BY: MOHIT JAIN
अमेरिका में H-1B वीजा की फीस में रिकॉर्ड बढ़ोतरी के बाद अब चीन ने विदेशी टैलेंट, खासकर भारतीय प्रोफेशनल्स को अपनी ओर खींचने के लिए बड़ा कदम उठाया है। बीजिंग ने K-वीज़ा नामक नई कैटेगरी लॉन्च की है, जो 1 अक्टूबर 2025 से लागू होगी।
K-वीज़ा क्या है?

चीन का नया K-वीज़ा उन युवा और प्रतिभाशाली विदेशी प्रोफेशनल्स के लिए बनाया गया है जो STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) फील्ड से जुड़े हैं। इसके लिए उम्मीदवार को चीन या किसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी/रिसर्च संस्थान से बैचलर या उससे ऊपर की डिग्री हासिल करनी होगी।
यह वीजा सिर्फ टेक्नोलॉजी या रिसर्च तक सीमित नहीं रहेगा। धारक शिक्षा, शोध, स्टार्टअप, संस्कृति और बिज़नेस जैसी गतिविधियों में भी हिस्सा ले सकेंगे।
क्यों खास है चीन का K-वीज़ा?
- मौजूदा वीजा कैटेगरी से अधिक लचीला
- मल्टीपल एंट्री और लंबी वैधता की सुविधा
- लंबे समय तक रहने का विकल्प
- सबसे बड़ी बात: आवेदन के लिए किसी चीनी नियोक्ता से इनविटेशन लेटर की ज़रूरत नहीं होगी
यानी यह वीजा स्वतंत्रता और अवसर दोनों देता है, जो इसे अमेरिका के H-1B से कहीं सरल और आकर्षक बनाता है।
अमेरिका बनाम चीन: कौन आगे?

अमेरिका ने हाल ही में H-1B वीजा फीस को 1 लाख डॉलर सालाना कर दिया है। इसका सबसे ज्यादा असर भारतीय आईटी कंपनियों और टेक वर्कर्स पर पड़ने वाला है, क्योंकि 71% H-1B वीजा भारतीयों को जारी होते हैं। वहीं चीन इस मौके का फायदा उठाकर खुद को ग्लोबल टैलेंट का नया ठिकाना बनाने की कोशिश कर रहा है।
चीन पहले ही 55 देशों के नागरिकों को 240 घंटे तक वीज़ा-फ्री ट्रांजिट की सुविधा और 75 देशों के साथ वीजा छूट समझौते कर चुका है। अब K-वीज़ा के जरिए वह साफ संकेत दे रहा है कि उसकी रणनीति ग्लोबल ब्रेन गेन पर केंद्रित है।
भारत पर सीधा असर
भारत से हर साल लाखों युवा अमेरिका में नौकरी और रिसर्च के लिए जाते हैं। H-1B की सख्ती और बढ़ती लागत अब उनके लिए बड़ी चुनौती है। ऐसे में चीन का K-वीज़ा दक्षिण एशियाई, खासकर भारतीय टैलेंट के लिए एक नया विकल्प बन सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि अमेरिका अब भी करियर ग्रोथ और प्रतिष्ठा के लिहाज़ से सबसे बड़ा आकर्षण है, लेकिन चीन का यह कदम लंबी दौड़ में वैश्विक टैलेंट की दिशा बदल सकता है।





