1975 की इमरजेंसी: भारत का वो दौर जब लोकतंत्र खतरे में था

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इमरजेंसी 1975

1975 की इमरजेंसी: भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय, जो भारत को ‘चीन’ बना सकता था

भारत के इतिहास में 25 जून 1975 की तारीख हमेशा एक काले अध्याय के रूप में याद की जाती है। आज उस आपातकाल (Emergency) को पूरे 50 साल पूरे हो चुके हैं। 1975 से 1977 के बीच लागू इमरजेंसी ने भारतीय लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आज़ादी और नागरिक अधिकारों को जिस तरह कुचला, वह आज भी लोकतंत्र समर्थकों के ज़ेहन में डर और सबक दोनों के रूप में मौजूद है।

Contents
1975 की इमरजेंसी: भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय, जो भारत को ‘चीन’ बना सकता थाइमरजेंसी: सिर्फ सत्ता बचाने का खेल नहीं, बल्कि लोकतंत्र खत्म करने की योजना थीइंदिरा गांधी की योजना: भारत को ‘वन पार्टी सिस्टम’ की ओर धकेलने की कोशिश“इमरजेंसी का पूरा फायदा उठाओ” — इंदिरा गांधी को मिली खुली सलाह“इंदिरा गांधी को आजीवन राष्ट्रपति बना दो” — नेताओं की मांगइलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: असली वजह या सिर्फ बहाना?संविधान बदलने की साज़िश: 42वां संशोधन और ‘फ्रेश लुक’ दस्तावेजकिस्मत ने भारत को बचाया: इमरजेंसी की साज़िश नाकाम रहीआज का भारत: लोकतंत्र जिंदा है, क्योंकि इमरजेंसी सफल नहीं हुईनिष्कर्ष: असली खतरा क्या है?

इस लेख में हम उस दौर की सच्चाई, इमरजेंसी के पीछे की असली मंशा और भारत को ‘वन पार्टी सिस्टम’ यानी ‘एक पार्टी का देश’ बनाने की खतरनाक कोशिश को विस्तार से समझाएंगे।


इमरजेंसी: सिर्फ सत्ता बचाने का खेल नहीं, बल्कि लोकतंत्र खत्म करने की योजना थी

जब भी इमरजेंसी का ज़िक्र होता है, ज़्यादातर लोग इसे सिर्फ एक राजनीतिक कदम मानते हैं, जो इंदिरा गांधी ने सत्ता में बने रहने के लिए उठाया था। लेकिन हकीकत इससे कहीं ज्यादा गंभीर थी।

उस समय देश में ऐसा सिस्टम लागू करने की तैयारी थी, जिससे:

✅ भारत में सिर्फ एक पार्टी की सत्ता रह जाती
✅ सभी संवैधानिक ताकतें राष्ट्रपति के पास होतीं
✅ संसद, अदालतें और विपक्ष महज़ दिखावा बनकर रह जाते

अगर यह योजना पूरी तरह सफल हो जाती, तो आज भारत भी चीन की तरह होता — जहां कम्युनिस्ट पार्टी का एकछत्र शासन है और आम जनता की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पाबंदी है।


इंदिरा गांधी की योजना: भारत को ‘वन पार्टी सिस्टम’ की ओर धकेलने की कोशिश

इतिहासकार श्रीनाथ राघवन की चर्चित किताब “Indira Gandhi and the Years that Transformed India” में विस्तार से बताया गया है कि इमरजेंसी लागू होने के बाद किस तरह इंदिरा गांधी और उनके करीबी सत्ता की पूरी संरचना बदलने की तैयारी में जुट गए थे।

पुस्तक के अनुसार:

  • शीर्ष नौकरशाह और कांग्रेस के वफादार नेता राष्ट्रपति शासन लागू करने की रूपरेखा बना रहे थे
  • सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को कमजोर करने की योजना थी
  • संसद की ताकत कम करने की कोशिशें तेज़ थीं
  • इंदिरा गांधी को आजीवन राष्ट्रपति बनाने की चर्चा खुलेआम होने लगी थी

“इमरजेंसी का पूरा फायदा उठाओ” — इंदिरा गांधी को मिली खुली सलाह

सितंबर 1975 में इंदिरा गांधी के सहयोगी बी. के. नेहरू ने एक चिट्ठी लिखी। इसमें उन्होंने इंदिरा गांधी से साफ कहा:

“The Emergency should be taken advantage of while it lasts.”

