दिल्ली हाई कोर्ट ने सद्गुरु जग्गी वासुदेव के पक्ष में एक ऐतिहासिक और अहम फैसला सुनाया है। यह निर्णय न केवल सद्गुरु की पहचान की सुरक्षा करता है, बल्कि बौद्धिक संपत्ति और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर हो रहे दुरुपयोग के खिलाफ एक सख्त संदेश भी देता है।
फैसले की मुख्य बातें
- सद्गुरु की पहचान – आवाज, चेहरा, पहनावा और बोलने का अंदाज़ – उनकी बौद्धिक संपत्ति है।
- इनकी अनुमति के बिना किसी भी रूप में, खासकर AI के माध्यम से, इनका उपयोग गैरकानूनी है।
- फर्जी वीडियो चलाने वाली कई वेबसाइट्स और यूट्यूब चैनलों को बंद करने का आदेश।
- सोशल मीडिया कंपनियों और सरकारी विभागों को कार्रवाई के निर्देश।
क्यों आया यह फैसला?
हाल ही में कुछ वेबसाइट्स और सोशल मीडिया अकाउंट्स पर देखा गया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके सद्गुरु की आवाज और वीडियो को मॉडिफाई किया जा रहा है। इन्हें इस तरह से पेश किया जा रहा है जैसे वे असली हों, जबकि वे पूरी तरह से नकली हैं।
सद्गुरु ने इस पर आपत्ति जताते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी कि उनकी पहचान का गलत और अवैध उपयोग किया जा रहा है।
कोर्ट ने क्या कहा?
1. “सद्गुरु की पहचान विशेष है”
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सद्गुरु का चेहरा, उनकी आवाज़, पहनावा और बोलने का अंदाज़ “अद्वितीय और व्यक्तिगत” हैं। इनकी नकल या अनुकरण बिना अनुमति के करना पूरी तरह से अवैध है।
2. “AI से फैल सकता है गलत सूचना का वायरस”
कोर्ट ने चिंता जताई कि अगर इस तरह की फेक कंटेंट को रोका नहीं गया, तो ये इंटरनेट पर गलत सूचना की महामारी की तरह फैल सकती है।
वेबसाइट्स और सोशल मीडिया पर सख्ती
- कई फर्जी वेबसाइट्स और यूट्यूब चैनलों को बंद करने का आदेश दिया गया है जो सद्गुरु के नाम और पहचान का दुरुपयोग कर रहे थे।
- सोशल मीडिया कंपनियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे ऐसे अकाउंट्स की जानकारी कोर्ट और अधिकारियों को दें।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय, साथ ही टेलीकॉम विभाग को भी कहा गया है कि वे ऐसी वेबसाइट्स और अकाउंट्स को ब्लॉक करें।
बौद्धिक संपत्ति की सुरक्षा का मुद्दा
बढ़ता खतरा: डिजिटल युग में पहचान की चोरी
कोर्ट ने कहा कि आज के टेक्नोलॉजी-प्रभावित दौर में इनोवेटर्स और प्रसिद्ध हस्तियों के लिए खतरा और भी बढ़ गया है। जिनके पास बौद्धिक संपदा है, उनके खिलाफ इस तरह की ‘ठगी’ या ‘डुप्लिकेशन’ बड़ी चुनौती बन चुकी है।
हाइड्रा-हेडेड वेबसाइट्स – बड़ी परेशानी
कोर्ट ने खासतौर पर ऐसी वेबसाइट्स की पहचान की जो बार-बार नए नाम या डोमेन लेकर वापस लौट आती हैं। इन्हें “हाइड्रा-हेडेड” करार देते हुए कोर्ट ने कहा:
- ये वेबसाइट्स अपने रजिस्ट्रेशन और संपर्क जानकारी को छिपा लेती हैं।
- इन्हें एक बार ब्लॉक करने के बाद भी ये छोटे बदलाव करके फिर से सामने आ जाती हैं।
आगे क्या?
इस मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर को निर्धारित की गई है। तब तक कोर्ट द्वारा दिए गए सभी निर्देशों को लागू करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
इस फैसले का महत्व
यह निर्णय सिर्फ सद्गुरु के लिए नहीं, बल्कि उन सभी व्यक्तियों और ब्रांड्स के लिए मिसाल है जो अपने चेहरे, आवाज़ या पहचान को लेकर सोशल मीडिया और इंटरनेट पर मौजूद हैं।
डिजिटल युग में फेक कंटेंट और AI के दुरुपयोग से बचाव अब पहले से कहीं ज़्यादा जरूरी हो गया है।