REPORT- KISAN LAL VISHWAKARMA
BY- ISA AHMAD
साल में एक दिन खुला माता रिक्छिन मंदिर
मगरलोड क्षेत्र के करेली छोटी गांव में दशहरा के दिन परंपरागत रूप से माता रिक्छिन मंदिर के पट खोले गए। लगातार बरसती बारिश के बावजूद हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने पहुंचे और आस्था का अनूठा नजारा देखने को मिला।
माता रिक्छिन की पौराणिक मान्यता
ग्रामवासियों के अनुसार, माता रिक्छिन को बस्तर की देवी माना जाता है। वर्षों पहले महानदी में आई बाढ़ के दौरान लकड़ी की एक टोकरी बहकर आई थी। उसी रात गांव के पांच लोगों को सपने में देवी ने दर्शन देकर इस गांव में स्थापना की इच्छा जताई और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दिया। इसके बाद ग्रामीणों ने माता की मूर्ति को मलगुजार दाऊ के बांडे में स्थापित कर दिया।
मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली देवी
तब से लेकर आज तक श्रद्धालु माता रिक्छिन के मंदिर में संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य और जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए मन्नतें मांगते हैं। मनोकामना पूरी होने पर भक्त माता को बकरे की बलि और नारियल समर्पित करते हैं।
साल में केवल एक दिन खुलता है मंदिर
माता रिक्छिन मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके पट पूरे साल में सिर्फ विजयादशमी (दशहरा) के दिन ही खुलते हैं। इस दिन भक्त दूर-दूर से आकर देवी के दर्शन करते हैं। ग्रामीण मान्यता है कि माता की बैरक स्वयं निकलकर शीतला मंदिर तक जाती है, और इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
आस्था का जनसैलाब
बरसते पानी और कठिन हालात के बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था देखने लायक रही। हजारों की भीड़ माता के जयकारों के साथ करेली छोटी में उमड़ पड़ी। हर ओर भक्ति और आस्था का माहौल दिखाई दिया।