इतिहास खुद को दोहरा रहा है या किरदार बदल गए हैं?
साल 1991। इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने दुनिया को धमकाया था— “अगर इज़राइल ने हमला किया, तो आधा इज़राइल जला देंगे।” उस वक्त अमेरिका का ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म’ शुरू हो चुका था। जवाब में सद्दाम ने इज़राइल पर मिसाइलें बरसाईं।
तेल के कुओं में आग लगी थी, आसमान धुएं से काला हो चुका था।
अब 2025 में, एक बार फिर मध्य पूर्व में बारूद की गंध महसूस हो रही है। इज़राइल के डिफेंस मिनिस्टर ने बयान दिया है— “ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामनेई का हाल भी सद्दाम जैसा होगा।”
सवाल उठता है, क्या इतिहास खुद को दोहरा रहा है? या इस बार कहानी नई है लेकिन किरदार वही हैं?
1979 से शुरू होती है ये कहानी
साल 1979। दो ताकतवर चेहरे, दो अलग-अलग शहरों में उभर रहे थे:
- बगदाद में सद्दाम हुसैन, जो खुद को सलादीन की विरासत का वारिस और अरब दुनिया का नेता मानते थे।
- तेहरान में अयातुल्लाह खुमैनी, जो कुरान और धार्मिक क्रांति के दम पर सत्ता बदलने निकले थे।
सद्दाम के पास बंदूकें और टैंक थे।
खुमैनी के पास धर्म, विचारधारा और जनता का समर्थन।
एक ओर सद्दाम अरब देशों का सेकुलर सम्राट बनना चाहते थे।
दूसरी ओर खुमैनी मानते थे कि “जमीन खुदा की है, तो निजाम भी खुदा का होना चाहिए।”
ईरान-इराक युद्ध: दुश्मनी की शुरुआत
साल 1980। सद्दाम ने ईरान पर हमला कर दिया। उन्हें लगा नया ईरान, नई सरकार— कुछ ही हफ्तों में तेहरान पर कब्जा हो जाएगा।
लेकिन ईरान ने बंदूक नहीं, तकदीर और तसब्बीह से जवाब दिया।
‘द लॉन्गेस्ट वॉर’ किताब के मुताबिक, खुमैनी ने भाषण कम दिए, लेकिन उनकी हर बात जनता को युद्ध के मैदान में उतार लाती थी।
ईरान की गलियों में पोस्टर लगे:
“शहादत का मतलब मौत नहीं, बल्कि जन्नत की चिट्ठी है।”
8 साल लंबी यह जंग लाखों लोगों को निगल गई।
इराक ने जवाब में कुर्द इलाकों पर केमिकल हमले किए, हलबजा जैसे शहर खामोश हो गए। मगर तेहरान नहीं झुका।
सद्दाम का पतन, खामनेई का उदय
1989 में खुमैनी का निधन हुआ। उनके जनाजे में इतनी भीड़ थी कि ताबूत दो बार गिर गया।
इसके बाद सत्ता में आए अली खामनेई, जिन्होंने धीरे-धीरे सत्ता और धर्म, दोनों पर पकड़ मजबूत कर ली।
उधर सद्दाम के बुरे दिन शुरू हो गए।
1990 में उन्होंने कुवैत पर हमला किया, लेकिन अमेरिका की अगुवाई में 34 देशों की सेना ने ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म’ में इराक की रीढ़ तोड़ दी।
2003 में अमेरिका ने दावा किया कि इराक के पास ‘WMD’ (विनाशकारी हथियार) हैं।
इस बहाने बगदाद पर हमला हुआ, सद्दाम को एक गड्ढे से पकड़ा गया।
आखिरकार 2006 में फांसी पर चढ़ा दिए गए।
ईरान बना क्षेत्रीय ताकत
सद्दाम के पतन के बाद, खामनेई ने ईरान को न सिर्फ अंदर से बल्कि बाहर भी मजबूत किया।
- आईआरजीसी (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स) बनाई गई।
- हिजबुल्ला, हूती, पीएमएफ जैसे प्रॉक्सी ग्रुप्स का नेटवर्क खड़ा हुआ।
- ईरान ने मिसाइल तकनीक विकसित की,
- यूरेनियम संवर्धन किया, और धीरे-धीरे परमाणु शक्ति की दहलीज पर आ गया।
ईरान पर प्रतिबंध लगे, मगर उसने झुकने से इनकार कर दिया।
अमेरिका ने दूरी बनाई, लेकिन चीन और रूस ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया।
2024-2025: बारूद की नई कहानी
13 अप्रैल 2024, मध्य पूर्व की राजनीति में भूचाल आया।
इज़राइल ने ईरान पर सीधा हमला किया, ईरान ने भी जवाब दिया।
इसके बाद से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
- अमेरिका खुलकर इज़राइल के साथ आ खड़ा हुआ।
- इज़राइल का संदेश साफ है: “सिर्फ बचेंगे नहीं, तुम्हें खत्म भी करेंगे।”
- इज़राइल के डिफेंस मिनिस्टर ने दोहराया: “खामनेई का अंजाम सद्दाम जैसा होगा।”
लेकिन क्या यह इतना आसान है?
❌ सद्दाम अकेला था, खामनेई के पास मज़बूत नेटवर्क है।
❌ सद्दाम गड्ढे में पकड़े गए, खामनेई आज भी मंच से भाषण दे रहे हैं।
❌ सद्दाम के पास सेना थी, खामनेई के पास क्रांति और विचारधारा।
ईरान की जड़ें गहरी हैं, उसका समर्थन सीमाओं से बाहर तक फैला है।
यही वजह है कि ईरान को इराक की तरह आसानी से गिराना आसान नहीं होगा।
निष्कर्ष: इतिहास दोहराएगा या नया अध्याय लिखेगा?
सवाल यही है—
क्या 2025 में भी वही पुरानी स्क्रिप्ट चल रही है?
या इस बार इतिहास की स्याही से कोई नया नक्शा खींचा जाएगा?
दुनिया में हर कोई चाहता है कि युद्ध की ये आग बुझे, शांति लौटे।
लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, यह आशंका बनी रहेगी कि मध्य पूर्व की यह लड़ाई कहीं इतिहास के सबसे काले पन्नों में न दर्ज हो जाए।
FAQs
Q. क्या ईरान का भविष्य इराक जैसा हो सकता है?
→ परिस्थितियां मिलती-जुलती हैं, लेकिन ईरान की अंदरूनी ताकत और नेटवर्क इराक से कहीं मजबूत है।
Q. खामनेई और सद्दाम में क्या फर्क है?
→ सद्दाम अकेला था, जबकि खामनेई के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थक और प्रॉक्सी ताकतें हैं।
Q. क्या इज़राइल और ईरान के बीच जंग पूरी तरह शुरू हो चुकी है?
→ दोनों पक्षों में सीधा टकराव हुआ है, लेकिन अभी यह खुला युद्ध नहीं, बल्कि छिपा हुआ संघर्ष ज्यादा है।