मणिपुर में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है। यह कदम राज्य में जारी जातीय संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता के कारण उठाया गया है। मई 2023 से मणिपुर में जातीय हिंसा जारी है, जिसमें 250 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं।
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का इस्तीफा और राज्य में असहमति
9 फरवरी 2025 को बीरेन सिंह ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाकात कर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया। इसके बाद, बीजेपी के पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा विधायकों और राज्यपाल के साथ नए मुख्यमंत्री के चयन के लिए बैठकें कर रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री के चयन पर सहमति नहीं बन पाई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस असहमति के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।
विधानसभा सत्र और अविश्वास प्रस्ताव की आशंका
मणिपुर विधानसभा का अंतिम सत्र 12 अगस्त 2024 को समाप्त हुआ था और अगले सत्र का आयोजन छह महीने के भीतर होना था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। संविधान के अनुच्छेद 174(1) के अनुसार विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का अंतर नहीं हो सकता है। राज्य के 60 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी के पास 37 विधायक हैं, लेकिन इसके बावजूद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मणिपुर में मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने की तैयारी थी, जिससे सरकार गिर सकती थी। इस डर के कारण बीरेन सिंह को इस्तीफा देने पर मजबूर किया गया। बीजेपी के अंदर एक गुट ने बीरेन सिंह के खिलाफ शिकायतें की थीं और पार्टी नेतृत्व से उनका इस्तीफा मांगा था।
राष्ट्रपति शासन की वजहें और राजनीतिक संकट
मणिपुर की राजनीति को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री ने कहा, “बीजेपी को डर था कि बीरेन सिंह के कारण फ्लोर टेस्ट में पार्टी के विधायक पार्टी व्हिप की अवहेलना कर सकते हैं, जो पार्टी की छवि के लिए हानिकारक हो सकता था।” इसके अलावा, पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा को ध्यान में रखते हुए भी बीरेन सिंह का इस्तीफा लिया गया, ताकि मणिपुर में होने वाली चर्चाओं पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई और राष्ट्रपति शासन
2022 में मणिपुर में बीजेपी ने सत्ता प्राप्त की थी, लेकिन राज्य में बीजेपी के अंदर कई विवाद और गुटबाजी थी। बीजेपी के पास अपने 37 विधायक होने के बावजूद, पार्टी को राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। यह मोदी सरकार के 11 साल के शासन में पहली बार है जब बीजेपी को अपने ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।
विजेता सिंह, वरिष्ठ पत्रकार, का कहना है कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के लागू होने से ज्यादा कुछ बदलने वाला नहीं है, क्योंकि पहले भी राज्य में सरकार केंद्र से ही चल रही थी। इसके अलावा, विपक्ष बीजेपी पर अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग का आरोप लगा सकता है, जैसा कि पीएम मोदी ने 2023 में कांग्रेस पर आरोप लगाया था।
संविधान और राष्ट्रपति शासन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र सरकार को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाने की ताकत मिलती है, जबकि अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति राज्य सरकार की शक्तियों को अपने अधीन कर लेते हैं जब राज्य में संवैधानिक तंत्र असफल हो जाता है।
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद मुख्यमंत्री की मंत्रिपरिषद भंग हो जाती है और राज्य सरकार के सभी मामले राष्ट्रपति के पास चले जाते हैं। राष्ट्रपति शासन को अधिकतम तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है, और विशेष परिस्थितियों में इसकी सीमा और भी बढ़ाई जा सकती है।
आगे क्या
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य में राजनीतिक स्थिति और भी जटिल हो सकती है। हालांकि, इससे पहले भी राज्य में केंद्रीय सरकार का प्रभाव ज्यादा था, लेकिन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद स्थिति और भी विकट हो गई है। अब देखने वाली बात यह होगी कि केंद्र सरकार मणिपुर में आने वाले दिनों में क्या कदम उठाती है और क्या राज्य में शांति और स्थिरता की स्थिति बन पाती है।
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