BY: Yoganand Shrivastva
स्टार रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)
निर्देशक: विशाल फुरिया
मुख्य कलाकार: काजोल, रोनित रॉय, इंद्रनील सेनगुप्ता
शैली: हॉरर, थ्रिलर
रिलीज डेट: 27 जून, 2025
कहानी में छिपा है अतीत का अभिशाप
फिल्म की शुरुआत होती है अंबिका (काजोल) से — एक सशक्त लेकिन रहस्य से घिरी महिला जो अपनी बेटी और पति के साथ शहरी जीवन जी रही है। लेकिन एक कॉल सब कुछ बदल देता है। उसका पति शुवांकर (इंद्रनील सेनगुप्ता), जो लंबे समय से अपने पैतृक गांव चंद्रपुर से दूरी बनाए हुए था, वहां जाता है और फिर लापता हो जाता है।
यह गांव एक पुरानी मान्यता और खौफनाक मिथक से ग्रसित है – अम्सजा, एक राक्षसी शक्ति, जो प्रतीक्षा कर रही है पुनर्जन्म की।
अंबिका अपनी बेटी श्वेता (खेरिन शर्मा) के साथ गांव लौटती है और कहानी तब करवट लेती है जब उसे महसूस होता है कि यह कोई आम गांव नहीं, बल्कि उसके अतीत से जुड़ा नर्क का द्वार है।
काजोल – फिल्म की आत्मा और शक्ति
अंबिका के रूप में काजोल अपने करियर के सबसे सशक्त किरदारों में से एक निभाती हैं। उनका प्रदर्शन हर फ्रेम में उभरता है – चाहे वो भयभीत माँ हों या अंधकार से लड़ने वाली योद्धा।
उनकी आंखों में गहराई है, भावों में भय और आवाज़ में वो दृढ़ता जिसे देखना आपको मजबूर कर देगा। ‘माँ’ में काजोल सिर्फ अभिनेत्री नहीं, बल्कि पूरी कहानी की रीढ़ बन जाती हैं।
लेखन और निर्देशन – धर्म, डर और दिल का मेल
लेखक साईविन क्वाड्रास ने जिस तरह से पौराणिकता को आज की वास्तविकता से जोड़ा है, वह सराहनीय है। अम्सजा जैसे किरदार को देवी काली और रक्तबीज की कथाओं से जोड़ना फिल्म को धार्मिक, दार्शनिक और डरावना बनाता है।
निर्देशक विशाल फुरिया ने ‘छोरी’ की शैली को और निखारा है। काली पूजा, लाल रंग, शक्ति की उपासना – सब कुछ एक ऐसा सिनेमाई अनुभव रचते हैं, जो डराते भी हैं और सोचने पर मजबूर भी करते हैं।
अभिनय की बात करें तो…
- काजोल का अभिनय फिल्म की धुरी है।
- रोनित रॉय ने सीमित स्क्रीन टाइम में भी गंभीरता और अनुभवी अभिनय से छाप छोड़ी है।
- इंद्रनील सेनगुप्ता का रहस्यभरा चेहरा कहानी को गति देता है।
- खेरिन शर्मा की कास्टिंग थोड़ी कमजोर रही, उनका प्रदर्शन एकरस लगता है।
- सह कलाकार जैसे सुरज्यशिखा दास और रूपकथा चक्रवर्ती भी अपने किरदारों में विश्वसनीय नजर आते हैं।
क्या खास बनाता है ‘मां’ को?
- सस्पेंस: हर सीन में आगे कुछ छिपा हुआ महसूस होता है।
- धार्मिक प्रतीकात्मकता: फिल्म केवल डराने की कोशिश नहीं करती, बल्कि दर्शन के स्तर पर भी असर डालती है।
- टेक्निकल पक्ष: बैकग्राउंड स्कोर जबरदस्त है, VFX कुछ जगह कमजोर हैं लेकिन स्क्रिप्ट की ताकत उन्हें ढक लेती है।
- क्लाइमेक्स: बिल्कुल अप्रत्याशित और भावनात्मक।
फैसला: देखनी चाहिए या नहीं?
अगर आप हॉरर फिल्मों के शौकीन हैं और सिर्फ चीखें नहीं, एक गहरी कहानी देखना चाहते हैं, तो ‘माँ’ आपके लिए एक बेहतरीन सिनेमाई अनुभव है।
यह फिल्म ओटीटी के लिए नहीं, बल्कि सिनेमाघर में महसूस करने वाली है। डर, श्रद्धा और मां की शक्ति का ऐसा संगम शायद ही कहीं और मिले।