BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा इन दिनों एक गंभीर विवाद के केंद्र में हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े पर्याप्त तथ्यों के आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। इस रिपोर्ट के आधार पर उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की गई है।
विवाद की शुरुआत: मार्च 2025 में लगी आग और कैश का खुलासा
सारा मामला तब उजागर हुआ जब मार्च 2025 में दिल्ली के 30 तुगलक क्रेसेंट स्थित एक सरकारी आवास में अचानक आग लग गई। यह घर जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास के रूप में दर्ज था। आग लगने की सूचना मिलते ही दिल्ली फायर सर्विस और दिल्ली पुलिस की टीमें मौके पर पहुंचीं।
जहां एक ओर आग बुझाने की प्रक्रिया चल रही थी, वहीं वहां मौजूद अधिकारियों ने जो दृश्य देखा, उसने सभी को चौंका दिया। स्टोर रूम में बड़ी मात्रा में नकदी बिखरी हुई थी, जिनमें से कई नोट आंशिक रूप से जले हुए थे। यह दृश्य बाद में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और एक बड़े सवाल को जन्म दिया — क्या यह काली कमाई थी?
सुप्रीम कोर्ट की जांच कमेटी की जांच
जैसे ही मामला सार्वजनिक हुआ, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने तत्काल एक तीन सदस्यीय न्यायिक समिति गठित की। इस समिति में शामिल थे:
- जस्टिस शील नागू (मुख्य न्यायाधीश, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट)
- जस्टिस जी.एस. संधावालिया (मुख्य न्यायाधीश, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट)
- जस्टिस अनु शिवरामन (जज, कर्नाटक हाईकोर्ट)
जांच के प्रमुख बिंदु:
- समिति ने 10 दिनों में 55 गवाहों से पूछताछ की।
- 14 मार्च की रात 11:35 बजे आगजनी स्थल का निरीक्षण किया गया।
- 64 पेज की रिपोर्ट में विस्तार से सभी तथ्यों का उल्लेख किया गया है।
- समिति ने यह पुष्टि की कि कैश जस्टिस वर्मा के कब्जे वाले स्टोर रूम में पाया गया।
- यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि स्टोर रूम पर वर्मा और उनके परिवार के सक्रिय या गुप्त नियंत्रण की पुष्टि होती है।
गवाहों के बयान: “इतनी नकदी कभी नहीं देखी”
समिति के समक्ष कई गवाहों ने नकदी के ढेर के बारे में अपने बयान दर्ज कराए। एक चश्मदीद ने कहा:
“मैं जैसे ही कमरे में दाखिल हुआ, देखा कि दायीं ओर और सामने 500-500 रुपए के नोटों का बड़ा ढेर फर्श पर पड़ा है। जीवन में पहली बार इतना कैश देखा।”
कुल 10 गवाहों ने जले हुए या अधजले नोटों को अपनी आंखों से देखने की पुष्टि की।
सबूत नष्ट करने की कोशिश?
जांच रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस वर्मा के निजी सचिव राजिंदर सिंह कार्की और उनकी बेटी दीया वर्मा पर सबूत मिटाने और सफाई के प्रयासों में भूमिका निभाने का संदेह है।
- कार्की पर आरोप है कि उन्होंने फायरमैन को निर्देश दिया था कि वे अपनी रिपोर्ट में “नोटों के जलने” और “सफाई कार्य” का उल्लेख न करें।
- हालांकि उन्होंने इससे इनकार किया, लेकिन अन्य गवाहों और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों ने उनके बयान को खारिज कर दिया।
क्या अगला कदम होगा महाभियोग?
जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर यह सुझाव दिया गया है कि जस्टिस यशवंत वर्मा को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाए। सुप्रीम कोर्ट की अनुशंसा के बाद मामला अब राष्ट्रपति और संसद की प्रक्रिया के अंतर्गत आएगा।
अगर संसद में बहुमत के साथ प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो उन्हें पद से हटा दिया जाएगा — यह प्रक्रिया भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में दुर्लभ मानी जाती है।
तबादला पहले ही हो चुका था
इस मामले के सामने आने से पहले ही जस्टिस वर्मा का स्थानांतरण दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया था। हालांकि तब यह तबादला सामान्य माना गया, अब इसे संदिग्ध घटनाक्रम से जोड़कर देखा जा रहा है।
भारतीय न्यायपालिका पर बड़ा सवाल?
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर भारतीय न्यायपालिका की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर सवाल खड़ा कर दिया है। जब एक उच्च न्यायाधीश के आवास में नकदी का इस तरह मिलना सामने आता है, तो यह आम जनता में संस्था की छवि को गहरा धक्का पहुंचाता है।
अब यह देखना होगा कि:
- क्या सरकार और संसद इस रिपोर्ट पर जल्द कार्रवाई करेंगी?