मिट्टी का दीया: श्रद्धा, परंपरा, पर्यावरण, रोजगार का संगम कैसे है, जानिए
by: vijay nandan
लखनऊ: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के दीपावली और क्रिसमस की तुलना वाले बयान पर सियासी घमासान मच गया है। बीजेपी नेताओं ने उनके बयान को हिंदू विरोधी करार देते हुए तीखा पलटवार किया है। धनतेरस के दिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा था कि “देखिए, दुनिया में क्रिसमस के समय पूरे शहर महीनों तक जगमगाते रहते हैं, उन्हीं से सीखो बस। क्यों बार-बार दीये और मोमबत्तियों पर खर्चा करना? उन्होंने यह टिप्पणी अयोध्या में आयोजित हो रहे दीपोत्सव को लेकर की थी, जिसके बाद बीजेपी ने इसे “सनातन विरोधी बयान” बताया।

राम की पैड़ी पर बिछाए गए 29 लाख 25 हजार 051 दीये
योगी सरकार हर साल की तरह इस साल भी अयोध्या में दीपोत्सव मना रही है, खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में हैं, राम की पैड़ी पर 29 लाख 25 हजार 051 दीये बिछा दिए गये हैं। दीपोत्सव पर 26 लाख 11 हजार 101 दीये जलाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया जाएगा। इस कार्य में 33000 वालंटियर्स लगाए गए हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अयोध्या का ये दीपोत्सव 500 साल तक आस्था के संघर्ष की विजय का प्रतीक है। देश की आजादी के बाद हर भारतवासी के मन में था कि अब देश को सांस्कृतिक आजादी भी मिले लेकिन कुछ लोगों ने सनातनियों की आस्था को कैद करने का कुत्सित प्रयास किया पर आज भगवान श्रीराम अपने भव्य मंदिर में विराजमान हैं। सनातनियों ने 500 साल तक अपने देवस्थान के लिए संघर्ष किया।
#WATCH | Lucknow | SP Chief Akhilesh Yadav says, "… I dont want to give a suggestion. But I will give one suggestion on the name of Lord Ram. In the entire world, all the cities get illuminated during Christmas. And that goes on for months. We should learn from them. Why do we… pic.twitter.com/HAL47migCC
— ANI (@ANI) October 18, 2025
बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि “देश के लोग दीपावली पर दीप जला रहे हैं और कुछ लोगों के दिल जल रहे हैं। कभी-कभी हड़बड़ी में चौतरफा गड़बड़ी कर जाते हैं। हर त्योहार का अपना महत्व होता है, और दीपावली का महत्व हमारी संस्कृति और इतिहास से जुड़ा हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि “सनातन के खिलाफ इस सिंडिकेट की सनक” समय-समय पर सामने आती रहती है।
#WATCH | Delhi: On SP Chief Akhilesh Yadav's statement, BJP Leader, Mukhtar Abbas Naqvi says, "… Akhilesh Yadav's remark about not lighting lamps during Diwali is condemnable… The festival symbolises joy, it shows the cultural and religious diversity of India… Such… pic.twitter.com/iOInbe7Hh1
— ANI (@ANI) October 19, 2025
बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि, जिन लोगों ने रामभक्तों पर गोलियां चलवाईं, वही अब दीपोत्सव का विरोध कर रहे हैं। अयोध्या आज दीपों से जगमगा रही है, और कुछ लोगों को यह रास नहीं आ रहा। ये वही लोग हैं जिन्होंने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को नाच-गाना कहा था और सनातन को बीमारी बताया था।”
मध्यप्रदेश के मंत्री विश्वास सारंग ने पलटवार करते हुए कहा कि अखिलेश यादव को अपना नाम बदलकर “अंटोनी या अकबर” रख लेना चाहिए। उन्होंने कहा “जो व्यक्ति सनातन परंपराओं का विरोध करता है, वह ‘अखिलेश’ नाम का धारक नहीं हो सकता। दीप जलाना सिर्फ परंपरा नहीं, अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। सारंग ने आगे कहा कि यह बयान छोटे कारीगरों पर कुठाराघात है, क्योंकि दीये बनाना उनकी आजीविका का साधन है।
अखिलेश यादव के इस बयान ने त्योहारों के बीच एक नई राजनीतिक बहस छेड़ दी है। जहां बीजेपी इसे सनातन विरोधी और कारीगर विरोधी बता रही है, अखिलेश यादव के बयान से दीपावली के त्योहार पर सियासी विवाद और गहराता जा रहा है। बीजेपी इसे ‘सनातन विरोधी मानसिकता’ बता रही है, जबकि समाजवादी पार्टी का कहना है कि बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।

दीपावली पर मिट्टी के दीये ही क्यों जलाए जाते हैं?
धार्मिक महत्व: दीपावली का त्योहार भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। कहा जाता है कि उस दिन अयोध्या की जनता ने मिट्टी के दीयों से पूरी नगरी को रोशन किया था, ताकि अंधकार मिटे और खुशियाँ लौट आएं। इसलिए आज भी दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है।
सांस्कृतिक महत्व: भारत की परंपरा में मिट्टी को बहुत पवित्र माना गया है, यही मिट्टी हमें जीवन देती है, अन्न देती है और इसी से हमारा शरीर बना है। मिट्टी के दीये प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हैं। इसके अलावा, यह त्योहार हमें सिखाता है कि सरल चीज़ों में भी अपार सुंदरता और शक्ति होती है।
पर्यावरणीय महत्व: मिट्टी के दीये पूरी तरह इको-फ्रेंडली होते हैं। इनमें धुआं या प्रदूषण नहीं होता, ये बायोडिग्रेडेबल हैं, और बिजली या केमिकल की जरूरत नहीं पड़ती इसलिए यह त्योहार पर्यावरण के अनुकूल भी बन जाता है।
रोजगार और समाज से जुड़ाव: दीपावली पर मिट्टी के दीयों की सबसे ज़्यादा मांग होती है, जिससे कुम्हार समाज (मिट्टी के बर्तन बनाने वाले) लोगों को अच्छा रोजगार और आय मिलती है। वे पूरे साल इस समय का इंतजार करते हैं।
गांवों और कस्बों में हजारों कुम्हार परिवार दीये बनाकर बाजार में बेचते हैं। शहरी इलाकों में भी उनकी बिक्री से छोटे व्यापार को प्रोत्साहन मिलता है। इस तरह मिट्टी का दीया केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ताकत भी है, इसलिए मिट्टी का दीया जलाना सिर्फ पूजा या सजावट नहीं है। यह श्रद्धा, परंपरा, पर्यावरण और रोज़गार चारों का संगम है। यह दीपावली हमें याद दिलाती है कि सच्चा प्रकाश वही है जो खुद जलकर दूसरों के जीवन में उजाला भर दे।