दंतेवाड़ा से आज़ाद सक्सेना की ग्राउंड रिपोर्ट
दंतेवाड़ा (किरंदुल)।
दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल क्षेत्र में एनएमडीसी की खदानों के बाहर इस वक्त असंतोष की आग सुलग रही है। सैकड़ों की संख्या में आदिवासी बेरोजगार युवा एनएमडीसी (राष्ट्रीय खनिज विकास निगम) की हालिया भर्तियों में स्थानीयों को प्राथमिकता न मिलने के विरोध में अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए हैं। धरना-प्रदर्शन के चलते लौह अयस्क खदानों का कामकाज पूरी तरह ठप हो गया है।
हमारी टीम मौके पर पहुंची, जहां प्रदर्शनकारियों के बीच आदिवासी नेता मंगल कुंजाम ने आंदोलन की पीड़ा और मांगों को हमारे साथ साझा किया।
“हमने ज़मीन दी, हमें ही क्यों नज़रअंदाज़ किया जा रहा है?” – मंगल कुंजाम
मंगल कुंजाम ने बातचीत में साफ कहा –
“जो ज़मीन हमने एनएमडीसी को दी, उन्हीं खदानों से कंपनी को करोड़ों का मुनाफा हो रहा है। लेकिन उन्हीं गांवों के युवा आज बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। ये घोर अन्याय है।”
उन्होंने कहा कि हाल में जो L-1 और L-2 स्तर की भर्तियां निकाली गई हैं, उनमें ‘लाल पानी’ क्षेत्र के प्रभावित युवाओं को प्राथमिकता नहीं दी गई है। उनकी मांग है कि स्थानीय आदिवासियों को प्रथम वरीयता दी जाए, क्योंकि उनकी आजीविका और अस्तित्व इस परियोजना से जुड़ा हुआ है।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल, एनएमडीसी से वार्ता नहीं
जब उनसे पूछा गया कि क्या प्रशासन या एनएमडीसी ने कोई पहल की है, तो उन्होंने कहा –
“प्रशासन मौके पर है, लेकिन सिर्फ निगरानी के लिए। अब तक कोई ठोस समाधान या वार्ता सामने नहीं आई है।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण है, लेकिन यदि मांगें नहीं मानी गईं तो आंदोलन और उग्र हो सकता है।
खनन कार्य बंद, कर्मचारियों का भी मिल रहा समर्थन
प्रदर्शन का असर किरंदुल और बचेली दोनों परियोजना क्षेत्रों पर साफ दिख रहा है। प्रवेश द्वार बंद कर दिए गए हैं, जिससे खनन पूरी तरह ठप है। मंगल कुंजाम ने बताया कि
“कुछ कर्मचारी भी हमारे समर्थन में हैं। यह केवल आदिवासियों की नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की लड़ाई है।”
क्या समाधान निकलेगा या और भड़केगा आंदोलन?
इस वक्त एनएमडीसी प्रशासन पर यह दबाव है कि वह जल्द से जल्द आंदोलनकारियों से संवाद कर समाधान निकाले, क्योंकि स्थिति यदि ऐसी ही बनी रही तो खनन कार्य बंद रहने से आर्थिक नुकसान के साथ-साथ स्थानीय तनाव और गहराने की आशंका है।





