नई दिल्ली | 4 जून 2025 —
दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो (POCSO) एक्ट से जुड़े एक मामले में न्याय की नई मिसाल पेश की है। कोर्ट ने एफआईआर रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए आरोपी को सजा के रूप में अस्पताल में सामुदायिक सेवा करने और सेना कल्याण कोष में दान देने का निर्देश दिया है।
क्या था मामला?
यह केस एक नाबालिग स्कूल छात्रा के यौन उत्पीड़न और धमकी से जुड़ा था। पीड़िता ने आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके आधार पर मामला पॉक्सो कानून के तहत दर्ज हुआ।
- आरोप: यौन उत्पीड़न और धमकी
- शिकायतकर्ता: नाबालिग छात्रा
- कानून: POCSO एक्ट
कोर्ट का फैसला क्यों आया अनोखा?
हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने इस केस में एफआईआर रद्द करते हुए आरोपी को सजा के रूप में सामाजिक सेवा का आदेश दिया।
कोर्ट के आदेश के मुख्य बिंदु:
- आरोपी को लोक नायक जयप्रकाश नारायण (LNJP) अस्पताल में एक महीने तक सामुदायिक सेवा करनी होगी।
- उसे सेना कल्याण कोष (Welfare Fund for War Casualties) में ₹50,000 भी जमा करने होंगे।
क्यों किया गया एफआईआर रद्द?
कोर्ट ने पीड़िता और उसकी मां से विस्तृत बातचीत की। बातचीत में सामने आया कि:
- पीड़िता अब अपने भविष्य और विवाह की संभावनाओं पर ध्यान देना चाहती है।
- लंबित आपराधिक मामला उसके व्यक्तिगत जीवन में बाधा बन रहा था।
- पीड़िता और उसकी मां दोनों इस मामले को खत्म करना चाहती थीं।
आपसी समझौता
दोनों पक्षों के बीच एक आपसी समझौता (Settlement Deed) हुआ:
- पीड़िता ने स्वेच्छा से एफआईआर रद्द करने की सहमति दी।
- उन्होंने कोई मुआवजा नहीं लिया और न ही लेने का इरादा जताया।
- यह स्पष्ट किया गया कि समझौता आपसी सहमति से हुआ है और इसमें कोई दबाव शामिल नहीं है।
न्याय की नई दिशा
इस फैसले ने यह संदेश दिया कि सभी मामलों में सिर्फ सजा नहीं, सुधार और पुनर्वास की सोच भी अपनाई जा सकती है।
- यह फैसला न केवल पीड़िता के भविष्य की रक्षा करता है, बल्कि आरोपी को समाज सेवा से जिम्मेदारी का एहसास भी कराता है।
- कोर्ट ने इस केस में मानवता और व्यावहारिकता को प्राथमिकता दी।