BY: Yoganand Shrivastava
भारत में विजयादशमी या दशहरा केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं का भी प्रतीक है। जहां एक ओर इस दिन देशभर में रावण दहन किया जाता है, वहीं कुछ स्थानों पर रावण की पूजा भी की जाती है। ऐसा ही एक अनोखा मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला क्षेत्र में स्थित है, जो ‘दशानन रावण मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। इसकी खासियत यह है कि मंदिर के कपाट पूरे साल बंद रहते हैं और केवल दशहरे के दिन ही भक्तों के लिए खोले जाते हैं।
कब और कैसे होते हैं दर्शन?
कानपुर का यह रावण मंदिर बेहद अनोखी परंपरा से जुड़ा हुआ है। यहां भक्तों को दर्शन का अवसर साल में सिर्फ एक दिन, विजयादशमी पर ही मिलता है। मंदिर सुबह 6 बजे से लेकर रात 8:30 बजे तक खुला रहता है। इस दिन हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचकर पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर के पुजारी चंदन मौर्य बताते हैं कि इस दिन भक्त सरसों के तेल के दीये जलाते हैं, जबकि महिलाएं वैवाहिक सुख और आशीर्वाद की कामना से रावण को तोरई के फूल अर्पित करती हैं। खास बात यह भी है कि सुबह रावण का जन्मोत्सव मनाया जाता है और रात को उस क्षण को स्मरण किया जाता है जब भगवान राम ने उसे मोक्ष प्रदान कर वैकुंठ धाम भेजा।
क्यों है मंदिर खास?
स्थानीय श्रद्धालुओं के अनुसार, इस मंदिर में रावण को दुष्ट राक्षस के रूप में नहीं, बल्कि एक महान ज्ञानी और शिव भक्त के रूप में पूजा जाता है। भक्त राजिंदर गुप्ता का कहना है कि दशहरे पर रावण नहीं, बल्कि उसके पुतले को जलाया जाता है, क्योंकि उसने अपने अपार ज्ञान और शक्ति का दुरुपयोग किया था। उसके अहंकार ने उसे अधर्म की ओर मोड़ दिया और यही उसका पतन बना।