महिलाएं: प्रेम, त्याग और बलिदान की मूरत
गाँव की पगडंडियों से गुजरती एक सुकून भरी सुबह, हवा में घुली तुलसी के पौधों की खुशबू और सूरज की पहली किरणों से जागती पृथ्वी। इसी गाँव में रहती थी सुहानी, एक साधारण लेकिन अपार प्रेम और त्याग से भरपूर महिला।
सुहानी का जीवन कठिनाइयों से भरा था, लेकिन उसकी मुस्कान कभी फीकी नहीं पड़ी। बचपन में ही माता-पिता को खोने के बाद, उसने अपने छोटे भाई राघव की परवरिश माँ-बाप दोनों की तरह की। उसने अपने सपनों को त्याग कर भाई की पढ़ाई और उज्ज्वल भविष्य के लिए खुद को समर्पित कर दिया।

समय बीतता गया, राघव पढ़ाई पूरी कर शहर में नौकरी करने चला गया। सुहानी की शादी गाँव के एक मेहनती किसान आरव से हो गई। दोनों के बीच असीम प्रेम था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक साल बाद आरव की अचानक बीमारी से मृत्यु हो गई, जिससे सुहानी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन उसने हार नहीं मानी। अपने ससुराल को छोड़ने के बजाय, वह वहीं रही और अपने पति के माता-पिता की सेवा में लग गई।
उधर, शहर में रहकर राघव अपनी बहन के त्याग को भूल चुका था। उसकी शादी एक आधुनिक सोच वाली लड़की से हो गई, जिसने सुहानी के प्रति उसके मन में दूरी पैदा कर दी। सालों तक सुहानी ने भाई की राह देखी, लेकिन कोई खबर नहीं आई।
एक दिन अचानक गाँव में एक गाड़ी आकर रुकी। राघव और उसकी पत्नी उतरे, लेकिन उनके चेहरे पर संकोच था। उन्हें एक बड़े व्यापारिक घाटे के कारण सहायता की आवश्यकता थी। जब सुहानी ने यह सुना, तो बिना किसी संकोच के अपने वर्षों की बचत उन्हें सौंप दी।
राघव की आँखों में आँसू थे। उसने अपनी बहन के त्याग, प्रेम और निःस्वार्थ सेवा को महसूस किया। वह उसके चरणों में गिर पड़ा और माफी माँगने लगा। सुहानी ने उसे प्यार से उठाया और कहा, “प्रेम और त्याग ही नारी का सच्चा गहना होता है। हम निस्वार्थ प्रेम करना जानते हैं, बिना किसी स्वार्थ के त्याग कर सकते हैं।”
उस दिन राघव ने अपनी बहन की मूरत में माँ, बहन और देवी का रूप देख लिया।





