by: vijay nandan
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक नया मोड़ आ गया है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री और सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने एनडीए से नाराज होकर बिहार में अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इसके तहत उन्होंने 64 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और अब वह एनडीए के खिलाफ प्रचार भी करेंगे।
ओपी राजभर क्यों नाराज ?
सुभासपा लंबे समय तक बीजेपी की सहयोगी रही है और माना जा रहा था कि इस बार भी यह गठबंधन का हिस्सा बनेगी। लेकिन राजभर की मांग थी कि बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें 4–5 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का अधिकार मिले। एनडीए ने इस पर सहमति नहीं दी, जिससे ओपी राजभर ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि उन्हें एनडीए में “सम्मान और हिस्सेदारी” नहीं मिल रही थी।

राजभर का प्रभाव और चुनावी समीकरण
राजभर का खास प्रभाव उन जिलों में है, जो यूपी–बिहार सीमा से सटे हैं, जहां ओबीसी और पिछड़ी जातियों की संख्या अच्छी है। सुभासपा की एंट्री से इन सीटों पर वोट बंटने की संभावना है, जिससे एनडीए के उम्मीदवारों को नुकसान हो सकता है। प्रभावित सीटों में सिवान, छपरा, गोपालगंज, बेतिया, बगहा, नरकटियागंज, मोतिहारी, ढाका, केसरिया, कैमूर और रोहतास क्षेत्र शामिल हैं।
एनडीए आम तौर पर इन इलाकों में मजबूत रहती है, लेकिन राजभर के उम्मीदवारों के कारण वोट बंट सकते हैं। वहीं, कुछ जगहों पर महागठबंधन को भी असर पड़ सकता है, लेकिन कुल मिलाकर एनडीए को अधिक नुकसान होने की संभावना है।
पिछड़ा वर्ग और ग्रामीण वोटों पर असर
ओपी राजभर अपनी सीधी और तेज़ भाषण शैली के लिए जाने जाते हैं। उनका प्रचार मुख्य रूप से पिछड़ा वर्ग, गरीब और दलित वोटरों को जोड़ने वाला होता है। बिहार में उनके सक्रिय प्रचार से यह वर्ग तय कर सकता है कि किसे वोट देना है।

बिहार में आधार बढ़ाने की योजना
राजभर का यह कदम सिर्फ वर्तमान चुनाव तक सीमित नहीं है। उनका उद्देश्य बिहार में अपनी पार्टी का आधार मजबूत करना और भविष्य में “किंगमेकर” बनने की स्थिति हासिल करना है। इसका मतलब है कि आगे आने वाले चुनावों में उनकी भूमिका निर्णायक हो सकती है।
बिहार में सुभासपा की एंट्री और ओपी राजभर के प्रचार से अब देखना होगा कि एनडीए की रणनीति कैसे प्रभावित होती है और चुनावी समीकरण किस दिशा में बदलते हैं। सवाल ये भी कि क्या बीजेपी के मनाने पर राजभर मान जाएंगे और एनडीए के समर्थन में अपने उम्मीदवारों को पीछे हटने को कहेंगे, क्योंकि राजनीति में प्रेशर पॉलिटिक्स का खेल काफी पुराना है.





