशंकर तिवारी का निधन हुआ। यह सिर्फ एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं थी, बल्कि पूर्वांचल की एक पूरी आपराधिक राजनीति की विरासत का अंत था।
“अब सिर्फ किस्से बचे हैं, जिनमें ‘हरिशंकर तिवारी’ अब भी ज़िंदा हैं – अपराध, राजनीति और ब्राह्मण सत्ता के प्रतीक रूप में।”
aLSO rEAD: जब नाम से पहले डर आता था – बब्लू श्रीवास्तव
हरिशंकर तिवारी की विरासत: राजनीति और अपराध की जटिल तस्वीर
- ब्राह्मण समाज में उनकी छवि विवादास्पद, फिर भी प्रभावशाली रही
- राजनीति और अपराध का ऐसा संगम कम ही देखने को मिलता है
- पूर्वांचल में तिवारी अब भी एक ‘किंवदंती’ के रूप में याद किए जाते हैं