एक धार्मिक रहस्य कथा
गाँव का रहस्यमयी मंदिर
एक छोटे से गाँव के किनारे, ऊँची पहाड़ी पर माँ दुर्गा का एक प्राचीन मंदिर खड़ा था। मंदिर जर्जर था, सालों से कोई पुजारी वहाँ नहीं आया था, फिर भी उसमें एक छोटा सा दीया हर रात जलता था। गाँववाले इसे चमत्कार मानते थे। कहते थे कि जब तक वो दीया जलता रहेगा, माँ की कृपा गाँव पर बनी रहेगी। मगर उस दीये की लौ के पीछे का सच कोई नहीं जानता था। रात के सन्नाटे में मंदिर से कभी-कभी हल्की-हल्की सीटी की आवाजें आतीं, और लोग डर से वहाँ जाने से कतराते थे।
पहला अध्याय: केशव की मजबूरी
गाँव में केशव नाम का एक गरीब लड़का रहता था। उसकी माँ पिछले कई महीनों से बीमार थी। बुखार और कमजोरी ने उसे बिस्तर से बाँध दिया था। केशव के पिता उसे बचपन में ही छोड़कर चले गए थे। दिनभर जंगल में लकड़ियाँ काटना और उन्हें बेचकर दवा का इंतजाम करना—यही उसकी जिंदगी थी। एक शाम, वैद्य ने हाथ खड़े कर दिए, “केशव, अब सिर्फ माँ दुर्गा ही इसे बचा सकती हैं।”
केशव ने मंदिर की बात सुनी थी—वहाँ सच्चे मन से माँगी गई हर मुराद पूरी होती थी। उसने ठान लिया कि वो माँ से अपनी माँ की सलामती माँगेगा।

दूसरा अध्याय: रात का खतरनाक सफर
रात गहरी थी। आंधी और बारिश ने गाँव को थपेड़ों से भर दिया था। गाँववालों ने उसे रोका, “केशव, मत जा! रात में मंदिर पर भूतों का साया रहता है।” मगर केशव का दिल माँ की साँसों से बंधा था। उसने एक टूटी लालटेन उठाई और पहाड़ी की ओर चल पड़ा।
रास्ता कठिन था। काँटों ने उसके पैर छील दिए, चट्टानों से हाथों से खून रिसने लगा। एक बार तो वो फिसलते-फिसलते गहरी खाई में गिरते-गिरते बचा। मगर वो रुका नहीं। आखिरकार, मंदिर के खुले दरवाजे सामने दिखे। अंदर, माँ दुर्गा की मूर्ति के सामने एक दीया जल रहा था। उसकी लौ हवा में भी स्थिर थी—अडिग, रहस्यमयी।
तीसरा अध्याय: माँ का रहस्यमयी संदेश
केशव मूर्ति के सामने घुटनों पर बैठ गया। आँसुओं से भीगा चेहरा लिए उसने कहा, “माँ, मेरी माँ को बचा लो। मेरे पास कुछ नहीं, पर जो माँगोगी, वो दूँगा।”
तभी मंदिर में हवा का एक ठंडा झोंका आया। दीये की लौ हल्की सी हिली। एक गहरी, ममता भरी आवाज गूंजी, “क्या सच में तू कुछ भी दे सकता है, केशव?”
केशव चौंक पड़ा। उसने चारों ओर देखा—कोई नहीं था। डरते हुए उसने कहा, “हाँ, माँ। कुछ भी।”
आवाज फिर आई, “ठीक है। कल रात तक मुझे जवाब दे कि तू क्या देगा। वादा पूरा न हुआ, तो तेरी माँ की साँसें थम जाएँगी।”
केशव का दिल धक् से रह गया। वो समझ नहीं पाया कि माँ उससे क्या माँग सकती है।
चौथा अध्याय: अनिश्चितता की घड़ियाँ
केशव घर लौटा। उसकी माँ की साँसें हल्की चल रही थीं—शायद माँ दुर्गा ने उसकी प्रार्थना सुन ली थी। मगर वो सवाल उसे कचोटता रहा—वो क्या देगा? उसके पास न धन था, न संपत्ति। क्या माँ उसकी जान माँगेगी? या कुछ ऐसा जो उसके बस से बाहर हो?
दिन ढलता गया। रात करीब आई। केशव का मन डर और आशा के बीच झूलता रहा। आखिरकार, वो फिर मंदिर की ओर चल पड़ा।
पाँचवाँ अध्याय: बलिदान का सच
मंदिर में दीया अभी भी जल रहा था। केशव ने हाथ जोड़े, “माँ, मेरे पास कुछ नहीं। मेरी जान ले लो, पर मेरी माँ को बचा लो।”
तभी मंदिर में तेज रोशनी फैली। माँ दुर्गा की मूर्ति के सामने एक आकृति प्रकट हुई—एक बूढ़ी माँ जैसी। उसने कहा, “केशव, मैं तेरी जान नहीं माँग रही। मैं तो तेरे विश्वास को परख रही थी। मगर एक सच है, जो तुझे जानना जरूरी है।”
केशव ने काँपते स्वर में पूछा, “क्या सच, माँ?”
आकृति ने गहरी साँस ली, “ये दीया, जो हर रात जलता है, तेरी माँ ही जलाती थी। सालों पहले, जब तू छोटा था, उसने मेरे सामने प्रण लिया था कि वो हर दिन मेरी सेवा करेगी, ताकि तुझे कोई दुख न छुए। बीमारी ने उसका शरीर छीन लिया, मगर उसकी आत्मा हर रात यहाँ आती थी। अपनी साँसों की कीमत पर वो ये दीया जलाती थी। आज तू यहाँ आया, तो उसकी आखिरी साँस मेरे पास पहुँच गई।”
छठा अध्याय: माँ का विदाई संदेश
केशव के पैर थरथरा गए। वो दौड़ता हुआ घर पहुँचा। उसकी माँ बिस्तर पर शांत पड़ी थी—उसका चेहरा शांत, साँसें थमी हुई। पास में एक पुरानी चुनरी पड़ी थी, जो वो मंदिर ले जाया करती थी। केशव फूट-फूटकर रो पड़ा। उसने अपनी जान देने की बात कही थी, मगर उसकी माँ ने पहले ही अपनी हर साँस उसके लिए कुर्बान कर दी थी।
अगली सुबह, गाँववाले मंदिर पहुँचे। दीया जल रहा था, और उसकी लौ में एक ममता भरी छाया नजर आई। लोग कहते हैं, वो केशव की माँ थी, जो माँ दुर्गा की सेवा में हमेशा के लिए समा गई।
अनंत ममता का बलिदान
केशव ने फिर कभी मंदिर की ओर मुँह नहीं किया। मगर हर रात, वो दूर से उस दीये की रोशनी देखता और आँसुओं में डूब जाता। उसे एहसास था कि उसकी माँ उसकी हर साँस में बसी है। ये कहानी माँ के त्याग और माँ दुर्गा के रहस्यमयी न्याय की गवाही देती है। हर पाठक के दिल में ये सवाल गूंजेगा—हम अपने प्रियजनों के लिए कितना कुछ छोड़ सकते हैं? और शायद, आँखों में आँसू लिए ये सच सामने आएगा कि माँ की ममता से बड़ा कोई धर्म नहीं।
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