Mohit Jain
Tansen Samaroh के नाम से प्रसिद्ध अखिल भारतीय तानसेन समारोह का 101वां संस्करण 15 दिसंबर से ग्वालियर में भव्य रूप से शुरू होने जा रहा है। यह आयोजन भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा को समर्पित है और इस वर्ष इसे ऐतिहासिक माना जा रहा है। देश-विदेश के ख्यातिप्राप्त कलाकारों की मौजूदगी में 18 दिसंबर तक संगीत, कला और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। मुख्यमंत्री के मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने की संभावना भी जताई जा रही है।
Tansen Samaroh में 114 कलाकारों की सहभागिता
उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक प्रकाश सिंह ठाकुर के अनुसार, इस बार तानसेन समारोह में देशभर से कुल 114 कलाकार भाग ले रहे हैं। इनमें पद्मविभूषण, पद्मश्री और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित संगीतज्ञ शामिल हैं। ग्वालियर के विभिन्न 10 स्थानों पर नियमित संगीत सभाएं आयोजित की जा रही हैं, जिससे पूरा शहर संगीत के रंग में रंग गया है।
संगीत के साथ सजीव चित्रांकन और पेंटिंग प्रदर्शनी

Tansen Samaroh केवल संगीत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कला के अन्य रूपों को भी विशेष स्थान दिया गया है। संस्कृति विभाग के उप संचालक अमित यादव के अनुसार, समारोह के दौरान हजीरा स्थित तानसेन समाधि स्थल पर सजीव चित्रांकन का आयोजन किया जा रहा है। सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक चलने वाले इस आयोजन में शहर के 30 कलाकारों के साथ राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय और ललित कला संस्थान के 50 छात्र-छात्राएं हिस्सा लेंगे।
इसके अलावा, देशभर के 76 कलाकारों की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी, जो संगीत रसिकों के लिए विशेष आकर्षण होगी।
देशभर के ललित कला संस्थानों की भागीदारी
इस वर्ष के तानसेन समारोह में इंदौर, धार, खंडवा, जबलपुर सहित कई शहरों से 24 ललित कला कलाकार और 10 राष्ट्रीय स्तर के कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। इनमें भोपाल, पुणे, जयपुर, भुवनेश्वर, दिल्ली, मुंबई और उदयपुर जैसे शहरों के प्रसिद्ध कलाकार शामिल हैं। यह आयोजन भारतीय कला और संस्कृति की विविधता को एक मंच पर प्रस्तुत करता है।
प्रमुख संगीत सभाओं का विस्तृत कार्यक्रम

15 दिसंबर से शुरू होकर 19 दिसंबर तक चलने वाले Tansen Samaroh में प्रतिदिन प्रातः और सायंकालीन सभाएं होंगी। शहनाई, ध्रुपद, संतूर, सरोद, बांसुरी, वायलिन और तबला जैसे वाद्ययंत्रों की मनमोहक प्रस्तुतियां होंगी।
पद्मविभूषण अमजद अली खान, पद्मश्री सुमित्रा गुहा, संजीव अभ्यंकर, शिवनाथ-देवब्रत मिश्र जैसे दिग्गज कलाकार इस समारोह की शोभा बढ़ाएंगे। गूजरी महल और हजीरा जैसे ऐतिहासिक स्थलों पर आयोजित सभाएं आयोजन को और भी खास बनाती हैं।
तानसेन समारोह का सांस्कृतिक महत्व
तानसेन समारोह केवल एक संगीत उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की जीवंत परंपरा का प्रतीक है। यह आयोजन नई पीढ़ी को संगीत से जोड़ने और कलाकारों को राष्ट्रीय मंच देने का कार्य करता है। ग्वालियर की पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने में भी इसका बड़ा योगदान है।
हर सभा की शुरुआत ध्रुपद गायन से ही होती है
तानसेन समारोह की एक विशिष्ट और गौरवशाली परंपरा यह है कि हर सभा की शुरुआत ध्रुपद गायन से ही होती है। ध्रुपद भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे प्राचीन और गंभीर गायन शैली मानी जाती है, जिसे शुद्धता, अनुशासन और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। तानसेन स्वयं ध्रुपद परंपरा के महान साधक थे, इसी कारण उनके नाम पर आयोजित इस समारोह में ध्रुपद को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।

हर सुबह और शाम की संगीत सभा में सबसे पहले ध्रुपद गायन की प्रस्तुति होती है, जिससे पूरे वातावरण में एक पवित्र और ध्यानमय भाव स्थापित हो जाता है। इसके बाद अन्य शास्त्रीय विधाओं की प्रस्तुतियां होती हैं। ध्रुपद की आलाप, जो बिना ताल के होती है, श्रोताओं को संगीत की गहराई से जोड़ती है और कलाकार तथा श्रोता के बीच एक आत्मिक संवाद स्थापित करती है।
यह परंपरा न केवल तानसेन की संगीत विरासत को सम्मान देती है, बल्कि नई पीढ़ी को भारतीय शास्त्रीय संगीत की मूल जड़ों से भी परिचित कराती है। यही कारण है कि तानसेन समारोह में ध्रुपद गायन को केवल एक प्रस्तुति नहीं, बल्कि संगीत साधना की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
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101वें तानसेन समारोह के माध्यम से ग्वालियर एक बार फिर भारतीय शास्त्रीय संगीत की राजधानी के रूप में उभर रहा है। 114 कलाकारों की प्रस्तुतियां, सजीव चित्रांकन, पेंटिंग प्रदर्शनी और विविध संगीत सभाएं इस आयोजन को अविस्मरणीय बनाएंगी। 15 से 18 दिसंबर तक चलने वाला यह संगीत महाकुंभ न केवल संगीत प्रेमियों के लिए, बल्कि भारतीय संस्कृति को समझने वालों के लिए भी एक अनमोल अनुभव साबित होगा।





