BY: Yoganand Shrivastva
नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ को स्वार्थ और भय की मानसिकता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि यह सोच केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर भी संघर्षों को जन्म देती है। भागवत का कहना है कि अगर दुनिया को वास्तविक शांति चाहिए तो “मैं-मेरा” की जगह “हम-हमारा” का दृष्टिकोण अपनाना होगा।
“स्वार्थ की मानसिकता वैश्विक समस्याओं की जड़”
भागवत का यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत से रूसी तेल खरीद के बहाने लगाए गए भारी टैरिफ के बाद आया है। नागपुर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह नीतियां डर पर आधारित हैं।
“दुनिया को लगता है कि भारत बड़ा होगा तो उनका क्या होगा। यही डर टैरिफ लगाने और दूरी बनाने का कारण बनता है। हम अगर सबको अपना मानें, तो कोई दुश्मन ही नहीं रहेगा।”
“भारत का उद्देश्य केवल ताकतवर बनना नहीं”
RSS प्रमुख ने कहा कि भारत ने खुद को पहचान लिया है और उसका लक्ष्य केवल आर्थिक या राजनीतिक शक्ति हासिल करना नहीं है, बल्कि दुनिया को संतुलन और राहत देना है।
उन्होंने कहा,
“हम बड़ा देश हैं, हमें और भी मजबूत होना है, लेकिन ताकत का इस्तेमाल दूसरों को दबाने के लिए नहीं होगा। समय-समय पर जब दुनिया को आत्मा और मानवीय मूल्यों की कमी महसूस होती है, भारत को आगे आकर उसे पूरा करना होता है।”
“संतोष धन भारत की असली ताकत”
भागवत ने भारतीय समाज की जीवनशैली और मूल्यों की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि भारत आज भी संसाधनों की कमी के बावजूद संतोषी समाज है।
“भारत में आज भी गरीब मजदूर भी पेड़ों की छांव में चैन से सो लेता है, जबकि विदेशों में करोड़पति भी नींद की गोली लिए बिना नहीं सोते। यह संतोष का धन भारत की सबसे बड़ी पूंजी है।”
उन्होंने कहा कि भारत पहले से ही समृद्ध है, लेकिन उसकी असली समृद्धि भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक है।
भारत का संदेश दुनिया के लिए
भागवत ने साफ कहा कि भारत का उद्देश्य विश्व को भय और प्रतिस्पर्धा से दूर कर सहयोग और मानवीयता का रास्ता दिखाना है।
“भारत का कर्तव्य है कि वह अभावों से जूझती दुनिया को राहत दे, संतुलन लाए। यही हमारे अस्तित्व का कारण है