भोपाल में बाघंबरी मंदिर के पास सरकारी ज़मीन पर बनी एक मज़ार को लेकर विवाद छिड़ गया है। हिंदू संगठनों ने इसे “लैंड जिहाद” बताते हुए ध्वस्त करने की मांग की है। लेकिन क्या यह सच में अतिक्रमण का मामला है—या फिर चुनाव से पहले समाज को बांटने की एक और साजिश?
तथ्य बनाम भ्रम
- आरोप: संगठनों का दावा है कि यह मज़ार हाल ही में अवैध रूप से बनाई गई है।
- हकीकत: स्थानीय लोगों का कहना है कि यह संरचना वर्षों पुरानी है, संभवतः उस समय की जब एक मुस्लिम कर्मचारी को यह आवास आवंटित किया गया था।
चुनिंदा आक्रोश?
- हिंदू संगठन इसे “लैंड जिहाद” की साजिश बता रहे हैं, लेकिन भारत भर में अवैध रूप से बने मंदिरों पर ऐसा हंगामा क्यों नहीं होता?
- मुस्लिम पक्ष का तर्क है कि अगर यह मज़ार गैरकानूनी है, तो सैकड़ों अवैध मंदिरों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए—लेकिन यह बात आरोप लगाने वाले “सुविधाजनक तरीके” से भूल जाते हैं।
राजनीतिक समयबद्धता
- भाजपा-शासित प्रशासन अब तक चुप क्यों है? क्योंकि ऐसे विवाद सरकार की विफलताओं से ध्यान भटकाने का सही तरीका हैं।
- कांग्रेस “निष्पक्ष कार्रवाई” की बात तो करती है, लेकिन यह नहीं बताती कि पिछली सरकारों (खुद उनकी भी) ने इन मुद्दों को क्यों नहीं सुलझाया।
बड़ी तस्वीर
यह मामला सिर्फ़ ज़मीन का नहीं—सांप्रदायिक डर फैलाने की रणनीति का है। “जिहाद” का नारा देकर कुछ लोगों का मकसद है:
- चुनाव से पहले वोटरों को बांटना।
- “हिंदू ज़मीन बचाओ” के नाम पर हिंसा को वैध ठहराना।
- बेरोज़गारी और महंगाई जैसे मुद्दों से ध्यान हटाना।
निष्कर्ष
अगर अवैध निर्माण ही समस्या है, तो सभी धार्मिक संरचनाओं (चाहे वह किसी भी धर्म की हों) पर कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन जब सिर्फ़ एक समुदाय को निशाना बनाया जाता है, तो साफ़ है—यह न्याय नहीं, राजनीति है।
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