BY: MOHIT JAIN
भारत में दशहरा या विजयादशमी का पर्व हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार शारदीय नवरात्रि के समापन के अगले दिन मनाया जाता है और इसे अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक माना जाता है।
दशहरे पर पूरे देश में रावण दहन होता है और भगवान श्रीराम की विजयगाथा का स्मरण किया जाता है। आइए जानते हैं इस पर्व का धार्मिक महत्व और इससे जुड़ी प्रमुख पौराणिक कथाएं।
भगवान श्रीराम और रावण की कथा

दशहरा मनाने के पीछे सबसे प्रसिद्ध कहानी भगवान श्रीराम से जुड़ी है।
- जब राम 14 वर्षों के वनवास में थे, तब लंका के राजा रावण ने माता सीता का हरण कर लिया।
- प्रभु राम ने हनुमान जी को सीता की खोज के लिए भेजा। हनुमान ने रावण को समझाया, लेकिन उसने सीता जी को लौटाने से मना कर दिया।
- इसके बाद भगवान राम ने नौ दिन तक मां दुर्गा की पूजा की और दशमी तिथि पर रावण का वध कर धर्म की स्थापना की।
इसी विजय के कारण इस दिन को विजयादशमी कहा जाता है। साथ ही रावण के साथ उसके भाई कुंभकरण और पुत्र मेघनाद के पुतले भी जलाए जाते हैं।
मां दुर्गा और महिषासुर की कथा
दशहरा का एक और महत्वपूर्ण पहलू मां दुर्गा और महिषासुर की कथा से जुड़ा है।
- कहा जाता है कि महिषासुर नामक राक्षस ने देवताओं को पराजित कर दिया था।
- देवताओं की प्रार्थना पर मां दुर्गा ने चंडी का रूप धारण किया और नौ दिनों तक युद्ध किया।
- दसवें दिन उन्होंने महिषासुर का वध कर देवताओं को संकट से मुक्त कराया।
तभी से दशमी के दिन को विजयादशमी के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसी दिन दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन भी होता है।
दशहरे का संदेश: अच्छाई की जीत

दशहरा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि एक गहरा संदेश भी देता है
- बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में हारती है।
- धर्म, सत्य और न्याय की राह कठिन हो सकती है, लेकिन विजय हमेशा अच्छाई की होती है।
चाहे वह भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध हो या मां दुर्गा द्वारा महिषासुर का संहार, दोनों ही कथाएं हमें यही सिखाती हैं कि सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है।
दशहरा 2025 न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी खास है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी चुनौतियां क्यों न हों, सही राह पर चलने वाला व्यक्ति अंततः विजयी होता है।