स्पेशल: बीजेपी का 46 वां स्थापना दिवस
BY: Vijay Nandan
भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एक ऐसा नाम बन चुकी है जिसने पिछले चार दशकों में संघर्ष, विचारधारा और संगठनात्मक दृढ़ता के बल पर देश की सत्ता के शीर्ष तक पहुंच बनाई है। 6 अप्रैल 2025 को बीजेपी अपना 46वां स्थापना दिवस मना रही है। यह अवसर न केवल एक जश्न है, बल्कि उस लंबी राजनीतिक यात्रा की याद दिलाता है जिसकी शुरुआत एक छोटे राजनीतिक दल के रूप में हुई थी।
नींव और प्रारंभिक यात्रा: जनसंघ से बीजेपी तक
बीजेपी की जड़ें भारतीय जनसंघ में हैं, जिसकी स्थापना 21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने की थी। जनसंघ का उद्देश्य एक राष्ट्रवादी राजनीतिक विकल्प प्रस्तुत करना था, जो कांग्रेस की नीतियों के विपरीत हिंदुत्व, स्वदेशी, और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर आधारित हो।
जनसंघ ने 1952 के पहले आम चुनाव में भाग लिया और धीरे-धीरे देश के कुछ हिस्सों में अपनी पकड़ बनानी शुरू की। डॉ. मुखर्जी की अकाल मृत्यु के बाद पार्टी को पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने आगे बढ़ाया।

जनता पार्टी और फिर से जन्म (1977–1980)
1977 में आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी के विरुद्ध देशभर में असंतोष फैला था। ऐसे में जनसंघ ने अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर ‘जनता पार्टी’ का गठन किया और ऐतिहासिक जीत दर्ज की। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, लेकिन यह गठबंधन अधिक समय तक नहीं टिक सका।
जनसंघ से आए नेताओं की आरएसएस से नाता तोड़ने की मांग ने अंततः जनता पार्टी में विभाजन ला दिया। नतीजतन, 6 अप्रैल 1980 को ‘भारतीय जनता पार्टी’ की स्थापना हुई, और अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उस समय पार्टी के पास लगभग 10 लाख सदस्य थे और संसद में बहुत सीमित उपस्थिति।
प्रारंभिक विफलताएं और फिर उभार (1984–1998)
1984 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में बीजेपी को मात्र 2 सीटें मिलीं। इसके बाद पार्टी ने अपनी रणनीति बदली और राम मंदिर आंदोलन के साथ हिंदुत्व की राजनीति को प्रमुखता दी। लालकृष्ण आडवाणी की 1990 की रथ यात्रा ने पार्टी को जनमानस से जोड़ दिया।
यह वही दौर था जब बीजेपी ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को राजनीतिक एजेंडे के केंद्र में रखा। राम जन्मभूमि आंदोलन, बाबरी विध्वंस और “एक राष्ट्र, एक संस्कृति” जैसे नारों ने पार्टी को जनसमर्थन दिलाने में अहम भूमिका निभाई। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में पार्टी की पकड़ मजबूत हुई।

एनडीए और सत्ता में वापसी (1998–2004)
1998 में बीजेपी ने सहयोगी दलों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) बनाया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई। 1999 में फिर बहुमत मिला और वाजपेयी ने पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया – यह गैर-कांग्रेसी सरकार के लिए पहली बार हुआ।
इस दौरान पोखरण परमाणु परीक्षण, सड़क विकास योजनाएं (गोल्डन क्वाड्रीलैटरल) और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली।
संघर्ष का दौर और पुनर्गठन (2004–2014)
2004 और 2009 में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार बनी। इस अवधि में बीजेपी ने संगठन को मजबूत किया, नए नेताओं को उभारा और आंतरिक पुनर्गठन किया।
