BY: Yoganand Shrivastva
6 मई , भारत की वायुसेना की ताकत बढ़ाने वाले राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर एक अहम मुद्दा फिर चर्चा में है। भारत चाहता है कि उसे इन विमानों का ‘सोर्स कोड’ यानी तकनीकी नियंत्रण और सॉफ्टवेयर कोड मिले, ताकि वह अपने स्वदेशी हथियारों और प्रणालियों को इन फाइटर जेट्स में आसानी से एकीकृत कर सके। लेकिन फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन कंपनी इसके लिए तैयार नहीं दिख रही।
क्यों नहीं देना चाहता फ्रांस राफेल का कोड?
रिपोर्ट्स के अनुसार, डसॉल्ट एविएशन का कहना है कि राफेल का सॉफ्टवेयर सिस्टम उसकी बौद्धिक संपत्ति है, जिस पर उन्होंने वर्षों तक मेहनत की है और भारी निवेश किया है। कंपनी को आशंका है कि अगर वह भारत के साथ यह संवेदनशील कोड साझा करता है, तो अन्य देशों से भी इसी तरह की मांगें उठ सकती हैं, जिससे कंपनी की तकनीकी संप्रभुता कमजोर हो सकती है।
क्या है भारत की मांग का कारण?
India Sentinels की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने यह कोड इसलिए मांगा है ताकि वह Astra Mk-1 मिसाइल, SAAW (Smart Anti-Airfield Weapon) जैसे देश में बने हथियार बिना फ्रांस की मदद के राफेल में इस्तेमाल कर सके। वर्तमान में हर बार किसी नए हथियार को इन विमानों में जोड़ने के लिए फ्रांसीसी इंजीनियरों की मदद लेनी पड़ती है, जिससे समय और संसाधनों की खपत होती है।
पहले भी ऐसा हो चुका है
भारत ने अतीत में मिराज 2000 फाइटर जेट्स भी फ्रांस से खरीदे थे। लेकिन दो दशक बाद भी भारत को उनका कोड नहीं मिल सका, जिससे आज भी मिराज में नए हथियार जोड़ने में फ्रांसीसी सहयोग जरूरी होता है। यही स्थिति राफेल के साथ दोहराने से भारत बचना चाहता है।
राफेल क्यों है रणनीतिक रूप से अहम?
भारत के पास फिलहाल 32 फाइटर स्क्वाड्रन हैं जबकि जरूरत 42 की है। ऐसे में राफेल जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान भारत की सामरिक क्षमता के लिहाज से बहुत अहम हैं। अगर भारत को इसका कोड मिल जाता है, तो वह इन विमानों को उच्च ऊंचाई वाले इलाकों (जैसे लद्दाख) या JF-17 जैसे पाकिस्तानी विमानों के खिलाफ एडवांस इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर के लिए तैयार कर सकता है।
आत्मनिर्भर भारत और रक्षा क्षेत्र
सोर्स कोड प्राप्त करना ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों की दृष्टि से भी जरूरी है। इससे भारत विदेशी कंपनियों पर कम निर्भर होकर खुद अपने हथियार और सॉफ्टवेयर अपडेट कर सकेगा, जिससे सैन्य प्रणाली ज्यादा लचीली और तेज़ हो सकेगी।