अहिंसा सिर्फ विचार नहीं, जीवन जीने का तरीका है – जानिए जैन धर्म में भोजन, वाणी और व्यवहार में कैसे होता है इसका पालन
BY: Vijay Nandan
जैन धर्म में जीव मात्र के प्रति करुणा और संवेदनशीलता सर्वोपरि है। आहार से लेकर व्यवहार तक हर जगह यह दृष्टिकोण झलकता है। हर जीव को जीने का अधिकार है, यह भावना ही जैन धर्म को अहिंसा का सबसे सशक्त उदाहरण बनाती है।बिलकुल, आइए आगे विस्तार से समझते हैं कि जैन धर्म के अनुयायी कैसे अपने दैनिक जीवन में अहिंसा के सिद्धांत को लागू करते हैं और यह केवल भोजन तक ही सीमित नहीं रहता। दिगंबर (शाब्दिक अर्थ: ‘दिशाएँ ही वस्त्र हैं’) जैन धर्म का एक प्रमुख संप्रदाय है जो अहिंसा, त्याग, वैराग्य, और आत्मा की शुद्धि पर अत्यधिक बल देता है। इसके अनुसार मोक्ष (निर्वाण) केवल वही आत्मा प्राप्त कर सकती है जो:
- पूरी तरह से कर्मों से मुक्त हो,
- सांसारिक बंधनों से विरक्त हो,
- और कठोर तपस्या एवं संयम का पालन करती हो।
- आत्मा अनादी-अनंत है और वह स्वयं के प्रयास से ही शुद्ध हो सकती है।
- कर्म एक सूक्ष्म पदार्थ है जो आत्मा से चिपक कर उसे संसार में बाँधता है।
- मोक्ष का मार्ग आत्मानुशासन, ब्रह्मचर्य, और तपस्या से होकर जाता है।
Do’s (क्या करें)
- अहिंसा का पालन – मन, वचन और कर्म से किसी भी जीव को कष्ट न पहुँचाना।
- सत्य बोलना – किसी भी स्थिति में झूठ से बचना।
- अस्तेय (चोरी न करना) – जो दिया नहीं गया हो, उसे न लेना।
- ब्रह्मचर्य का पालन – दिगंबर संतों के लिए यह पूर्ण रूप से काम-त्याग है; गृहस्थों के लिए संयम।
- अपरिग्रह – भौतिक वस्तुओं और भावनात्मक बंधनों का त्याग।
- संयमित आहार – सूर्यास्त से पहले भोजन करना, शुद्ध और सत्विक आहार लेना।
- पंच महाव्रतों का पालन – संतों के लिए ये पूर्ण होते हैं; गृहस्थों के लिए ये “अनुव्रत” होते हैं।
- नित्य ध्यान और स्वाध्याय – आत्मचिंतन और शास्त्र अध्ययन से आत्मा की शुद्धि करना।
- क्षमावाणी – क्षमा माँगना और देना, अहंकार का त्याग करना।
- तीर्थंकरों और गुरुओं का सम्मान – जिनधर्म के प्रतीकों के प्रति श्रद्धा।
Don’ts (क्या न करें)
- कोई भी हिंसात्मक कार्य – जैसे मांस खाना, शिकार करना, या किसी जीव की हत्या करना।
- झूठ बोलना या छल करना।
- चोरी या किसी भी प्रकार का गैरकानूनी स्वामित्व।
- कामवासना में लिप्त होना – विशेषकर दिगंबर साधुओं के लिए पूर्ण ब्रह्मचर्य अनिवार्य है।
- भोग-विलास में डूबना – जैसे अनावश्यक आभूषण, फैशन, विलासी भोजन आदि।
- रात्रिभोजन करना – रात में भोजन से जीव हिंसा होती है, इसलिए यह वर्जित है।
- किसी को अपमानित करना या कठोर शब्दों का प्रयोग।
- मोक्ष मार्ग से भटकाने वाले तर्क या आचरण।
- कर्मबंधन बढ़ाने वाले कार्य – जैसे लालच, क्रोध, माया, और मोह।
- प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग, इससे सूक्ष्म जीवों की हिंसा होती है।
दिगंबर जैन दर्शन अत्यंत कठोर, अनुशासित और आत्ममूल्यांकन पर आधारित है। इसका अंतिम लक्ष्य है – आत्मा की मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति। इसके लिए संयम, तपस्या और वैराग्य अनिवार्य माने गए हैं।
जैन धर्म का मूल सिद्धांत है – “अहिंसा परम धर्म”, यानी हर जीव की रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म है। यह केवल मनुष्यों के लिए नहीं, बल्कि सभी जीवों – सूक्ष्म से सूक्ष्म कीट-पतंगों, जलचरों, थलचरों, वनस्पतियों तक के लिए लागू होता है।

जैन धर्म: हर जीव की रक्षा का संदेश
- जैन दर्शन के अनुसार, प्रत्येक आत्मा (जीव) मोक्ष प्राप्त कर सकती है, चाहे वह कितनी भी सूक्ष्म क्यों न हो।
- इसलिए हर जीव की रक्षा करना, उसे कष्ट न पहुँचाना, उसके जीवन को महत्व देना – जैन अनुयायियों का कर्तव्य माना गया है।
- जैन मुनि तो यहां तक संयमित होते हैं कि वे जमीन पर पैर रखते समय भी झाड़ू लगाते हैं, ताकि कोई सूक्ष्म जीव उनके कदमों के नीचे न आ जाए।
- पानी को भी छानकर पीते हैं, ताकि जल में मौजूद अणुजीवों की हिंसा न हो।
कौन-कौन सी सब्ज़ियाँ नहीं खाते जैन धर्मावलंबी?