नरेंद्र मोदी युग और शिखर की चढ़ाई (2014–अब तक)
2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाकर बीजेपी ने ऐतिहासिक बहुमत हासिल किया – 282 सीटें। 2019 में और बड़ा बहुमत लेकर पार्टी ने 303 सीटें जीतकर दोबारा सत्ता में वापसी की।
इस दौर में भी राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का मुद्दा बीजेपी के राजनीतिक विमर्श का प्रमुख हिस्सा रहा। अनुच्छेद 370 की समाप्ति, तीन तलाक कानून, राम मंदिर निर्माण, नागरिकता संशोधन कानून (CAA) जैसे कदमों ने पार्टी के राष्ट्रवादी एजेंडे को और अधिक मज़बूत किया। इन मुद्दों ने विशेष रूप से युवाओं, शहरी मध्यम वर्ग और हिंदू मतदाताओं के बीच बड़ा प्रभाव डाला।
सदस्यता के मामले में सबसे बड़ी पार्टी
आज बीजेपी न केवल भारत की बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है। पार्टी के पास वर्ष 2024 तक 18 करोड़ से अधिक सक्रिय सदस्य हैं। 2015 में पार्टी ने डिजिटल सदस्यता अभियान चलाया था, जिससे कुछ ही वर्षों में करोड़ों नए सदस्य जुड़े और संगठन की जमीनी पकड़ अभूतपूर्व रूप से मजबूत हुई।
बीजेपी की सफलता के स्तंभ
- संगठनात्मक मजबूती – आरएसएस से जुड़ाव और बूथ स्तर तक सक्रिय कैडर
- विचारधारा – सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और विकास का मिश्रण
- नेतृत्व – वाजपेयी, आडवाणी से लेकर नरेंद्र मोदी तक निर्णायक नेतृत्व
- प्रभावी रणनीति – प्रचार, सोशल मीडिया, और चुनावी प्रबंधन में दक्षता
- राष्ट्रवाद और हिंदुत्व – भावनात्मक जुड़ाव के साथ बड़ी जनभागीदारी
- विकास पर ज़ोर – ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसे नारों के साथ विकास-उन्मुख राजनीति
- सदस्यता विस्तार – व्यापक सदस्यता अभियान और डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष (1980–2025)
- अटल बिहारी वाजपेयी
कार्यकाल: 1980–1986
(बीजेपी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष) - लालकृष्ण आडवाणी
कार्यकाल: 1986–1990
(राम मंदिर आंदोलन और पार्टी के विस्तार में अहम भूमिका) - मुरली मनोहर जोशी
कार्यकाल: 1991–1993 - लालकृष्ण आडवाणी (दोबारा)
कार्यकाल: 1993–1998
(एनडीए के गठन और सत्ता तक पहुंच में योगदान) - कुशाभाऊ ठाकरे
कार्यकाल: 1998–2000 - जाना कृष्णमूर्ति
कार्यकाल: 2001–2002 - वेंकैया नायडू
कार्यकाल: 2002–2004 - लालकृष्ण आडवाणी (तीसरी बार)
कार्यकाल: 2004–2005 - राजनाथ सिंह
कार्यकाल: 2005–2009
(पहली बार अध्यक्ष बने) - नितिन गडकरी
कार्यकाल: 2009–2013 - राजनाथ सिंह (दोबारा)
कार्यकाल: 2013–2014
(नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने के दौरान अध्यक्ष थे) - अमित शाह
कार्यकाल: 2014–2020
(बीजेपी को पूरे देश में संगठनात्मक रूप से मजबूत किया और कई राज्यों में सरकार बनाई) - जेपी नड्डा
कार्यकाल: 2020–वर्तमान (2025 तक)
भारतीय जनता पार्टी का यह सफर सिर्फ एक राजनीतिक दल की सफलता नहीं है, यह विचारधारा, नेतृत्व, संघर्ष और जनसमर्थन की कहानी है। 2 सीटों से शुरू होकर आज देश की सबसे बड़ी पार्टी बनने तक का यह सफर भारतीय लोकतंत्र की भी एक प्रेरक गाथा है। 46वें स्थापना दिवस पर बीजेपी ने यह साबित कर दिया है कि यदि विचार स्पष्ट हो, संगठन मजबूत हो और नेतृत्व निर्णायक हो – तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं होती। राष्ट्रवाद और हिंदुत्व जैसे भावनात्मक मुद्दों के साथ-साथ विकास, सुशासन और संगठनात्मक विस्तार ने इस यात्रा को ऐतिहासिक बना दिया है।