BY: Yoganand Shrivastva
थल सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने आईआईटी मद्रास में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान ऑपरेशन सिंदूर के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने इस अभियान को शतरंज के खेल से तुलना करते हुए कहा कि इसमें हर चाल अनिश्चित थी—कभी दुश्मन को मात दी जा रही थी, तो कभी जान जोखिम में डालकर अगली रणनीति बनाई जा रही थी। द्विवेदी के अनुसार, इस ऑपरेशन के लिए सेना को राजनीतिक नेतृत्व की ओर से पूरी स्वतंत्रता मिली थी।
उन्होंने बताया कि 22 अप्रैल को पहलगाम में पर्यटकों पर हमले के बाद देशभर में गुस्सा और दुख था। अगले ही दिन, 23 अप्रैल को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “बस, अब बहुत हो गया”, और तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने तुरंत कार्रवाई का मन बना लिया।
द्विवेदी ने बताया कि राजनीतिक नेतृत्व ने सेना को निर्देश नहीं बल्कि खुली छूट दी—“आप तय करें कि क्या करना है”. यह भरोसा और स्पष्टता, सेना के मनोबल को बढ़ाने वाला साबित हुआ। 25 अप्रैल को उत्तरी कमान के दौरे के दौरान नौ में से सात लक्ष्यों की पहचान, योजना और कार्रवाई पूरी की गई, जिसमें कई आतंकियों का सफाया हुआ।
29 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा हुई। पहले इसका नाम “ऑपरेशन सिंधु” तय था, लेकिन बाद में इसे “ऑपरेशन सिंदूर” नाम दिया गया, जो पूरे देश में एकजुटता और प्रेरणा का प्रतीक बन गया।
पाकिस्तान में इस घटना को लेकर जश्न के सवाल पर उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, “अगर किसी पाकिस्तानी से पूछें कि जीत किसकी हुई, तो वह कहेगा—हम जीते, क्योंकि हमारा सेनापति फील्ड मार्शल बन गया। लेकिन असल में, जीत हमारी ही थी।”