जैन धर्मावलंबी केवल शाकाहारी ही नहीं होते, वे एक बेहद संयमित और सूक्ष्म अहिंसा आधारित आहार अपनाते हैं। कुछ विशेष सब्ज़ियाँ और खाद्य वस्तुएँ वे नहीं खाते क्योंकि:
- उनमें अनगिनत सूक्ष्म जीव होते हैं,
- या वे भूमिगत (मूलज) होती हैं, जिन्हें निकालने पर पूरी वनस्पति नष्ट हो जाती है।
वर्जित सब्जियाँ:
- मूलज सब्जियाँ (जड़ वाली सब्जियाँ):
- आलू
- प्याज
- लहसुन
- गाजर
- मूली
- अदरक
- शकरकंद
- बैंगन (कुछ पंथों में)
कारण: इन सब्ज़ियों को उखाड़ने से पूरी वनस्पति की हत्या होती है और इनमें सूक्ष्म जीवों की संख्या अधिक होती है।
- प्याज और लहसुन
कारण: ये तामसिक भोजन में आते हैं और काम, क्रोध, लोभ जैसी वृत्तियाँ बढ़ाते हैं। साथ ही, ये भी जमीन के अंदर उगते हैं और उखाड़ने पर पूरी वनस्पति नष्ट हो जाती है। - किण्वित (fermented) चीजें
- जैसे – यीस्ट युक्त चीजें, वाइन, सिरका, सोया सॉस आदि
कारण: इनमें अनेकों सूक्ष्म जीवाणु उत्पन्न होते हैं, जिससे हिंसा होती है।
- जैसे – यीस्ट युक्त चीजें, वाइन, सिरका, सोया सॉस आदि
- रात्रि का भोजन (Night food)
कारण: रात में सूक्ष्म जीव अधिक सक्रिय होते हैं और बिना देखे भोजन करने से उनकी हिंसा होती है।
जैन भोजन की विशेषताएँ:
- शुद्ध सात्विक भोजन
- सूर्यास्त से पहले भोजन
- बिना प्याज-लहसुन के बना भोजन
- मौसमी, ताज़ा और संतुलित आहार
- अन्न, फल, हरी पत्तियाँ आदि को प्राथमिकता
- कभी-कभी केवल उबला पानी या फलाहार
अहिंसा केवल भोजन तक सीमित नहीं है
जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अहिंसा एक जीवन पद्धति है। इसका पालन वे वाणी, विचार और व्यवहार — तीनों स्तरों पर करते हैं।
वाणी में अहिंसा:
- कटु वचन, झूठ, निंदा, अपमान आदि से बचना
- सभी से मधुर और संयमित भाषा में बात करना
- ऐसा कुछ भी न बोलना जिससे किसी को मानसिक पीड़ा हो
विचारों में अहिंसा:
- किसी के लिए भी बुरा न सोचना
- ईर्ष्या, द्वेष, घृणा जैसे नकारात्मक भावों से बचना
- सभी जीवों के प्रति करुणा और सहिष्णुता का भाव रखना
व्यवहार में अहिंसा:
- किसी भी प्रकार की हिंसक गतिविधि में शामिल न होना
- कीट-पतंगों को भी मारने से बचना
- जानवरों के चमड़े, ऊन, रेशम आदि से बनी वस्तुओं का त्याग
तप और व्रत का योगदान
जैन धर्म में अहिंसा को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए अनुयायी व्रत और तप करते हैं:
प्रमुख व्रत:
- अहिंसा व्रत: किसी भी जीव को जानबूझकर या अंजाने में भी कष्ट न पहुँचाना
- सत्य व्रत: सदा सत्य बोलना
- अस्तेय व्रत: चोरी न करना
- ब्रह्मचर्य व्रत: संयमित जीवन जीना
- अपरिग्रह व्रत: आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना
तप के रूप:
- उपवास (fasting)
- एकासन (एक समय भोजन)
- पोषद व्रत (एक दिन संयमपूर्वक जीना जैसे मुनि)
- कायोत्सर्ग (ध्यान मुद्रा में चित्त की स्थिरता)
जैन गृहस्थ जीवन में अहिंसा
जिन लोगों ने गृहस्थ जीवन अपनाया है, वे भी अपने स्तर पर निम्न उपायों से अहिंसा का पालन करते हैं:
- भोजन बनाते समय अत्यधिक गर्म या जलती आग से बचना
- पानी को छानकर प्रयोग करना
- साबुन और कॉस्मेटिक्स में भी cruelty-free उत्पादों का चुनाव
- प्राकृतिक संसाधनों का सीमित उपयोग
जैन धर्म केवल एक पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि एक संवेदनशील, वैज्ञानिक और करुणामूलक जीवन दर्शन है। यह हमें सिखाता है कि सत्य, अहिंसा, संयम और अपरिग्रह से न केवल आत्मा की शुद्धि होती है, बल्कि समाज और पर्यावरण को भी लाभ होता है। जैन धर्म की यह सूक्ष्म दृष्टि आज के समय में भी अत्यंत प्रासंगिक है, जब विश्व को पर्यावरण संरक्षण, पशु अधिकार और आत्म-नियंत्रण जैसे मुद्दों से जूझना पड़ रहा है।
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