पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर विशेष: जब दोस्ती को बदनामी से ऊपर रखा

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पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर विशेष: जब दोस्ती को बदनामी से ऊपर रखा

आज भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की 18वीं पुण्यतिथि है। 8 जुलाई 2007 को उनका लंबी बीमारी के बाद निधन हुआ था। भारतीय राजनीति में वह एक ऐसे नेता के रूप में याद किए जाते हैं जिन्होंने न केवल वैचारिक मजबूती दिखाई, बल्कि निजी संबंधों को भी दिल से निभाया—चाहे उन्हें लेकर आलोचना क्यों न हो।

उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि रिश्तों की गहराई और सिद्धांतों की पक्की सोच, किसी भी राजनीतिक करियर से कहीं अधिक प्रभावशाली हो सकती है।


राजनीति से आगे था चंद्रशेखर का मानवीय पक्ष

चंद्रशेखर अपने स्पष्ट विचारों और सादगीपूर्ण जीवनशैली के लिए जाने जाते थे। लेकिन उनके राजनीतिक जीवन की एक अनोखी विशेषता यह थी कि उन्होंने निजी रिश्तों को भी पूरी ईमानदारी से निभाया।

  • आलोचनाओं की परवाह किए बिना निभाए संबंध
  • समाज की पारंपरिक सोच से अलग लेकिन सच्चे रिश्ते
  • सच्चाई और सिद्धांतों के लिए कभी समझौता नहीं किया

जब वाजपेयी के लिए खड़े हो गए चंद्रशेखर

एक बार अटल बिहारी वाजपेयी जब विपक्ष में थे और गुजराल सरकार की आलोचना कर रहे थे, तब सत्ता पक्ष विरोध में खड़ा हो गया। उसी समय चंद्रशेखर ने वाजपेयी का समर्थन करते हुए संसद से आग्रह किया कि उन्हें शांतिपूर्वक बोलने दिया जाए।

यह घटना चंद्रशेखर की निष्पक्षता और मित्रता की मिसाल बन गई। वाजपेयी, शरद पवार, मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे कई नेताओं से उनके घनिष्ठ संबंध रहे। वह जरूरत पड़ने पर अपने मित्रों की मदद करने से कभी नहीं हिचकिचाते थे, भले ही इससे राजनीतिक नुकसान हो।


सत्ता और विपक्ष दोनों करते थे सम्मान

“युवा तुर्क” के नाम से मशहूर चंद्रशेखर का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही उनकी बात ध्यान से सुनते थे।

1977 में जनता पार्टी के अध्यक्ष बनने के बाद उनका ऐतिहासिक भाषण आज भी याद किया जाता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि उन्हें पद किसी व्यक्तिगत योग्यता के कारण नहीं, बल्कि साथियों के प्रेम और सहयोग से मिला है।


अन्य नेताओं को देते थे अपनी सफलता का श्रेय

चंद्रशेखर हमेशा अपनी उपलब्धियों का श्रेय अपने साथियों को देते थे। उन्होंने अपने भाषण में चौधरी चरण सिंह, अशोक मेहता, लालकृष्ण आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे नेताओं की खुले दिल से सराहना की।

इस तरह की विनम्रता और पारदर्शिता, आज की राजनीति में दुर्लभ है।


इंदिरा गांधी पर भी खुलकर की थी आलोचना

चंद्रशेखर ने आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की कड़ी आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि तानाशाही का जो अंधेरा इस देश पर छाया था, उससे अब मुक्ति मिल गई है। उनका मानना था कि भारत की लोकतांत्रिक चेतना इतनी मजबूत हो चुकी है कि अब कोई तानाशाही थोपने की हिम्मत नहीं करेगा।


सबसे कम समय तक प्रधानमंत्री रहने का रिकॉर्ड

वी.पी. सिंह सरकार के पतन के बाद 10 नवंबर 1990 को चंद्रशेखर भारत के नौवें प्रधानमंत्री बने। यह विडंबना थी कि जिस कांग्रेस के वे लंबे समय से विरोधी थे, उसी के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई।

लेकिन यह सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि चंद्रशेखर सरकार राजीव गांधी की जासूसी करवा रही है। इसके बाद चंद्रशेखर ने 6 मार्च 1991 को इस्तीफा दे दिया। मात्र चार महीने के कार्यकाल के साथ वे देश के दूसरे सबसे कम समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री बन गए।


चंद्रशेखर एक वैचारिक और भावनात्मक संतुलन का नाम

चंद्रशेखर न केवल एक मजबूत विचारक थे, बल्कि एक ऐसे नेता भी थे जिन्होंने रिश्तों को राजनीति से ऊपर रखा। उनके जैसा साफगोई और मूल्यनिष्ठा से भरा जीवन आज भी युवा नेताओं के लिए प्रेरणा है।

उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देना न केवल एक राजनीतिक सम्मान है, बल्कि उस सोच और मूल्यों की भी कद्र है जो आज भी प्रासंगिक हैं।

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