BY: Yoganand Shrivastava
मामला क्या है?
झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की एक चूक पर झारखंड हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। मनोज कुमार कच्छप, जो कि एक अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के उम्मीदवार हैं, ने सहायक प्रोफेसर पद के लिए आयोजित परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की थी। लेकिन इंटरव्यू के दौरान आयोग ने यह कहते हुए उनकी उम्मीदवारी खारिज कर दी कि उनकी परीक्षा फीस की राशि आयोग को प्राप्त नहीं हुई।
हाईकोर्ट का निर्णय
- झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए आयोग पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाया है।
- कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि कच्छप को चार सप्ताह के भीतर नियुक्ति दी जाए।
- इसके अलावा, आयोग की याचिका को खंडपीठ ने खारिज कर दिया और एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा।
याचिकाकर्ता की दलील
- कच्छप ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने 2018 में सहायक प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था।
- उन्हें ST श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार किया गया और दस्तावेज़ सत्यापन के बाद उन्होंने परीक्षा भी दी।
- लेकिन इंटरव्यू के दौरान अचानक यह कहा गया कि फीस आयोग के खाते में नहीं आई, इसलिए उनकी उम्मीदवारी रद्द की जा रही है।
कच्छप ने यह भी कहा कि न तो उन्हें फीस वापसी की गई और न ही परीक्षा से पहले आयोग ने इस कमी के बारे में कोई जानकारी दी।
कोर्ट की टिप्पणी
- एकल पीठ ने पहले ही आयोग को निर्देश दिया था कि उम्मीदवार की उम्मीदवारी पर दोबारा विचार किया जाए।
- आयोग इस फैसले से संतुष्ट नहीं था और उसने खंडपीठ में अपील दायर की।
- लेकिन मुख्य न्यायाधीश एम. एस. रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह अपील खारिज कर दी।
- कोर्ट ने कहा कि इस लापरवाही के कारण अभ्यर्थी का करियर प्रभावित हुआ, जिसके लिए आयोग आर्थिक हर्जाना देने का भी जिम्मेदार है।
इस फैसले से यह स्पष्ट संदेश गया है कि सरकारी संस्थानों की लापरवाही को अदालतें गंभीरता से लेती हैं, खासकर जब बात वंचित वर्ग के योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों की हो। अब JPSC को न सिर्फ पीड़ित अभ्यर्थी को नौकरी देनी होगी बल्कि ₹1 लाख का मुआवजा भी आठ सप्ताह के भीतर चुकाना होगा।