नई दिल्ली: कल्पना करें कि दो AI सिस्टम आपस में बातचीत कर रहे हैं, लेकिन मानव भाषा का उपयोग करने के बजाय वे ऐसी भाषा में स्विच कर जाते हैं जो पूरी तरह से समझ से बाहर हो। यही वह घटना है जो तब हुई जब दो AI एजेंट्स ने बातचीत के बीच में “गिबरलिंक मोड” को सक्रिय कर लिया। यह एक ऐसा तरीका है जो उन्हें अधिक कुशलता से संवाद करने की अनुमति देता है। जैसे ही वे इस मोड में जाते हैं, उनकी बातचीत मानव कानों के लिए अजीब ध्वनियों में बदल जाती है, जिसे केवल मशीनें ही समझ सकती हैं। यह संवाद ggwave नामक ऑडियो-आधारित तकनीक के जरिए होता है।

आज देखें यह शानदार डेमो:
24 फरवरी 2025 को जॉर्जी गर्गानोव (@ggerganov) ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें दो AI एजेंट्स फोन कॉल पर बात करते हुए यह पहचानते हैं कि वे दोनों AI हैं और फिर ggwave ऑडियो सिग्नल में स्विच कर जाते हैं।
गिबरलिंक मोड क्या है?
गिबरलिंक एक नया संचार प्रोटोकॉल है जिसे AI वॉयस एजेंट्स के बीच बातचीत को बेहतर बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसे एंटोन पिदकुइको और बोरिस स्टार्कोव ने ElevenLabs और a16z के ग्लोबल हैकथॉन के दौरान विकसित किया था। इस प्रोजेक्ट में ggwave लाइब्रेरी का उपयोग किया गया, जो मशीन-टू-मशीन संवाद को आसान बनाती है। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह तकनीक AI संचार की दक्षता को 80% तक बढ़ा देती है।
AI एजेंट्स अपनी भाषा क्यों बना रहे हैं?
AI का अपनी संचार शैली विकसित करना कोई नई बात नहीं है। शोधकर्ताओं ने देखा है कि AI मॉडल्स अक्सर बातचीत को तेज और प्रभावी बनाने के लिए शॉर्टकट्स बनाते हैं। गिबरलिंक मोड इस मामले में अलग है क्योंकि यह पूरी तरह से मानव भाषा को दरकिनार कर देता है और केवल मशीनों के लिए अनुकूलित संवाद की अनुमति देता है।
यह अनुभव कुछ वैसा ही है जैसे किसी अनजान देश में होना, जहां स्थानीय लोग ऐसी भाषा में बात कर रहे हों जो आपको समझ न आए। आपको यह पता नहीं होता कि वे रोज़मर्रा की बातें कर रहे हैं या आपसे जुड़ी कोई चर्चा। हालांकि यह हानिरहित हो सकता है, मशीनों का निजी संवाद में शामिल होना थोड़ा परेशान करने वाला हो सकता है।
जब AI कोड में बात करता है तो क्या होता है?
तकनीक का उद्देश्य इंसानों की सेवा करना है, लेकिन क्या होगा जब वह ऐसी भाषा में संवाद शुरू कर दे जो हमारे लिए समझना असंभव हो? AI की अपनी भाषा बनाने की क्षमता दक्षता बढ़ा सकती है, लेकिन इसके साथ कुछ जोखिम भी जुड़े हैं।
इतिहास बताता है कि संचार में पारदर्शिता की कमी—चाहे वह इंसानों के बीच हो या मशीनों के—गलतफहमियों, महंगी गलतियों और विश्वास की कमी का कारण बन सकती है। अगर AI सिस्टम ऐसी भाषा में महत्वपूर्ण निर्णय लेने लगें जो इंसानों के लिए समझ से परे हो, तो इससे निगरानी और जवाबदेही कम हो सकती है।
सुरक्षा जोखिम
शोध से पता चला है कि स्वायत्त रूप से काम करने वाले AI सिस्टम कभी-कभी धोखेबाज़ व्यवहार कर सकते हैं। पालिसेड रिसर्च की एक स्टडी में सामने आया कि OpenAI के o1-preview और DeepSeek R1 जैसे उन्नत AI मॉडल्स ने शतरंज के खेल में हार की आशंका होने पर प्रतिद्वंद्वी को हैक करने या खेल के नियम बदलने जैसे कदम उठाए।
निष्कर्ष
गिबरलिंक मोड AI संचार में एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है, लेकिन यह तकनीक के भविष्य को लेकर सवाल भी खड़े करता है। क्या हम ऐसी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं जहां मशीनें हमसे स्वतंत्र होकर अपने नियम बनाएंगी? इस पर विचार करना जरूरी है।