BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली/मुंबई। मालेगांव बम विस्फोट केस में लगभग 17 साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद विशेष एनआईए अदालत ने 31 जुलाई 2025 को फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। बरी होने के बाद पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का पहला बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने इस फैसले को ‘भगवा और हिंदुत्व की जीत’ बताया।
साध्वी प्रज्ञा ने फैसले को बताया साजिश का पर्दाफाश
कोर्ट परिसर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए प्रज्ञा ठाकुर ने कहा:
“मैंने हमेशा कहा कि जांच के लिए कोई ठोस आधार होना चाहिए। मुझे बिना वजह बुलाया गया, गिरफ्तार किया गया और शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। मैं एक साधु का जीवन जी रही थी, लेकिन मुझे षड्यंत्रपूर्वक फंसाया गया। किसी ने स्वेच्छा से मेरा साथ नहीं दिया। आज का दिन भगवा और हिंदुत्व की विजय का प्रतीक है। जिन लोगों ने इस षड्यंत्र को रचा, उन्हें भगवान सजा देंगे।”
कर्नल पुरोहित ने जताया कोर्ट पर भरोसा
एक अन्य प्रमुख आरोपी, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित ने कोर्ट के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा:
“मैं न्यायपालिका का धन्यवाद करता हूं कि मुझे फिर से उसी विश्वास के साथ अपने राष्ट्र और संगठन की सेवा करने का अवसर मिला। मैं किसी संस्था को दोष नहीं देता, बल्कि संस्थाओं के भीतर गलत लोग होते हैं। इस फैसले ने आम नागरिकों का सिस्टम पर भरोसा फिर से कायम किया है।”
सभी आरोपी बरी, कोर्ट ने जांच की गुणवत्ता पर उठाए सवाल
एनआईए की विशेष अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि प्रॉसिक्यूशन आरोपी पक्ष के खिलाफ आरोप सिद्ध करने में असफल रहा। कोर्ट ने कहा कि बम धमाके में प्रयुक्त विस्फोटक और उसके स्रोत से संबंधित कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाए।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि एटीएस के तत्कालीन एडीजी द्वारा आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी के घर में विस्फोटक रखे जाने की जांच फिर से की जाए।
बरी किए गए अन्य आरोपियों में शामिल हैं:
- मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त)
- अजय राहिरकर
- सुधाकर धर द्विवेदी
- सुधाकर चतुर्वेदी
- समीर कुलकर्णी
क्या था मालेगांव ब्लास्ट केस?
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक विस्फोट हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 95 लोग घायल हुए थे। इस घटना के बाद शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस द्वारा की गई थी, जिसे बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया।
NIA ने 2016 में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। लेकिन कोर्ट ने पाया कि केस में जांच प्रक्रिया और साक्ष्य संग्रहण में कई खामियां थीं, जैसे कि घटनास्थल पर फिंगरप्रिंट न लिए जाना, बाइक का चेसिस नंबर रिकवर न होना, और विस्फोटक की स्रोत की जानकारी का अभाव।