REPORT- AZAD SAXENA , BY- ISA AHMAD,
दंतेवाड़ा: दंतेवाड़ा का दशहरा सबसे प्राचीन दशहरा माना जाता है। यहां हर साल की तरह इस बार भी विजयदशमी पर आस्था और परंपराओं का अद्भुत संगम देखने को मिला। इस अवसर पर गांव और कस्बों के घर-घर में परंपरागत रूप से शस्त्र पूजन किया गया। श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीराम का स्मरण करते हुए अपनी पीढ़ियों से चली आ रही रीति-रिवाजों को निभाया।
रावण के दस सिर और तुरई के फूल
स्थानीय परंपरा के अनुसार, दंतेवाड़ा में विजयदशमी के दिन घरों में गोबर से रावण के दस सिर बनाए जाते हैं। इन सिरों पर तुरई के फूल सजाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीकात्मक रूप प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद परिवारजन मिलकर पूजा-अर्चना और हवन करते हैं।
“श्रीराम-श्रीराम” की चिट्ठी और शस्त्र पूजा
लोग इस मौके पर कागज पर “श्रीराम-श्रीराम” लिखकर भगवान के नाम चिट्ठी लिखते हैं। साथ ही घरों में मौजूद शस्त्रों का पूजन कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। यह अनोखी परंपरा न सिर्फ श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही लोक आस्थाओं को भी जीवित रखती है।
भाई-बहन का रिश्ता और विजय तिलक
विजयदशमी के दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर विजय तिलक लगाती हैं और उनकी लंबी उम्र एवं सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। मिठाई खिलाकर भाई-बहन के इस रिश्ते में मिठास और आत्मीयता का संचार होता है।
अच्छाई की जीत और परंपरा की ताकत
दंतेवाड़ा का विजयदशमी पर्व केवल अच्छाई की जीत का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह परंपराओं, पारिवारिक रिश्तों और सामाजिक एकता को भी मजबूती प्रदान करता है। यही कारण है कि यहां दशहरा सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मनाया जाता है।
क्यों प्रसिद्ध है?
दंतेवाड़ा का दशहरा अपनी अनोखी परंपराओं और धार्मिक महत्व की वजह से बहुत प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में मनाया जाने वाला यह पर्व बस्तर दशहरा कहलाता है और यह देशभर में सबसे लंबे समय तक चलने वाला दशहरा माना जाता है। यहाँ का दशहरा किसी रावण-दहन से जुड़ा नहीं है, बल्कि माँ दंतेश्वरी देवी की पूजा और स्थानीय परंपराओं पर आधारित है।
दंतेवाड़ा (बस्तर) के दशहरे की खासियत
सबसे लंबा उत्सव – बस्तर दशहरा लगभग 75 दिन तक चलता है, जो इसे भारत के सबसे लंबे त्योहारों में शामिल करता है। माँ दंतेश्वरी देवी का महत्व – दंतेवाड़ा स्थित माँ दंतेश्वरी मंदिर को इस उत्सव का केंद्र माना जाता है। देवी को बस्तर की कुलदेवी और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
रथ यात्रा परंपरा – यहाँ विशाल लकड़ी का रथ बनाया जाता है, जिसे हजारों श्रद्धालु रस्सियों से खींचते हैं। इस दौरान पूरा वातावरण भक्ति और उमंग से भर जाता है।
जनजातीय संस्कृति का संगम – बस्तर दशहरे में आदिवासी समाज की अनूठी संस्कृति, नृत्य, संगीत और पारंपरिक रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं।
रावण-दहन नहीं – भारत के अन्य हिस्सों में जहाँ दशहरा रावण-दहन से जुड़ा होता है, वहीं बस्तर दशहरे में देवी शक्ति की आराधना ही मुख्य आकर्षण है।
यह भारत का सबसे लंबा दशहरा है।
माँ दंतेश्वरी देवी की विशेष पूजा और रथयात्रा के कारण इसकी धार्मिक महत्ता है।
अनूठी जनजातीय परंपराएँ और लोक संस्कृति इसे विशिष्ट बनाती हैं।
इसीलिए दंतेवाड़ा (बस्तर) का दशहरा केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे देश में अपनी विशिष्ट परंपराओं और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है।