रिपोर्ट- सुनील कुमार, एडिट- विजय नंदन
हापुड़: लगातार हो रही बारिश ने हापुड़ के दशहरा उत्सव को प्रभावित कर दिया। नगर के रामलीला मैदान में सजाए गए रावण का पुतला तेज हवा और हल्की बारिश के कारण गिर गया। आयोजकों ने मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतलों को भी बारिश से बचाने के लिए पिन्नी से ढक दिया।
स्थानीय लोगों और रामलीला आयोजकों का कहना है कि दहन से पहले ही रावण का पुतला गिर जाना उत्सव के आनंद को प्रभावित कर सकता था। हालांकि, सुरक्षा और बचाव के इंतजामों के चलते किसी को नुकसान नहीं हुआ।

मौसम विभाग ने हापुड़ में कुछ और दिनों तक हल्की बारिश और तेज हवा की संभावना जताई है। आयोजकों ने चेतावनी दी है कि दशहरे के दिन भी सावधानी बरती जाए ताकि पुतलों और दर्शकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
रामलीला मैदान में यह दृश्य दर्शकों के लिए रोमांचक भी रहा और वहीं, बारिश ने उत्सव की तैयारी में आयोजकों की चिंता बढ़ा दी।
दशहरा पर रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले जलाने की परंपरा
दशहरा पर रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले जलाने की परंपरा प्राचीन भारतीय संस्कृति और रामायण की कथा से जुड़ी हुई है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
रामायण के अनुसार, लंका के राजा रावण ने माता सीता का हरण किया था। भगवान राम ने अपने अनुयायियों के साथ मिलकर रावण का संहार किया। दशहरा के दिन रावण, उसके पुत्र मेघनाथ और भाई कुंभकरण के पुतले जलाकर लोगों द्वारा इस महान घटना को स्मरण किया जाता है। रावण अहंकार, लालच और अन्याय का प्रतीक माना जाता है, वहीं मेघनाथ उसकी शक्ति और कुंभकरण आलस्य का प्रतीक हैं।
पुतले जलाने का यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसमें समाज और बच्चों को नैतिक शिक्षा देने का संदेश भी निहित है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और लोगों को अहंकार और पाप से दूर रहने की प्रेरणा देता है। दशहरा के दिन रावण दहन के माध्यम से लोग नए उत्साह और सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवन में अच्छाई को अपनाने का संदेश लेते हैं।