ग्रामीण इलाकों में सरपंच बनना हर किसी का सपना होता है। हर कोई अपने जीवन में गांव का मुखिया बनने के सपने जरूर देखता है। क्योंकि गांव में सरपंच को अच्छी नजर से देखते है, लोग जी हूजूरी करते है, सरपंच का अलग ही रूतबा होता है। कई जगहों पर सरपंच को प्रधान तक कहते है। लेकिन तब क्या हो जब गांव का कोई भी सदस्य सरपंच बनना ही नहीं चाहता। जनता का साथ होने के बावजूद भी कोई भी सरपंच की दावेदारी नहीं कर रहा। ऐसा ही एक गांव है भटगांव। छत्तीसगढ़ के धमतरी के गांव भटगांव में लोग सरपंच बनना ही नहीं चाहते। सरपंच न बनने की एक अलग ही कहानी है।
सरपंच की हो जाती है मौत
बता दें कि इस गांव में 2012 से लेकर 2024 तक सरपंचों के साथ बड़ा अजीब वाक्या हुआ है। दरअसल इन 10 सालों में जनता ने 5 सरपंच को चुना था। जिनमें 4 सरपंचों की मौत हो गई और एक सरपंच को धारा 40 के चलते पद गवाना पड़ा। जब भी सरपंच चुनकर आता तो कुछ ही समय में किसी कारणवश उसकी मौत हो जाती ऐसा ही लगातार 4 सरपंचों के साथ हुआ। जिसके चलते गांव वालों के अंदर डर बैठ गया है। वह सोचते है कि सरपंच की कुर्सी पर जादू-टोटका है, जिसके कोई भी सरपंच टिक नहीं पाता और उसकी मौत हो जाती है। यही कारण है कि अब कोई भी सरपंच के पद पर बैठना नहीं चाहता।
अभी तक इन सरपंचों की हुई मौत
2020 से 2025 तक के लिए हुए चुनाव में यहां की जनता ने अजमेर सिंह को सरपंच चुना, लेकिन सिर्फ 2 साल बाद उनकी बीमारी से मौत हो गई। सरपंच की मौत के बाद उप चुनाव हुए उप चुनाव में जीतकर आए बोधन ध्रुव की भी कुछ महीने बाद मौत हो गई। वहीं 2010 से 2015 के लिए हुए चुनाव में झनकराम देवदास सरपंच बने, लेकिन महज 30 साल की उम्र में ही उनकी मौत हो गई। उनकी जगह पर गिरवर देवदास सरपंच पद पर आशीन हुए, लेकिन उनकी भी मौत हो गई। अब हालात ये हैं कि सरपंच बनने से लोग डरते हैं।