रिपोर्टर: अभय मिश्रा
मऊगंज जिले का गोपला गांव आज उन हकीकतों को उजागर कर रहा है, जिन्हें देखकर हर किसी का दिल पसीज जाए। शिक्षा का अधिकार कानून और विकास के तमाम सरकारी दावे यहां बेबस नज़र आते हैं।
यहां बच्चे और शिक्षक खुद फावड़ा व टोकरी लेकर रास्ता बनाने को मजबूर हैं, ताकि बारिश के दिनों में जान जोखिम में डालकर भी स्कूल पहुंच सकें।
बच्चों के हाथों में किताब नहीं, फावड़ा क्यों?
- स्थान: हनुमना जनपद की ग्राम पंचायत गोपला, जिला मऊगंज
- समस्या: स्कूल तक जाने के लिए सुरक्षित रास्ता नहीं
- स्थिति: अधूरा पुल, चार साल से रुका हुआ निर्माण
- परिणाम: बरसात में नदी उफान पर आती है, कई बार स्कूल बंद करना पड़ता है
जिस उम्र में इन बच्चों के हाथों में किताब और कॉपी होनी चाहिए, वहां वे मिट्टी ढोकर रास्ता बना रहे हैं। उनके साथ शिक्षक भी मजबूरी में मजदूर बन गए हैं।
अधूरा पुल बना बाधा
गांव में पुल निर्माण का काम चार साल पहले शुरू हुआ था। लेकिन भ्रष्टाचार और लापरवाही की भेंट चढ़कर यह अधूरा ही रह गया।
- बरसात में नदी खतरनाक रूप ले लेती है।
- बच्चे और शिक्षक स्कूल नहीं जा पाते।
- कई बार शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह ठप हो जाती है।
ग्रामीण और छात्रों का दर्द
ग्रामीणों की बाइट:
“हमने बार-बार प्रशासन से पुल पूरा करने की मांग की, लेकिन आज तक काम अधूरा पड़ा है। हमारे बच्चों की जान हर दिन खतरे में रहती है।”
छात्रों की बाइट:
“स्कूल जाने के लिए हमें खुद रास्ता बनाना पड़ता है। बरसात में डर लगता है कि कहीं बह न जाएं।”
सवालों के घेरे में प्रशासन
यह तस्वीर सिर्फ गोपला गांव की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा करती है:
- क्या बच्चों को सुरक्षित रास्ता उपलब्ध कराना प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं?
- शिक्षा के अधिकार का क्या अर्थ रह जाता है जब बच्चे स्कूल ही नहीं पहुंच पाते?
- विकास के नाम पर करोड़ों खर्च करने का दावा करने वाले अफसर और नेता इस शर्मनाक स्थिति पर कब जागेंगे?
गोपला गांव का यह दृश्य बताता है कि शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागजों में है, जमीन पर हालात बिल्कुल उलटे हैं। जब तक प्रशासन गंभीर कदम नहीं उठाता, तब तक मासूम बच्चों को अपने भविष्य की राह खुद बनानी पड़ेगी।