Prada ने पेश की Kolhapuri जैसी चप्पलें, लेकिन भारत को नहीं दिया क्रेडिट!

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Kolhapuri चप्पलें

इटली के मिलान में आयोजित Prada Spring Summer 2026 फैशन शो इन दिनों सोशल मीडिया पर सुर्खियों में है। वजह है — प्राडा ने अपने नए कलेक्शन में ऐसी सैंडल पेश कीं, जो हू-ब-हू भारत की प्रसिद्ध ‘कोल्हापुरी चप्पल’ जैसी दिखती हैं।

हालांकि, विवाद की जड़ ये नहीं कि डिजाइन इंस्पायर है, बल्कि ये कि Prada ने भारत को या भारतीय कारीगरों को कोई क्रेडिट नहीं दिया। इसी बात को लेकर सोशल मीडिया पर बहस तेज हो गई है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर कब इंटरनेशनल ब्रांड्स भारतीय हस्तकला को खुलकर सम्मान देंगे।


क्या होती है कोल्हापुरी चप्पल?

कोल्हापुरी चप्पल महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले की ऐतिहासिक और पारंपरिक हस्तकला का हिस्सा हैं। इन चप्पलों का इतिहास 13वीं शताब्दी से जुड़ा है और यह आज भी भारत की संस्कृति और कारीगरी की पहचान हैं।

इनकी खास बातें:

✔ पूरी तरह हाथ से बनाई जाती हैं
✔ बेहतरीन क्वालिटी वाले चमड़े का इस्तेमाल
✔ पारंपरिक डिजाइनों में सुंदर नक्काशी
✔ सालों तक चलने वाली टिकाऊ बनावट
✔ पहनने में बेहद आरामदायक
✔ जीआई टैग (Geographical Indication) से सम्मानित


कोल्हापुरी चप्पल कैसे बनती हैं?

इन चप्पलों को बनाने की प्रक्रिया बेहद मेहनत और हुनर से भरी होती है:

  1. सबसे पहले उच्च गुणवत्ता वाला लेदर चुना जाता है।
  2. उसे मुलायम करने के बाद मनचाहा आकार दिया जाता है।
  3. फिर डिजाइनों की नक्काशी की जाती है।
  4. चप्पल के अंगूठे वाले हिस्से पर रिंग बनाई जाती है, जिससे ग्रिप बेहतर होती है।
  5. पूरी प्रक्रिया हाथ से होती है, मशीन का कोई इस्तेमाल नहीं।

इसी कारीगरी की वजह से कोल्हापुरी चप्पलें दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं।


क्यों खास हैं असली कोल्हापुरी चप्पलें?

  • यह चप्पलें गर्मी या नमी में भी आरामदायक रहती हैं।
  • महाराष्ट्र के ह्यूमिड वातावरण में भी इन्हें पहनना आसान है।
  • लंबे समय तक चलती हैं और इस्तेमाल के साथ पैर के आकार में ढल जाती हैं।
  • नेचुरल टैन रंग और ट्रेडिशनल डिजाइनों से इनकी पहचान बनी रहती है।

भारतीय हस्तकला को क्रेडिट क्यों जरूरी है?

भारत की हस्तकला दुनिया में अद्वितीय है। चाहे वो बनारसी साड़ी हो, मधुबनी पेंटिंग या कोल्हापुरी चप्पल — इन सभी के पीछे भारतीय कारीगरों की मेहनत और पीढ़ियों पुराना हुनर है। जब बड़े इंटरनेशनल ब्रांड्स इस कला से इंस्पायर होकर प्रोडक्ट्स बनाते हैं, तो उन्हें भारत और यहां के कारीगरों को उचित श्रेय देना जरूरी है।

इससे न केवल भारतीय कलाकारों को पहचान मिलती है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर भी दुनिया के सामने गर्व से प्रस्तुत होती है।


कोल्हापुरी चप्पल: भारत की विरासत, जो वैश्विक फैशन का हिस्सा बन रही है

यह पहला मौका नहीं है जब इंटरनेशनल फैशन में भारतीय हस्तकला की छाप दिखी हो। इससे पहले भी कई ग्लोबल ब्रांड्स भारतीय डिजाइनों से प्रभावित हुए हैं। फर्क बस इतना है कि भारत को उसका हक और कारीगरों को उनकी पहचान मिलनी चाहिए।

अगर आप भी भारतीय कला को सपोर्ट करना चाहते हैं, तो अगली बार खरीदारी करते वक्त असली ‘कोल्हापुरी चप्पल’ जरूर अपनाएं और लोकल आर्ट को बढ़ावा दें।


निष्कर्ष

प्राडा के नए कलेक्शन ने भले ही विवाद खड़ा किया हो, लेकिन यह भारत की पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पल की लोकप्रियता का बड़ा उदाहरण है। उम्मीद है, भविष्य में इंटरनेशनल ब्रांड्स न केवल भारतीय डिजाइनों को अपनाएंगे, बल्कि हमारे कारीगरों और विरासत को भी सम्मान देंगे।


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