मतलब, जब इमरजेंसी लागू है, तब संविधान और राजनीतिक व्यवस्था में ऐसे बदलाव कर लो जिससे सत्ता हमेशा के लिए आपके पास रहे।

बी. के. नेहरू ने सुझाव दिया कि:

  • भारत में सीधे जनता द्वारा चुना गया राष्ट्रपति होना चाहिए
  • राष्ट्रपति को संसद पर निर्भर नहीं रहना चाहिए
  • राष्ट्रपति कठोर फैसले लेने में सक्षम होना चाहिए

यह मॉडल फ्रांस की शासन व्यवस्था से प्रेरित था, जहां ज़्यादातर ताकतें राष्ट्रपति के पास होती हैं।


“इंदिरा गांधी को आजीवन राष्ट्रपति बना दो” — नेताओं की मांग

उस समय कांग्रेस के बड़े नेता खुलकर इंदिरा गांधी को जीवनभर सत्ता में बनाए रखने की बात कर रहे थे। हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने कहा था:

“हटाओ चुनावी बकवास को, और हमारी बहन जी इंदिरा गांधी को जिंदगी भर राष्ट्रपति बना दो।”

सिर्फ सत्ता बचाने के लिए नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र को ध्वस्त करने की सोच थी।


इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: असली वजह या सिर्फ बहाना?

बहुत से लोग मानते हैं कि 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का दोषी ठहराया, इसलिए उन्होंने इमरजेंसी लागू की। लेकिन सच्चाई यह है कि इमरजेंसी की योजना इससे पहले ही बन चुकी थी।

पत्रकार कूमी कपूर की किताब “The Emergency: A Personal History” में खुलासा होता है कि:

  • पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी को 6 महीने पहले ही पत्र लिखा था
  • उन्होंने विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियों और इमरजेंसी लगाने का सुझाव दिया था
  • मंशा थी, विपक्ष को कुचलकर कांग्रेस की स्थायी सत्ता सुनिश्चित करना

संविधान बदलने की साज़िश: 42वां संशोधन और ‘फ्रेश लुक’ दस्तावेज

इमरजेंसी के दौरान सरकार ने खुलेआम संविधान बदलने की तैयारी शुरू कर दी थी। दिसंबर 1975 में ‘A Fresh Look at Our Constitution’ नाम का दस्तावेज सामने आया, जिसमें तीन बड़े सुझाव दिए गए:

  1. प्रधानमंत्री और कैबिनेट की सामूहिक जवाबदेही खत्म करना
  2. संसद को सिर्फ दिखावे तक सीमित करना
  3. ‘Supreme Council of Judiciary’ बनाना, जिससे अदालतें सरकार के नियंत्रण में आ जातीं

इसका मतलब, विपक्ष का खात्मा, अदालतों की स्वतंत्रता पर ताला और सत्ता की पूरी चाबी एक पार्टी — कांग्रेस — के हाथ में।


किस्मत ने भारत को बचाया: इमरजेंसी की साज़िश नाकाम रही

हालांकि, भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं में कुछ लोग उस समय भी जागरूक थे। लॉ कमीशन के चेयरमैन जस्टिस पी. बी. गजेंद्र गडकर ने चेतावनी दी:

“अगर सिर्फ कांग्रेस के नेताओं की कमेटी संविधान बदलेगी तो यह लोकतंत्र के खिलाफ होगा।”

इस विरोध के चलते इंदिरा गांधी की योजना पूरी तरह सफल नहीं हो पाई। हालांकि, 42वें संविधान संशोधन के जरिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और राज्यों की शक्तियों को कम कर दिया, लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने बाद में इन बदलावों को पलट दिया।


आज का भारत: लोकतंत्र जिंदा है, क्योंकि इमरजेंसी सफल नहीं हुई

अगर इंदिरा गांधी की योजना पूरी तरह लागू हो जाती, तो आज भारत में:

  • सिर्फ एक पार्टी की सत्ता होती
  • विपक्ष का नामोनिशान मिट चुका होता
  • अभिव्यक्ति की आज़ादी खत्म हो चुकी होती
  • मानवाधिकार सिर्फ किताबों में होते

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज:

✅ 6 राष्ट्रीय पार्टियां सक्रिय हैं
✅ 50 से ज़्यादा क्षेत्रीय पार्टियां लोकतंत्र को मजबूती देती हैं
✅ प्रधानमंत्री मोदी से लेकर राष्ट्रपति तक की खुलकर आलोचना होती है
✅ ब्लॉक स्तर पर भी सरकार की नीतियों पर सवाल उठते हैं

यह भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती है।


निष्कर्ष: असली खतरा क्या है?

आज जब कोई नेता, चाहे राहुल गांधी हों या कोई और, संविधान को खतरे में बताते हैं, तो हमें 1975 की इमरजेंसी याद करनी चाहिए। क्योंकि इतिहास गवाह है, संविधान असली खतरे में तब था, जब सत्ता में बैठे लोग उसे ही पलटने की कोशिश कर रहे थे।

यह देश की किस्मत थी कि इमरजेंसी का वो सपना पूरा नहीं हुआ। नहीं तो भारत भी आज ‘चीन’ जैसा होता — एक पार्टी, एक नेता और जनता की आवाज़ पर ताला।

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