हाल ही में सामने आई खबरों के अनुसार, बांग्लादेश अपनी एक पुरानी वर्ल्ड वॉर II कालीन एयर बेस – लालमोनिर्हाट (Lalmonirhat) को पुनः सक्रिय करने की योजना बना रहा है। इसके पीछे चीन की मदद मिलने की खबरों ने भारत में सुरक्षा चिंताएं बढ़ा दी हैं। इस एयर बेस की खासियत यह है कि यह भारत-बांग्लादेश सीमा से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर है और नजदीक ही सिलिगुड़ी कॉरिडोर (Chicken’s Neck) भी स्थित है, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को मुख्य भारत से जोड़ता है।
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चलिए विस्तार से समझते हैं कि इस मुद्दे की वजह से भारत ने कौन-कौन से कदम उठाए हैं और इसका क्षेत्रीय सुरक्षा पर क्या असर पड़ सकता है।
लालमोनिर्हाट एयर बेस: चीन का संभावित सैन्य कदम
- स्थान और महत्व: लालमोनिर्हाट बांग्लादेश के रंगपुर जिले में स्थित है, जो भारत की सीमा से लगभग 20 किलोमीटर दूर है।
- चीन की भूमिका: यदि चीन इस एयर बेस के नवीनीकरण में सहायता करता है, तो इसके तहत लड़ाकू विमान, रडार, और निगरानी उपकरण भी वहां तैनात हो सकते हैं।
- सिक्योरिटी इम्प्लीकेशंस: इससे चीन को भारत की मुख्य कमजोर कड़ी, सिलिगुड़ी कॉरिडोर के पास सैन्य मौजूदगी स्थापित करने का मौका मिलेगा, जो भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
सिलिगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) का महत्व
- सिलिगुड़ी कॉरिडोर पूर्वोत्तर भारत को बाकी देश से जोड़ने वाला सिर्फ 22 किलोमीटर चौड़ा क्षेत्र है।
- इसे ‘चिकन नेक’ कहा जाता है क्योंकि इसकी सुरक्षा और कनेक्टिविटी भारत के लिए बेहद अहम है।
- नेपाल और भूटान से सटे इस क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति मजबूत है, लेकिन अगर चीन बांग्लादेश के लालमोनिर्हाट एयर बेस से सैन्य सुविधा प्राप्त करता है तो खतरा बढ़ सकता है।
भारत का जवाब: त्रिपुरा के किलाशहर हवाई अड्डे का पुनरुद्धार
- किलाशहर एयरपोर्ट: त्रिपुरा के उत्तरी भाग में स्थित, यह हवाई अड्डा करीब 30 साल से बंद है।
- रणनीतिक महत्व: इसे सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों के लिए पुनः सक्रिय किया जा रहा है। इसका इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर भारतीय वायु सेना के विमानों के लिए किया जाएगा।
- हालिया घटनाक्रम: मई 2025 में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की टीम ने यहां जाकर स्थिति का जायजा लिया और राज्य सरकार के साथ मिलकर आगे की योजना बनाएंगे।
किलाशहर एयरपोर्ट का ऐतिहासिक महत्व
- 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान किलाशहर एयरपोर्ट का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा था।
- यहां से ‘किलो फ्लाइट’ ऑपरेशन शुरू हुआ था, जो बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के लिए एक खास लड़ाकू इकाई थी।
- किलो फ्लाइट में कनाडा और फ्रांस निर्मित लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर शामिल थे, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में हुआ।
- इस एयरपोर्ट से ही बांग्लादेश वायु सेना की नींव रखी गई।
बांग्लादेश में राजनीतिक बदलाव और भारत के लिए चुनौतियां
- पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के अगस्त 2024 में सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश में चीन और पाकिस्तान के साथ रिश्ते मजबूत हो रहे हैं।
- नई सरकार, जिसमें नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस शामिल हैं, भारत के लिए कम अनुकूल मानी जा रही है।
- इस राजनीतिक बदलाव के कारण भारत के लिए बांग्लादेश की सीमा पर सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई हैं।
निष्कर्ष: क्षेत्रीय सुरक्षा और रणनीति का नया दौर
- चीन के बांग्लादेश में सैन्य विस्तार की कोशिशों को देखते हुए भारत अपनी रणनीतिक और सैन्य तैयारियों को मजबूत कर रहा है।
- पूर्वोत्तर भारत में एयरपोर्ट और हवाई आधारों का पुनरुद्धार क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी कदम साबित होगा।
- सुरक्षा और कूटनीति दोनों स्तरों पर भारत को सतर्क रहना होगा ताकि अपनी सीमाओं और राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सके।