BY: Yoganand Shrivastava
पेरिस/तेहरान: इज़राइल और ईरान के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव ने एक और खतरनाक मोड़ ले लिया है। इज़राइली खुफिया ऑपरेशन में ईरान के 14 प्रमुख परमाणु वैज्ञानिकों के मारे जाने की खबर ने खलबली मचा दी है। इन वैज्ञानिकों में भौतिक विज्ञानी, रसायनशास्त्री और सैन्य इंजीनियर शामिल थे, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम की रीढ़ माने जाते थे। इस ऑपरेशन के पीछे इज़राइल की स्पष्ट मंशा है — ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकना।
इज़राइल के फ्रांस में राजदूत जोशुआ ज़ार्का के मुताबिक, 13 जून से शुरू हुए अभियान में ईरान के भीतर विशेष ठिकानों पर निशाना साधा गया और एक-एक कर 14 वैज्ञानिकों को मार गिराया गया। इसके साथ ही इज़राइल और अमेरिका ने ईरान की परमाणु स्थलों पर हवाई हमले भी किए, जिनमें बंकर-बस्टर बमों का उपयोग किया गया।
क्या रुकेगा ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम?
भले ही यह हमला ईरान के हथियार कार्यक्रम को बड़ा झटका लगता हो, लेकिन विशेषज्ञों की राय कुछ और है। लंदन के थिंक टैंक के विशेषज्ञ मार्क फिट्जपैट्रिक कहते हैं,
“ईरान के पास अभी भी प्रशिक्षित वैज्ञानिक, योजनाएं और संसाधन हैं। हां, प्रोग्राम को कुछ वर्षों की देरी हो सकती है, लेकिन इसे पूरी तरह रोका नहीं जा सकता।”
इसी तरह, जिनेवा के परमाणु विश्लेषक पावेल पोडविग ने चेतावनी दी,
“यदि समृद्ध यूरेनियम और आवश्यक तकनीकी उपकरण बरकरार हैं, तो ईरान फिर से प्रोग्राम शुरू कर सकता है।”
कानूनी और नैतिक बहस भी तेज
विज्ञान जगत और अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषज्ञों के बीच एक नई बहस छिड़ गई है — क्या वैज्ञानिकों की हत्या एक वैध सैन्य रणनीति मानी जा सकती है?
एमोरी लॉ स्कूल की प्रोफेसर लॉरी ब्लैंक का कहना है,
“अगर वैज्ञानिक सक्रिय रूप से सैन्य उद्देश्यों के लिए काम कर रहे थे, तो उन्हें लक्ष्य बनाना तकनीकी रूप से जायज माना जा सकता है। लेकिन यह अभी भी एक बहुत ही खतरनाक उदाहरण पेश करता है।”
2020 में भी ईरान के सबसे वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या का आरोप इज़राइल पर लगा था।
ईरान का जवाब और बढ़ता तनाव
हमले के बाद ईरान ने भी ताबड़तोड़ मिसाइल हमलों से जवाबी कार्रवाई की। इससे यह साफ है कि पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर पहुंच चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटनाक्रम क्षेत्रीय स्थिरता के लिए बेहद खतरनाक है और किसी भी समय यह पूरा टकराव एक खुली जंग में तब्दील हो सकता है।
डर की रणनीति, लेकिन क्या असरदार?
इज़राइल का कहना है कि यह ऑपरेशन सिर्फ मौजूदा वैज्ञानिकों को खत्म करने के लिए नहीं था, बल्कि एक चेतावनी भी है —
“भविष्य में जो भी ईरान के न्यूक्लियर मिशन से जुड़ना चाहेगा, वह दो बार सोचेगा,”
ऐसा ज़ार्का ने बयान में कहा।
लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह रणनीति स्थायी समाधान नहीं है। ब्रिटेन के विदेश सचिव डेविड लैमी ने कहा,
“दशकों का वैज्ञानिक ज्ञान और राष्ट्र की महत्वाकांक्षा को हम सिर्फ बम से नहीं मिटा सकते। इसका समाधान केवल बातचीत है।”
इज़राइल के हमलों ने निश्चित रूप से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को एक बड़ा झटका दिया है, लेकिन इसे रोकने की गारंटी नहीं है। इस ऑपरेशन ने तकनीकी, कूटनीतिक, कानूनी और नैतिक सवालों का एक जटिल जाल खड़ा कर दिया है।
क्या वैज्ञानिकों को निशाना बनाना सही है?
क्या इससे परमाणु प्रसार रुकेगा या और तेज़ होगा?
और क्या बातचीत अब भी संभव है?
ये सभी सवाल फिलहाल हवा में हैं, लेकिन इतना तय है — परमाणु हथियारों की दौड़ अब और खतरनाक मोड़ ले चुकी है।