स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी फ्रांस क्यों वापस मांग रहा है?
हाल ही में फ्रांस के एक राजनेता राफेल ग्लक्समैन (Raphaël Glucksmann), जो यूरोपीय संसद के सदस्य और सेंटर-लेफ्ट पार्टी “प्लेस पब्लिक” के सह-अध्यक्ष हैं, ने मार्च 2025 में यह मांग उठाई कि अमेरिका “स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी” को फ्रांस को वापस कर दे। यह मांग वास्तव में एक प्रतीकात्मक बयान था, जिसका आधार वर्तमान अमेरिकी नीतियों और मूल्यों को लेकर उनकी नाराजगी थी।
- विवाद की वजह: ग्लक्समैन का कहना था कि अमेरिका अब उन मूल्यों—स्वतंत्रता, लोकतंत्र और वैज्ञानिक स्वतंत्रता—का प्रतिनिधित्व नहीं करता, जिनके लिए यह प्रतिमा दी गई थी। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों की आलोचना की, खासकर:
- यूक्रेन-रूस संघर्ष में अमेरिका का रुख: ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन को सैन्य सहायता रोक दी थी और रूस के साथ शांति वार्ता में यूक्रेन को शामिल नहीं किया था। ग्लक्समैन, जो यूक्रेन के समर्थक हैं, ने इसे “तानाशाहों का साथ देना” करार दिया।
- वैज्ञानिकों की बर्खास्तगी: ट्रंप प्रशासन ने स्वास्थ्य और जलवायु अनुसंधान से जुड़े सरकारी कर्मचारियों और वैज्ञानिकों की बड़े पैमाने पर छंटनी की, जिसे ग्लक्समैन ने स्वतंत्रता और नवाचार के खिलाफ माना।
- उनका बयान: ग्लक्समैन ने अपने समर्थकों से कहा, “हम उन अमेरिकियों से कहेंगे, जिन्होंने तानाशाहों का पक्ष लिया, जिन्होंने वैज्ञानिक स्वतंत्रता की मांग करने वाले शोधकर्ताओं को निकाला: ‘हमें हमारी स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी वापस दो।’ हमने इसे आपको तोहफे में दिया था, लेकिन लगता है आप इसकी कद्र नहीं करते। यह यहाँ हमारे पास ठीक रहेगी।”
- प्रतीकात्मक मांग: ग्लक्समैन ने यह भी कहा कि फ्रांस उन वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का स्वागत करेगा, जिन्हें अमेरिका ने निकाल दिया। उनकी यह मांग वास्तव में अमेरिका को “जगाने” का एक प्रतीकात्मक तरीका थी, न कि कोई कानूनी या व्यावहारिक कदम।

अमेरिका का जवाब और वर्तमान विवाद
अमेरिकी सरकार ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने 17 मार्च, 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा:
- “बिल्कुल नहीं। मेरी उस फ्रांसीसी नेता को सलाह है कि वह याद रखें कि अगर अमेरिका न होता, तो आज फ्रांस में जर्मन बोली जा रही होती। उन्हें हमारे देश का आभारी होना चाहिए।” (यह द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका की भूमिका का जिक्र था, जब अमेरिका ने फ्रांस को नाजी कब्जे से मुक्त कराने में मदद की थी।)
- कानूनी स्थिति: यूनेस्को के अनुसार, “स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी” अमेरिकी सरकार की संपत्ति है और एक राष्ट्रीय स्मारक है। इसे वापस लेना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। यह न्यूयॉर्क में हर साल 30 लाख से ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करती है।
- विवाद का सार: यह विवाद अमेरिका और फ्रांस के बीच मौजूदा तनाव को दर्शाता है, खासकर ट्रंप की नीतियों को लेकर। यूरोप में कई लोग ट्रंप के यूक्रेन-रूस रुख और वैज्ञानिक अनुसंधान में कटौती से नाराज हैं। ग्लक्समैन का बयान इस नाराजगी का प्रतीक है, लेकिन यह कोई औपचारिक मांग नहीं है जिसे लागू किया जा सके।
- स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी: फ्रांस ने कब और क्यों भेंट की थी?
- “स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी” (स्वतंत्रता की प्रतिमा) फ्रांस के लोगों द्वारा अमेरिका को एक तोहफे के रूप में दी गई थी। इसे 19वीं सदी में बनाया गया था और इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच मैत्री को मजबूत करना था। इसकी कहानी इस प्रकार है:
- कब भेंट की गई?: इस प्रतिमा को फ्रांस ने 4 जुलाई, 1884 को औपचारिक रूप से अमेरिका को सौंपा था। इसे न्यूयॉर्क हार्बर में 28 अक्टूबर, 1886 को आधिकारिक तौर पर स्थापित किया गया, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड ने इसका उद्घाटन किया।
- क्यों भेंट की गई?: यह प्रतिमा अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम (1775-1783) के दौरान फ्रांस और अमेरिका के बीच गठबंधन की याद में दी गई थी। फ्रांस ने उस युद्ध में अमेरिका को सैन्य और वित्तीय सहायता दी थी, जिसके कारण अमेरिका ब्रिटेन से आजादी हासिल कर सका। इसके अलावा, यह अमेरिकी स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ (1776-1876) और दोनों देशों के साझा मूल्यों—स्वतंत्रता और लोकतंत्र—के प्रतीक के रूप में दी गई थी। फ्रांसीसी इतिहासकार और दासता-विरोधी कार्यकर्ता एडोआर्ड डे लाबुले ने 1865 में इस विचार को प्रस्तावित किया था, और फ्रांसीसी मूर्तिकार फ्रेडेरिक ऑगस्टे बार्थोल्डी ने इसे डिजाइन किया।
- निर्माण और प्रतीक: प्रतिमा को फ्रांस में तैयार किया गया और 350 टुकड़ों में अमेरिका भेजा गया। यह रोमन देवी लिबर्टास (स्वतंत्रता की देवी) से प्रेरित है। इसके हाथ में मशाल स्वतंत्रता का प्रकाश और बाईं ओर एक तख्ती पर 4 जुलाई, 1776 की तारीख (अमेरिकी स्वतंत्रता की तिथि) अंकित है। इसके पैरों के पास टूटी हुई जंजीरें दासता के अंत का प्रतीक हैं।
- सहयोग: यह एक संयुक्त परियोजना थी। फ्रांस ने प्रतिमा बनाई, जबकि अमेरिका ने इसके लिए आधार (पेडेस्टल) तैयार किया। दोनों देशों में आम लोगों और धनी व्यक्तियों ने इसके लिए धन जुटाया।
“स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी” फ्रांस और अमेरिका की दोस्ती का प्रतीक थी, जो 1886 में न्यूयॉर्क में स्थापित हुई। यह स्वतंत्रता और लोकतंत्र का संदेश देती थी। लेकिन 2025 में, फ्रांस के एक नेता ने अमेरिका के मौजूदा हालात से नाराज होकर इसे वापस मांगने की बात कही। यह मांग प्रतीकात्मक थी, जिसका मकसद अमेरिका को उसके मूल्यों की याद दिलाना था। अमेरिका ने इसे ठुकरा दिया, और यह विवाद दोनों देशों के बीच वर्तमान राजनीतिक मतभेदों को उजागर करता है।
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