सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चंद्रभान सनाप को बरी कर दिया, जिसे मुंबई की 23 वर्षीय टेकी (सॉफ्टवेयर पेशेवर) के बलात्कार और हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी। सनाप को 2015 में एक विशेष महिला अदालत ने इस भयावह अपराध के लिए दोषी ठहराया और मृत्युदंड दिया था। सनाप ने बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील कर अपनी मौत की सजा को चुनौती दी, लेकिन उसकी अपील खारिज कर दी गई। हाई कोर्ट के फैसले के बाद, उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले में कमियों का हवाला देते हुए उसकी सजा को पलट दिया।
पूरा मामला क्या है ?
चंद्रभान सनाप को 2015 में एक विशेष अदालत ने मुंबई की एक प्रमुख आईटी फर्म में कार्यरत 23 वर्षीय सॉफ्टवेयर पेशेवर के बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी ठहराया था और मृत्युदंड सुनाया था। न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और भारती डांगरे की पीठ ने कहा कि 2012 के दिल्ली गैंगरेप मामले (जहां पीड़िता एक पैरामेडिकल छात्रा थी) के बाद बलात्कार कानूनों को सख्त बनाने के लिए आपराधिक संशोधन किया गया था, लेकिन मुंबई के शक्ति मिल्स रेप केस और देश भर में यौन हिंसा के अनगिनत मामले अभी भी जारी हैं।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 5 जनवरी 2014 को पीड़िता काम से छोटे ब्रेक के दौरान अपने माता-पिता से मिलने के बाद आंध्र प्रदेश के अपने गृहनगर से मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस रेलवे स्टेशन पहुंची। सुबह लगभग 5 बजे, उसकी मुलाकात स्टेशन के बाहर सनाप से हुई, जिसने उसे 300 रुपये के बदले में अपनी मोटरसाइकिल पर एंडेरी स्थित वाईडब्ल्यूसीए हॉस्टल तक छोड़ने का प्रस्ताव दिया, जहां वह रहती थी।
पीड़िता ने उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। हालांकि, रास्ते में सनाप ने उसे कांजुरमार्ग के पास एक सुनसान जगह पर ले जाकर बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, सनाप ने उसके शव को आंशिक रूप से जलाया और पूर्वी एक्सप्रेस हाईवे के पास झाड़ियों में फेंक दिया। 14 जनवरी को पीड़िता के परिवार को उसका शव मिला।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अभियोजन पक्ष के सबूतों में गंभीर कमियों को देखते हुए सनाप को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि मामले में सबूतों की कड़ी पूरी तरह से स्थापित नहीं हो पाई, जिसके चलते सनाप को दोषमुक्त करना पड़ा। यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में सबूतों के महत्व को रेखांकित करता है।
यौन हिंसा और महिला सुरक्षा पर चिंता
इस मामले ने एक बार फिर देश में यौन हिंसा और महिला सुरक्षा के मुद्दे को गंभीरता से उठाया है। 2012 के निर्भया मामले के बाद कानूनों को सख्त बनाया गया था, लेकिन ऐसे मामले अभी भी समाज के सामने एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं।