Vijay Diwas 1971 History: जब 13 दिनों में घुटनों पर आ गया पाकिस्तान,और हुआ बांग्लादेश का जन्म

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Vijay Diwas 1971

Vijay Diwas 1971: जब घुटनों पर आ गया पाकिस्तान
16 दिसंबर 1971 भारतीय इतिहास का वह स्वर्णिम दिन है, जिसने न सिर्फ एक युद्ध का अंत किया बल्कि दक्षिण एशिया का नक्शा ही बदल दिया। इसी दिन ढाका में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना और मित्र वाहिनी के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण किया। लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष जनरल ए.ए.के. नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ हथियार डाले। यह विश्व इतिहास का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था और इसी क्षण बांग्लादेश नामक नए राष्ट्र का जन्म हुआ।

Vijay Diwas: जब 13 दिन भारत से चली जंग ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया,  ऐसे हुआ बांग्लादेश का जन्म | Vijay Diwas Indo Pak War 1971 history know how  Bangladesh was born

1947 से शुरू हुई बंटवारे की त्रासदी
इस ऐतिहासिक विजय की जड़ें 1947 में जाती हैं, जब धर्म के आधार पर पाकिस्तान बना। यह नया देश दो हिस्सों में बंटा था-पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। आबादी का बहुमत पूर्वी पाकिस्तान में था, जहां बांग्ला भाषा बोली जाती थी, लेकिन सत्ता, सेना और प्रशासन पर पश्चिमी पाकिस्तान का कब्जा था। बांग्ला भाषा को राष्ट्रीय भाषा मानने से इनकार कर दिया गया और सरकारी कामकाज में उसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई। यही भेदभाव आगे चलकर विद्रोह की चिंगारी बना।

भाषा आंदोलन: पहचान की लड़ाई
1948 में ढाका में जिन्ना ने साफ कहा कि पाकिस्तान की एकमात्र राजकीय भाषा उर्दू होगी। इस घोषणा ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को आक्रोश से भर दिया। 1952 में बांग्ला भाषा के सम्मान के लिए छात्रों ने आंदोलन किया, जिसमें कई युवाओं की जान चली गई। यह आंदोलन सिर्फ भाषा का नहीं था, बल्कि सम्मान, पहचान और अधिकारों का संघर्ष था।

आर्थिक और राजनीतिक शोषण की पराकाष्ठा
पूर्वी पाकिस्तान को लगातार आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से हाशिए पर रखा गया। संसाधन वहां से आते रहे, लेकिन विकास पश्चिमी पाकिस्तान में होता रहा। प्रशासन और पुलिस भी अक्सर बंगालियों के खिलाफ खड़ी नजर आती थी। इस अन्याय ने लोगों के भीतर असंतोष को विद्रोह में बदल दिया।

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अवामी लीग और शेख मुजीबुर्रहमान का उदय
इस असंतोष को राजनीतिक दिशा मिली अवामी लीग और उसके नेता शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में। उन्होंने समान अधिकार, आर्थिक न्याय और स्वायत्तता की मांग उठाई। 1965 की भारत-पाक जंग के बाद उन्होंने खुलकर दोनों हिस्सों के समान विकास की बात कही। इससे पश्चिमी पाकिस्तान के शासक वर्ग बौखला गए और 1968 में उन्हें ‘अगरतला षड्यंत्र’ केस में फंसा दिया गया।

1970 का चुनाव: जनादेश को कुचलने की कोशिश
1970 के आम चुनाव में अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान की लगभग सभी सीटें जीत लीं। जनादेश साफ था कि शेख मुजीबुर्रहमान प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन याह्या खान और जुल्फिकार अली भुट्टो ने सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया। इसी के विरोध में 7 मार्च 1971 को ढाका के रेसकोर्स मैदान में मुजीब का ऐतिहासिक भाषण हुआ, जिसने स्वतंत्रता की नींव रख दी।

7 March Speech of Sheikh Mujibur Rahman - Wikipedia

ऑपरेशन सर्चलाइट: जब इंसानियत शर्मसार हुई
25 मार्च 1971 की रात पाकिस्तानी सेना ने ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ शुरू किया। ढाका खून से लाल हो गया। विश्वविद्यालयों में छात्रों की हत्या हुई, बुद्धिजीवियों, हिंदुओं और महिलाओं को निशाना बनाया गया। यह नरसंहार इतना भयावह था कि लाखों लोग जान बचाकर भारत की ओर भागे। शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उन्हें शहीद बनने से बचाने के लिए जिंदा रखा गया।

भारत पर बढ़ता दबाव और इंदिरा गांधी की रणनीति
कुछ ही महीनों में एक करोड़ से ज्यादा शरणार्थी भारत आ गए। असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा पर भारी बोझ पड़ा। उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के अत्याचारों को उजागर किया, लेकिन दुनिया चुप रही। ऐसे में भारत ने मानवीय और सामरिक दोनों मोर्चों पर तैयारी शुरू की।

जब भारत युद्ध में उतरा
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा पर हमला किया। इसके बाद भारत पूरी ताकत से युद्ध में उतरा। थलसेना, वायुसेना और नौसेना ने मिलकर पूर्वी मोर्चे पर तेज अभियान चलाया। मुक्ति वाहिनी के सहयोग से पाकिस्तानी सेना की रीढ़ तोड़ दी गई।

13 दिन की जंग और ऐतिहासिक आत्मसमर्पण
महज 13 दिनों में युद्ध का फैसला हो गया। 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण किया। 93 हजार सैनिकों ने हथियार डाले और बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। यह न सिर्फ सैन्य विजय थी, बल्कि भारत की कूटनीति, रणनीति और मानवता की जीत भी थी।

Vijay Diwas 2020: भारत ने 13 दिनों में ही जीत ली थी 1971 की जंग, चटाई थी  PAK को धूल - vijay diwas 2020 know how india won the war of 1971-mobile

आज का संदर्भ: इतिहास से सबक
54 साल बाद बांग्लादेश एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा से जूझ रहा है। ऐसे समय में विजय दिवस हमें याद दिलाता है कि जब किसी राष्ट्र में भाषा, पहचान और लोकतंत्र को कुचला जाता है, तो इतिहास खुद को दोहराता है। 16 दिसंबर सिर्फ जीत का दिन नहीं, बल्कि न्याय, साहस और मानवता के पक्ष में खड़े होने की मिसाल है।

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