सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई तक मंदिर-मस्जिद से जुड़ा किसी भी प्रकार का मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा। यह बात पूजा स्थल अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश {सीजेआई} ने कहीं। बता दें कि गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट में 1991 के पूजा स्थल अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने याचिका पर केंद्र की ओर से जवाब दाखिल किए जाने के बाद संबंधित पक्षों को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया।
अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर हुइ सुनवाई
उल्लेखनीय है कि सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथ की पीठ ने सुनवाई की। बता दें कि शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें से अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई की सुनवाई हुई। जिन्होंने अपील की है कि पूजा स्थल {विशेष प्रावधान, अधिनियम} 1991 की धारा 2, 3 और 4 को रद्द कर दिया जाए। याचिकाकर्ता का कहना है कि ये तीनों धाराएं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15, 21, 25,26 और 29 का उल्लंघन करती हैं। याचिका के मुताबिक ये सभी हमारे संविधान की मूल भावना और प्रस्तावना के खिलाफ हैं। प्रस्तुत किए गए विभिन्न कारणों में से एक यह तर्क था कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए न्यायिक उपचार के अधिकार को छीन लेते हैं।
1991 में लागू हुआ था कानून
बता दें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव सरकार 1991 में पूजा स्थल कानून लेकर आई थी। इस नए कानून में आजादी से पहले आस्तिव में आए किसी भी धर्म स्थल को किसी दूसरे धर्म स्थल में नहीं बदला जा सकता। ऐसा करने वाले को तीन साल की सजा और जुमाने का प्रावधान रखा था। बता दें कि उस वक्त अयोध्या का मामला कोर्ट में विचाराधीन था इसलिए इस मामले को कानून से बाहर रखा गया था।
इसलिए बनाया यह कानून
बता दें कि उस वक्त राम मंदिर आंदोलन जोरो पर था। जिसके चलते मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे थे। ऐसे विवादों पर विराम लगाने के लिए तत्कालीन सरकार ये कानून लेकर आई थी।