BY: Yoganand Shrivastva
प्रदेश में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्मार्टफोन और इंटरनेट के अनियंत्रित उपयोग की प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ रही है। यह लत बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और नैतिक विकास के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है। बच्चे खेलकूद, पढ़ाई, पारिवारिक संवाद और सहपाठी गतिविधियों से दूर होकर घंटों मोबाइल स्क्रीन पर समय बिता रहे हैं। इसका सीधा असर उनकी एकाग्रता, स्मरणशक्ति, आंखों की सेहत, नींद, व्यवहार और मानसिक संतुलन पर पड़ रहा है।
मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों का कहना है कि अत्यधिक स्क्रीन टाइम बच्चों में डिजिटल निर्भरता, चिड़चिड़ापन, सामाजिक दूरी, अवसाद और सीखने की क्षमता में गिरावट जैसी समस्याएं पैदा कर रहा है। इंटरनेट की अनियंत्रित उपलब्धता के कारण बच्चे अपनी उम्र के अनुपयुक्त गेम, वीडियो, वेबसाइट और वयस्क सामग्री तक आसानी से पहुंच रहे हैं, जिससे उनके मूल्यबोध, व्यवहार और चरित्र निर्माण पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
चिंता की बात यह है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास विभाग सहित संबंधित विभाग अभी तक इस डिजिटल खतरे को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा पाए हैं। अभिभावकों में इस स्थिति को लेकर गहरी चिंता है।
सरकार से मांग : बच्चों की सुरक्षा के लिए तुरंत बनाई जाए समग्र कार्य योजना
समाज और अभिभावकों की मांग है कि सरकार निम्न बिंदुओं पर तत्काल कार्रवाई करे—
- विद्यालयों, आंगनवाड़ी केंद्रों और समुदाय स्तर पर बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
- अभिभावकों के लिए मार्गदर्शन और परामर्श कार्यक्रम शुरू किए जाएं।
- बच्चों को डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट सुरक्षा शिक्षा प्रदान की जाए।
- स्कूलों में स्मार्टफोन उपयोग पर स्पष्ट दिशा-निर्देश और नियंत्रण व्यवस्था लागू की जाए।
- बच्चों की पहुंच से अनुपयुक्त सामग्री को रोकने के लिए कड़े सुरक्षा उपाय किए जाएं।
- विद्यालय और समुदाय स्तर पर मनोवैज्ञानिक सहायता सेवाओं का विस्तार किया जाए।
- खेल, साहित्य, कला और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर बच्चों को रचनात्मक कार्यों की ओर वापस लाया जाए।
बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए एक समग्र, बहु-विभागीय कार्ययोजना तैयार करना अब बेहद आवश्यक हो गया है।





