हर वर्ष जुलाई के पहले शनिवार को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस (International Day of Cooperatives) न सिर्फ सहकारिता आंदोलन की उपलब्धियों को रेखांकित करता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में इसके योगदान को भी सम्मानित करता है। यह दिवस हमें याद दिलाता है कि जब लोग एकजुट होकर सामूहिक भागीदारी से कार्य करते हैं, तो वे अपने समुदायों, आजीविकाओं और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थायी समाधान गढ़ सकते हैं।
इस दिन का उद्देश्य केवल उत्सव नहीं, बल्कि प्रेरणा देना है— कि “सहकारिता केवल आर्थिक ढांचा नहीं, एक वैकल्पिक जीवन दर्शन है।” इस अवसर पर हम जानेंगे कि यह दिवस क्यों मनाया जाता है, इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई, और भारत में अमूल, इफको, नाफेड जैसी कौन-कौन सी प्रमुख संस्थाएं इस सहकारी मॉडल का प्रतिनिधित्व करती हैं।
कब मनाया जाता है सहकारिता दिवस?
- अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस हर साल जुलाई के पहले शनिवार को मनाया जाता है।
- यह दिन अंतरराष्ट्रीय सहकारी आंदोलन के साथ एकजुटता दिखाने और इसके मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित होता है।
सहकारिता दिवस का इतिहास
- इस दिवस की शुरुआत 1923 में इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस (ICA) द्वारा की गई थी।
- इसका उद्देश्य था दुनिया भर की सहकारी संस्थाओं को एक मंच पर लाना और समाज के हर वर्ग को सहयोग से सशक्त बनाना।
क्यों मनाया जाता है सहकारिता दिवस?
इस दिन को मनाने के पीछे एक गहरा उद्देश्य छिपा है – “लोगों के बीच सहयोग की भावना को बढ़ाना, और यह समझाना कि जब लोग साथ मिलकर किसी काम को करते हैं तो न सिर्फ व्यापार बल्कि समाज भी समृद्ध होता है।”
यूएन और इंटरनेशनल को-ऑपरेटिव अलायंस (ICA) ने मिलकर यह दिन मनाने की परंपरा शुरू की थी, ताकि दुनियाभर की सहकारी संस्थाओं के कार्यों और योगदान को मान्यता दी जा सके। 1995 से संयुक्त राष्ट्र की मान्यता प्राप्त यह परंपरा, आज विश्व के सैकड़ों देशों में सामाजिक-आर्थिक विकास का प्रतीक बन चुकी है।
प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
- सहकारिता के मॉडल को प्रमोट करना – यह साबित करना कि को-ऑपरेटिव मॉडल पूंजीवाद और समाजवाद दोनों का संतुलन है।
- स्थानीय से लेकर वैश्विक विकास में सहकारिता की भूमिका को उजागर करना।
- गरीबी, बेरोजगारी, और असमानता जैसी समस्याओं के हल के रूप में सहकारी संस्थाओं को पहचान दिलाना।
- लोगों को यह बताना कि एकजुट होकर काम करने से सामाजिक न्याय और आर्थिक आत्मनिर्भरता संभव है।
कौन-कौन सी संस्थाएं आती हैं सहकारिता के तहत?
भारत में कई प्रतिष्ठित सहकारी संस्थाएं हैं जो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सक्रिय हैं:
प्रमुख सहकारी संस्थाएं:
संस्था का नाम | क्षेत्र | विशेषता |
---|---|---|
अमूल (AMUL) | डेयरी | भारत का सबसे बड़ा डेयरी ब्रांड, सहकारी मॉडल का प्रतीक |
इफ्को (IFFCO) | उर्वरक | देश की सबसे बड़ी उर्वरक सहकारी संस्था |
नेफेड (NAFED) | कृषि विपणन | किसानों के उत्पादों की खरीद और विपणन |
सहकारी बैंक | वित्त | ग्रामीण क्षेत्रों में किफायती ऋण सुविधा |
अपेक्स बैंक | राज्य स्तरीय सहकारिता | ऋण व पुनर्वित्त की सुविधा |
भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (NCCF) | उपभोक्ता वस्तुएं | जनता को सस्ती दरों पर सामान उपलब्ध कराना |
अमूल: सहकारिता का सबसे बड़ा उदाहरण
अमूल (Anand Milk Union Limited) केवल एक ब्रांड नहीं, बल्कि एक आंदोलन है। इसका गठन 1946 में गुजरात में किसानों ने मिलकर किया था ताकि उन्हें दूध का उचित मूल्य मिल सके।
अमूल की सफलता की वजहें:
- किसानों की सहभागिता और स्वामित्व
- पारदर्शिता और लाभ साझा करना
- प्रोसेसिंग से लेकर मार्केटिंग तक, सब कुछ सहकारी नियंत्रण में
- आज यह मॉडल दुनियाभर में अनुकरणीय है
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहकारिता
- दुनियाभर में लाखों लोग सहकारी संगठनों से जुड़े हुए हैं।
- शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, वित्त, और आवास जैसे क्षेत्रों में सहकारिता एक मजबूत विकल्प बनकर उभरी है।
- “कोऑपरेटिव्स फॉर सस्टेनेबल डेवेलपमेंट” जैसी थीम्स के जरिए हर साल सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाई जाती है।
सहकारिता है सशक्त समाज की नींव
सहकारिता दिवस केवल एक आयोजन नहीं, यह एक विचारधारा का उत्सव है जिसमें लोगों का सहयोग, भागीदारी और सामूहिक विकास के प्रति विश्वास झलकता है। चाहे अमूल हो या इफ्को, इन संस्थाओं ने साबित किया है कि मिलकर चलना ही आगे बढ़ने का सबसे स्थायी रास्ता है।